नए किस्म के रोजगार, कम वेतन, कठिन कार्यस्थितियों से अमेरिका में संगठित हो रहे हैं मज़दूर

0
0

1965 के बाद पहली बार मजूदर यूनियनों ने अपार लोकप्रियता हासिल की है। गूगल, ऐमजॉन, एपल सहित यूनियन गतिविधि में पिछले एक साल की तुलना में 58 फीसदी तेजी दर्ज हुई है।

अमेरिका में एकबार फिर मज़दूर आंदोलन उभर पर है। मुनाफे की आंधी हवस में शोषण चरम पर है। नए किस्म के रोजगार के इस दौर में जोखिम भरी कार्य स्थितियाँ व बेहद कम वेतन से बेहद कठिन हालत बने हैं। ऐसे में मज़दूर कार्यबहिष्कार, प्रतिरोध से लेकर यूनियनबद्ध होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं।

गूगल और ऐमजॉन जैसी कंपनियों में श्रमिक यूनियन बन रही हैं। पिछले साल दिसंबर में बरिस्ता में भी यूनियन बन गई। इसी हफ्ते ओकलाहामा में एपल के एक स्टोर के मज़दूरों ने यूनियन को बनने के पक्ष में वोट दिया। इससे पहले मैरीलेंड में एपल के कर्मचारी भी ऐसा कर चुके थे।

यूनियनबद्ध होने में आई तेजी

अमेरिका में लेबर यूनियन होने के बारे में अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी गैलप के एक हालिया सर्वेक्षण में बड़ी संख्या में लोगों ने इसकी ज़रूरत बतायी है। अगस्त में आए एक पोल के मुताबिक 71 फीसदी मज़दूर लेबर यूनियन का समर्थन करते हैं। यह 1965 के बाद सबसे ज्यादा संख्या है।

1930 की दशक में आई महामंदी के बाद अमेरिका में यूनियन सदस्यता में सबसे ज्यादा तेजी आई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अक्टूबर 2021 से जून 2022 के दौरान यूनियन गतिविधि में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 58 फीसदी तेजी दर्ज हुई है।

अमेरिकी श्रम आंदोलन 1980 के दशक से पतन का शिकार रहा है। लेकिन पिछले दो साल के दौरान, अमेरिकी श्रम शक्ति में कुछ हरकत दिखनी शुरू हुई थी। गैलप के मुताबिक 1965 के बाद पहली बार मजूदर यूनियनों ने अपार लोकप्रियता हासिल की है।

अमेरिका में धड़ाधड़ यूनियन बनने लगी हैं। जॉन डियरे, केलॉग्स और नाबिस्को जैसी निजी सेक्टर कंपनियों में हाल की हड़तालों को मिली सफलता को देखते हुए उन्हें स्ट्राइकटोबर नाम दिया है।

दिलचस्प बात यह है कि यूनियन बनाने में नए जमाने की कंपनियों के मज़दूर आगे हैं। इस साल अप्रैल में जब ऐमजॉन के एक बड़े वेयरहाउस के मज़दूरों ने यूनियन बनाने फैसला किया तो अमेरिका के कॉरपोरेट जगत ने भी इसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।

https://mehnatkash.in/2022/06/25/americas-labor-movement-is-growing-in-a-new-beginning/

शोषणकारी स्थितियाँ, मज़दूरों में बढ़ता असंतोष

दरअसल बढ़ती बेरोजगारी और नए किस्म के रोजगार में पढ़े-लिखे काबिल युवाओं को कम वेतन मिल रहा है। सामाजिक और कार्यस्थल की सुरक्षा नहीं के बराबर हाई। नौकरी की अस्थिरता बनी हुई है। इससे स्वाभाविक रूप से मज़दूरों में असंतोष बढ़ रहा है।

सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में लेबर एंड एम्प्लॉयमेंट स्टडीज के प्रोफेसर जॉन लोगान का कहना है कि ये मज़दूर ज्यादा काम, कम मजदूरी और ज्यादा शिक्षित हैं। कोरोना महामारी ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। कम वेतन पाने वाले मज़दूरों को नौकरी जाने का डर लगा रहता है। कार्यस्थल पर सुविधाओं की कमी भी इसकी एक वजह है।

ऐमजॉन के वेयरहाउस के मज़दूरों ने यूनियन बनाने के बाद फेस मास्क और दूसरे सुरक्षा उपकरणों की कमी का हवाला देते हुए कार्यबहिष्कार किया था।

https://mehnatkash.in/2022/10/03/increase-in-hourly-wages-for-us-amazon-warehouses-and-delivery-workers/

यह अंध मुनाफे की चक्की में पिसते मज़दूरों की आवाज है

श्रमिक विशेषज्ञ और सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में प्रोफेसर रूथ मिल्कमैन ने कहा कि मज़दूर न केवल सम्मानजनक वेतन चाहते हैं बल्कि अपने लिए सम्मान भी चाहते हैं। महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने नौकरी छोड़ी है। इससे लोग ज्यादा मुखर हो गए हैं।

मजदूरों के और सक्रिय होने की एक वजह, 2020 का ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन है। काले लोगों की जिंदगियों की अहमियत की याद दिलाते इस आंदोलन में लाखों लोग जॉर्ज फ्लॉयड, ब्रिओना टेलर, अहमद आर्बरी और दूसरे कई लोगों की हत्याओं की भर्त्सना करते हुए सड़कों पर उतर आए थे।

1970 के दशक से अमेरिकी में वेतन की तुलना में उत्पादकता कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है। पूंजीवादी विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि स्थाई आर्थिक बृद्धि के लिए दोनों के बीच तालमेल जरूरी है। वैसे भी पूंजीवाद के इस चरम दौर में ऐसा कोई तालमेल संभव नहीं है। यह अंध मुनाफे की चक्की में पिसते मज़दूरों की आवाज है। यह वर्ग संघर्ष की बानगी है जो और तीखा ही होगा।

यह गौरतलब है कि आंदोलन के पक्ष में सकारात्मक संकेतों के बावजूद अमेरिका में श्रम अपेक्षाकृत रूप से कमजोर है और उसके सामने बहुत सारी राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियां हैं।