योग दिवस पर ‘काफल ट्री’ में प्रकाशित ललित सती की एक रोचक रचना…
नई आर्थिक नीतियाँ आईं तो तोंदों की संख्या ख़ूब बढ़ गई। इतनी बढ़ी कि तोंदरोधी विशेषज्ञ पैदा हो गए। नया मार्केट बना। योगा, आयुर्वेदा, हर्बला-फर्बला जाने क्या-क्या माल कमाने के नए अवसर ले आया।
तोंद कह रही है कि योगा चाहिए। जिम चाहिए। मॉल चाहिए। मैक-डी चाहिए।
पीठ से जा लगा पेट कह रहा है – रोजगार दो, काम का सही दाम दो, स्कूल खोलो, अस्पताल खोलो।
जाहिर है सुनी तोंद की ही जाएगी। उसका आकार वृहद है। नहीं सुनी जाएगी तो सारी तोंदें मिल इतना डकार और पाद मारेंगी कि परसेप्शन ही बदल जाएगा। कांग्रेस ने इसे झेला है। ऐसा परसेप्शन बदला कि वह सबसे भ्रष्ट और देशद्रोही पार्टी हो गई। दूसरी सेम-टु-सेम आर्थिक नीतियों वाली पार्टी भाजपा सबसे स्वच्छ और देशभक्त पार्टी हो गई।
वैसे भी तोंद की एक ख़ासियत है यह हर विचारधारा को, हर विमर्श को खा जाती है। और फिर पचाने के लिए तमाम चूर्ण जुगाड़ ही लेती है।
गांधी कहते थे कोई भी काम करो, उसमें सबसे ग़रीब आदमी की सुनो। उन्हीं की विचारधारा पर चलती कांग्रेस ने कहा – तोंद की सेवा करो, ढोल ग़रीब आदमी की सेवा का पीटो। राष्ट्रवादी सरकार आ गई। उसने कहा जो करो खुल्लमखुल्ला करो।
अब क्या लाज शरम का परदा, अधिकांश लोगों की समस्या रोटी-रोजगार की है तो क्या हुआ वे सेकंड-क्लास सिटीजन हैं, कैसे भी जी लेंगे। फर्स्ट क्लास वालों को नजर में रखो।
उन्हीं को ध्यान में रखकर कभी फिटनेस के चैलेंज का आदान-प्रदान होने लगा, कभी टाइम स्कवायर पर तमाशा, कभी योगा डे पर करोड़ों फूँके जाने लगे। सेकंड-क्लास सिटीजन्स का क्या है, धर्मभीरू हैं, निपट लेंगे इनसे तो।
बहुसंख्य तोदें ख़ुश हैं। योगा रिलीफ देता है। प्राउड वाला फील आता है, अपने कल्चर, अपने रिलीजन, नेशनलिज्म से जी जुड़ जाता है। बड़े लोग बात समझ जाएँगे तो उनकी देखा-देखी सेकंड-क्लास सिटीजन भी समझ ही जाएगा कि राष्ट्रवाद के लिए कितनी ज़रूरी चीज़ है यह।
वैसे भी, अब शहर में उसके बच्चे को कहाँ खेलने को मिलेगा – मैदान हैं नहीं, तो घर के एक कोने में बैठाकर ही अनुलोम-विलोम करा लेगा। धर्म, राष्ट्र, सेहत सबका उद्धार हो जाएगा।
‘काफल ट्री’ से साभार (21 जून, 2019 को प्रकाशित)