आपदा में अवसर : ट्रेड यूनियनों को पंगु बनाने की भी अधिसूचना जारी

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कोरोना व इलाज की दुर्दशा से मरते मेहनतकशों पर हमले जारी

आपदा को तेजी से अवसर बनाते हुए मोदी सरकार ने औद्योगिक संबंध संहिता की ट्रेड यूनियन से संबंधित नियमावली भी जारी कर दी। हालांकि इस संहिता की नियमावली बीते 29 अक्टूबर को ही जारी हो चुकी थी, लेकिन ट्रेड यूनियनों की मान्यता के बहाने यूनियनों को और पंगु बनाना बाकी था, सो वह भी हुआ।

यह ऐसा समय है जब पूरे देश में कोरोना महामारी, उससे लगाई गई पाबंदियों तथा पूरे चिकित्सा व्यवस्था के ढांचे के चरमरा जाने से पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। लेकिन मोदी सरकार के लिए यह एक मुफीद अवसर है कि वे अपने मालिक पूँजीपतियों के लिए अवसर मुहैया कराते जाए।

पाँच राज्यों में चुनावी दंगल खत्म होने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की पहली बैठक में आईडीबीआई बैंक को बेचने का प्रस्ताव पारित हुआ। इधर 4 मई, 2021 को केंद्र सरकार की ओर से इस नियमावली की अधिसूचना भी जारी कर दी गई। जिसमें 30 दिनों के भीतर जनता से आपत्तियां माँगी गईं हैं।

सवाल यह है कि इस विकट दौर में, जब लोग ज़िंदगी-मौत से जूझ रहे हैं, तब 30 दिन में आपत्ति कैसे देंगे? वैसे आपत्तियों के संबंध में मोदी सरकार की तानाशाही मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं और किसान विरोधी 3 कृषि क़ानूनों के जरिए देखा जा चुका है कि कैसे महज यह औपचारिकता भर है।

उल्लेखनीय है कि औद्योगिक संबंध संहिता, जोकि चारो श्रम संहिताओं में सबसे खतरनाक है, जिसके तहत औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, स्थाई आदेश 1946,  कारखाना अधिनियम 1948 और ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 समाहित किए गए हैं, की कथित नियमावली की अधिसूचना 29 अक्टूबर 2020 को जारी हुई थी।

मान्यता संबंधी नई नियमावली

नई नियमावली औद्योगिक संबंध संहिता 2020 (2020 की 35) की धारा 99 की उपधारा 1 व उपधारा दो के संबंध में है। यह यूनियन की मान्यता यानी मालिक से वार्ताकारी यूनियन अथवा वार्ता कार्यपरिषद की मान्यता और ट्रेड यूनियनों के विवाद का न्याय निर्णयन नियम 2021 है।

यह बेहद खतरनाक है। इसके अंतर्गत कंपनी प्रबंधन के साथ किसी भी मसले पर यहाँ तक कि माँगपत्र देने और उस पर वार्ता करने के लिए पंजीकृत ट्रेड यूनियनों की मान्यता का बड़ा खेल खेला गया है। यह नियमावली उस कथित मान्यता को मालिकों के रहमों-करम पर छोड़ देती है।

यह श्रमिकों की एकमात्र वार्ताकारी यूनियन के रूप में पंजीकृत यूनियन को मान्यता देने का प्रावधान है। इसके तहत पंजीकृत यूनियन के लिए उद्योग में नियोजित कुल कामगारों के कम से कम 30% सदस्य होने की बाध्यता रखी गई है जिसे एकमात्र वार्ताकार यूनियन के रूप में मान्यता मिलेगी।

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यूनियन होगी मालिकों के रहमोकरम पर

नियोक्ता ट्रेड यूनियन की सदस्यता के सत्यापन के लिए एक सत्यापन अधिकारी नियुक्त करेगा। ट्रेड यूनियन को मान्यता के आवेदन के साथ यूनियन के पंजीकरण प्रमाण पत्र की प्रति, सदस्यों की सूची की प्रति, सदस्यता विवरण और ट्रेड यूनियन पंजीकार के पास जमा कराई गई नवीनतम वार्षिक विवरणी की प्रति तथा अन्य संबंधित प्रलेख जमा करने पड़ेंगे।

