सरकार व कंपनियां दोनों जनता को लूट रही हैं
24 दिन में कच्चे तेल में पांच फीसदी से अधिक गिरावट लेकिन पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं घटे। इससे कंपनियों व सरकार की बम्पर कमाई हो रही है, लेकिन जनता को कोई लाभ नहीं हो रहा है।
हालत ये हैं कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने पर कंपनियां रातों-रात पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ा देती हैं, लेकिन करीब 24 दिन में कच्चे तेल में पांच फीसदी से अधिक गिरावट के बावजूद कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम में कोई बदलाव नहीं किया है। इससे कंपनियों के साथ सरकार का खजाना भर रहा है। वहीं आम लोगों की जेब हल्की हो रही है।
कच्चे तेल के दाम में गिरावट के बावजूद पेट्रोल-डीजल सस्ता नहीं करने से कंपनियों को अब तक 35 हजार करोड़ रुपये से अधिक की बचत हो चुकी है। इससे आम लोगों पर महंगाई का बोझ बढ़ता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि 15 जुलाई को पेट्रोल के दाम में बढ़ोत्तरी के बाद से लेकर अब तक कच्चे तेल का भाव 74.33 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 69.72 डॉलर प्रति बैरल पर आ चुका है।
कंपनियों का कहना है कि पेट्रोलियम का दाम नहीं घटाकर अपने घाटे की भरपाई कर रही हैं। जबकि सरकार का तर्क है कि महंगे कच्चे तेल के दौर में उसने 1.3 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी जिसकी भरपाई हो रही है।
तेल का खेल
- 15 जुलाई 4.61 डॉलर सस्ता हो चुका है कच्चा तेल
- कच्चा तेल एक डॉलर सस्ता होने पर कंपनियों को 08 हजार करोड़ रुपये की बचत होती है
- 13 हजार करोड़ रुपये सरकार को लाभ पेट्रोल-डीजल पर एक रुपया टैक्स बढ़ाने से
- 74.33 डॉलर प्रति बैरल था कच्चा तेल 15 जुलाई को
- 69.72 डॉलर प्रति बैरल रहा कच्चा तेल 10 अगस्त को
- 3.39 लाख करोड़ रुपये पेट्रोलियम पर टैक्स से मिले सरकार को वित्त वर्ष 2020-21 में
- 62 फीसदी अधिक कमाई हुई सरकार की पेट्रोलिम पर टैक्स से वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले
- 09 फीसदी घटी पेट्रोलियम की बिक्री वित्त वर्ष 2020-21 में कोरोना की वजह से
- 58 फीसदी टैक्स पेट्रोल की कुल कीमत में
- 52 फीसदी टैक्स डीजल की कुल कीमत में

जनता पर दोहरी मार
पेट्रोल-डीजल महंगाई होने से उपभोक्ताओं पर महंगाई की दोहरी मार पड़ती है। एक तो ढुलाई महंगी होने से खाने-पीने से लेकर रोजमर्रा के समान की लागत भी बढ़ती है। पेट्रोलियम का दाम 10 फीसदी बढ़ने पर खुदरा महंगाई करीब एक फीसदी बढ़ जाती है। दूसरे आने-जाने का खर्च भी बढ़ जाता है।