केवल तकनीकी कारणों से श्रमिक को पेंशन अधिकार से नहीं किया जा सकता वंचित -दिल्ली हाईकोर्ट

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पेंशन देने का आदेश; श्रमिक कल्याण बोर्ड पर 25,000 रुपए का जुर्माना। अदालत ने कहा कि पेंशन के अधिकार को केवल जन्म तिथि में कुछ अंतर के कारण वंचित नहीं किया जा सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अपने अहम फैसले में राहत देते कहा कि निर्माण श्रमिकों के पेंशन के अधिकार को केवल जन्म तिथि में कुछ कमियों के चलते वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह संभव है कि उनके परिवार जन्म तिथि के उचित रिकार्ड को संरक्षित न करें।

बादाम वर्वा बनाम दिल्ली भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड व अन्य मामले में अदालत ने निर्देश दिया कि निर्माण श्रमिक को लागू पेंशन 06 फरवरी, 2022 से 6% की दर से ब्याज के साथ वितरित की जाएगी। अदालत ने आदेश दिया कि राशि 01 जुलाई तक वितरित की जाएगी।

पेंशन न मिलने पर श्रमिक ने दायर की याचिका

दरअसल दिल्ली भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड को नियम 372 के अनुसार अपनी पेंशन जारी करने के लिए श्रमिक ने 31 दिसंबर, 2014 को सेवानिवृत्ति की आयु पार की थी और 5 जनवरी 2016 को पेंशन के लिए आवेदन किया था। लेकिन पेंशन का लाभ जारी नहीं किया गया।

याचिकाकर्ता श्रमिक ने दिल्ली भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) नियम-2002 के नियम 273 के अनुसार अपनी पेंशन जारी करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी।

श्रमिक ने कहा था कि बार-बार के प्रयासों और आवेदन के बावजूद बोर्ड द्वारा पेंशन के लिए उनके आवेदन पर कार्रवाई नहीं की गई। बोर्ड ने श्रमिक कार्ड और आधार कार्ड में उसकी उम्र अलग-अलग दर्ज होने के आधार पर 10 जून 2020 को सूचना में कमी की आपत्ति बताते हुए पत्र जारी किया था।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि जन्म तिथि एक जनवरी 1955 होने के संबंध में हलफनामा देने और आधार कार्ड जमा करने के बावजूद उसके आवेदन पर कार्रवाई नहीं की गई।

अदालत की अहम टिप्पणी

न्यायमूर्ति प्रतिबा एम. सिंह की पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में निर्माण श्रमिक या तो कम पढ़े-लिखे हैं या फिर अनपढ़ हैं और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। ऐसे में यह संभव है कि उनके परिवार जन्म तिथि के उचित रिकार्ड को संरक्षित न करें। ज्यादातर मामलों में जन्म तिथि परिवार में वयस्कों के पास उपलब्ध जानकारी के आधार पर भरी जाती है।

पीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि निर्माण श्रमिक सितंबर, 2009 से बोर्ड के साथ रजिस्टर्ड था और सेवानिवृत्ति के समय उसने एक वर्ष से अधिक समय तक भवन निर्माण और अन्य निर्माण श्रमिक के रूप में काम किया। यह भी नोट किया गया कि उसने पूरी अवधि के लिए अपने योगदान का भुगतान किया।

अदालत ने कहा कि दिल्ली (सेवाओं की समयबद्ध डिलीवरी का अधिकार) अधिनियम, 2011 की प्रविष्टि 372 में 30 दिनों की अवधि निर्दिष्ट है, जिसके दौरान पेंशन आवेदन पर कार्रवाई की जानी है। हालांकि, इसमें कहा गया कि दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड के एसओपी में निर्माण श्रमिकों द्वारा 60 दिनों के भीतर किए गए ऐसे आवेदन के निपटान की व्यवस्था है।

अदालत ने कहा कि उनके पेंशन लाभ आवेदन को बिना किसी देरी के निस्तारित किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा…

“तथ्य यह है कि योगदान की अवधि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद बढ़ा दी गई है या सदस्यता का नवीनीकरण सेवानिवृत्ति की उम्र के बाद किया गया, पेंशन लाभ से इनकार नहीं किया जा सकता।”

“इस मामले की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए और इस तथ्य के कारण कि याचिकाकर्ता को मुकदमेबाजी के दूसरे दौर से गुजरना पड़ा है, वह भी वैधानिक अपील का प्रयोग करने के बाद और काफी लंबी अवधि के लिए उसकी सही पेंशन से वंचित कर दिया गया, याचिकाकर्ता को जुर्माने के रूप में 25000/-रुपये का मुआवजा दिया जाता है। उक्त जुर्माने का भुगतान बोर्ड द्वारा आठ सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को किया जाएगा। सभी लंबित आवेदनों के साथ याचिका, यदि कोई हो, का उपरोक्त शर्तों के अनुसार निस्तारण किया जाता है।”

अदालत ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए कहा कि बोर्ड के रजिस्ट्रेशन कार्ड और आधार कार्ड में उसकी जन्म तिथि सही दर्ज थी। दोनों दस्तावेजों के बीच कोई विरोधाभास या अंतर नहीं था।

अदालत का फैसला

अदालत ने कहा कि कर्मचारी के पेंशन आवेदन पर कार्रवाई नहीं करने का कोई औचित्य नहीं है और वह पेंशन और अन्य लाभ जारी करने के लिए कानून में निर्धारित शर्तों को पूरा करता है। ऐसे में याचिकाकर्ता को देय पेंशन जारी करने की याचिकाओं को अनुमति दी जाती है।

अदालत ने दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड पर पंजीकृत बढ़ई को पेंशन देने से मना करने पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

अदालत ने देय पेंशन ब्याज सहित आठ सप्ताह के भीतर जारी करने का आदेश दिया। बोर्ड द्वारा कर्मचारी को जुर्माना राशि का भी भुगतान आठ सप्ताह के भीतर करने का निर्देश दिया।