मान्यता की इस जटिल प्रक्रिया में सत्यापन अधिकारी सभी कागजातों का सत्यापन करेगा और बाकायदा चुनाव द्वारा गुप्त मतदान के माध्यम से यूनियन सदस्यता का सत्यापन करेगा और सत्यापन की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

सत्यापन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर नियोक्ता वार्ताकार संघ या वार्ताकार परिषद के घटक के रूप में उक्त यूनियन को मान्यता देगा, जो 3 वर्ष के लिए अधिकतम 5 वर्ष के लिए होगा।

कंपनी द्वारा मान्यता प्राप्त यूनियन की सदस्यता हेतु सदस्यों के अंशदान की कटौती का भी अधिकार देता है। जिस प्रतिष्ठान में 300 या उससे अधिक कामगार होंगे केवल वहाँ वार्ताकार संघ या वार्ताकार परिषद के घटक यूनियन को ही उपयुक्त कार्यालय की सुविधा उपलब्ध होगी।

किसी ट्रेड यूनियन द्वारा किसी भी विवाद को उठाने के लिए औद्योगिक न्यायाधिकरण के पास आवेदन करना होगा। विवाद उठाने के संबंध में पुरानी सभी प्रक्रियाओं को खत्म करके कुछ सीमित मामले ही उठाने की सुविधा यह नियमावली प्रदान करता है।

खतरनाक क्यों है?

प्रस्तावित नियमावली का नियम 3 वार्ताकार यूनियन या काउंसिल नियोक्ता के साथ उठाए जाने वाले मुद्दों का स्पष्टीकरण नहीं देता है। यानी किस संबंध के मुद्दे उठाए जाएंगे, रोजगार के संबंध में या अन्य कोई मुद्दा।

नियम 4 में 30% सदस्यता की भागीदारी की बाध्यता गलत है। 1957 में तीनों पक्षों की सहमति से यूनियन की मान्यता के लिए 15 फ़ीसदी सदस्यता की बात रखी गई थी। लेकिन अभी 30% की बाध्यता कर दी गई। यह बेहद मुश्किल होगा, विशेष रूप से जहाँ एक से ज्यादा यूनियनें होंगी।

नियम 5 और 6 अन्यायपूर्ण और अनुचित है क्योंकि सदस्यता के संबंध में प्रतिष्ठान और नियोक्ता को सब कुछ उपलब्ध करा देना गलत है। इससे नियोक्ता को गैरकानूनी और अनुचित श्रम व्यवहार की कार्यवाहियों को कानूनी मान्यता मिल जाती है। नियोक्ता/प्रबंधन को किसी भी श्रमिक पर दबाव बनाने और यूनियन में शामिल होने मात्र से बर्खास्त कर देना आसान होगा।

नियोक्ता/मालिक को यह कतई अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह यूनियन की वैधता का निर्णय करें और सदस्यता सूची की जाँच करे। यूनियन की जाँच का पूरा अधिकार सिर्फ श्रम आयुक्त/रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियंस के पास ही होना चाहिए जैसा की अभी तक होता रहा है।

नियमावली में लिखा है कि जिनका नाम मास्टर रोल में दर्ज है, उन्हें मान्यता हेतु गुप्त मतदान करने का अधिकार होगा। लेकिन यह निर्णय कैसे होगा, जबकि बहुत से ठेका श्रमिकों, कैजुअल श्रमिकों, टेंपरेरी श्रमिकों आदि का नाम मास्टर रोल में होता ही नहीं है जबकि वह कार्य पर उपस्थित होते हैं? यानी प्रबन्धन मनमानी सूची बनाकर अपना प्रयोजन सिद्ध कर सकता है।

इसके नियम अंतरविरोधी और मालिकपक्षीय हैं। यह यूनियनों के अधिकारों को बेहद संकुचित और मालिकों के रहमोकरम पर छोड़ देने वाला बनाएगा।

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यूनियनो को पंगु बनाने के प्रावधान पहली नियमावली में भी

इससे पूर्व औद्योगिक संबंध संहिता 2020 की कथित नियमावली की अधिसूचना 29 अक्टूबर 2020 को जारी हुई थी। उसमें ट्रेड यूनियन के दायित्वों के बारे में दर्ज बातें ट्रेड यूनियन अधिकारों को संकुचित करती हैं।

उक्त नियमावली के अध्याय 2 में 3 की धारा तीन के तहत वर्क्स कमेटी के गठन की बात है। यह यूनियन को पंगु बनाएगा। सवाल स्पष्ट है कि जहाँ यूनियन है वहाँ वर्क्स कमेटी की जरूरत क्या है?

वर्क्स कमेटी नियोक्ता और श्रमिक प्रतिनिधियों की भागीदारी से बनेगी, जिसमें कमेटी प्रतिनिधि नियोक्ता द्वारा नामित किए जाएंगे। पंजीकृत ट्रेड यूनियन अपनी सदस्यता के अनुपात में वर्क्स कमेटी के सदस्यों के रूप में अपने प्रतिनिधि चुनेंगे। जहाँ पंजीकृत ट्रेड यूनियन नहीं है, वहाँ कामगार वर्क्स कमेटी के लिए खुद प्रतिनिधि चुनेंगे।

इस वर्क्स कमेटी में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव व संयुक्त सचिव होंगे, जिसमें अध्यक्ष नियोक्ता/प्रबन्धन ही होगा और सचिव व संयुक्त सचिव का हर साल चुनाव होगा। उपाध्यक्ष कामगारों में से चुना जाएगा। यानी पूरी बागडोर नियोक्ता के हाथ में होगी।

वर्क्स कमेटी का कार्यकाल 2 साल का होगा। इसमें भी यूनियन द्वारा मालिक को ट्रेड यूनियन के सदस्यों की जानकारी देनी होगी और प्रबन्धन को अधिकार दिया गया है कि वह माँगी गई जानकारी को गलत ठहराकर उसे श्रम आयुक्त के पास संदर्भित कर दे। यानी यूनियन के पंजीकरण को समाप्त करने के लिए भी मालिक के पास अधिकार दे दिया गया है।

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एक शिकायत निवारण समिति की बात की गई है जिसके समक्ष श्रमिकों की शिकायतों को दर्ज किया जाएगा और वह समिति उनका निवारण करेगी। मज़दूर घरेलू जांच अधिकारी नियुक्ति और जाँच प्रक्रिया से वाकिफ हैं। हर जाँच अधिकारी का निष्कर्ष होता है कि “आरोप सिद्ध” पाया गया। स्पष्ट है कि समिति का शिकायत निवारण क्या होगा?

इसके तहत भी दरअसल ट्रेड यूनियन को कमजोर बनाने का काम किया गया है।

इसके साथ हड़ताल करने की पूरी प्रक्रिया को बेहद जटिल बनाया गया है। अब किसी भी हड़ताल को गैरकानूनी घोषित करना आसान होगा। गैरकानूनी हड़ताल पर दंड के प्रावधान बेहद कठोर बनाए गए हैं। मज़दूरों के कानूनी संघर्षों के रास्ते लगभग बंद किए गए हैं।

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आपदा में मुनाफाखोरों के लिए “अच्छे दिन”

यह यूं ही नहीं है कि औद्योगिक विवाद की जगह इस संहिता का नाम ही औद्योगिक संबंध संहिता है! मालिक इसे जल्दी कानूनी रूप दिला देना चाहते हैं, देश का मुखिया उनका चहेता है, इसलिए जब पूरे देश में महामारी, ऑक्सीजन, दवा, बेड व अस्पताल के लिए त्राहि मची हुई है तो मोदी सरकार मुनाफाखोरों के और “अच्छे दिन” लाने में मशगूल है!

तय है कि या तो औद्योगिक संबंध बनेंगे यानि मालिक की मनमर्जी खटना पड़ेगा या फिर लड़ाई जमीनी और आर-पार की होगी!