क्या वे दोनों ट्विट कोर्ट की अवमानना हैं?
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने बहुचर्चित व वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट के चलते अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया। अब अदालत 20 अगस्त को फैसला सुनाएगी। इस फैसले का व्यापक विरोध भी शुरू हो गया है। लोगों ने इसे अभिव्यक्ति का गला घोंटने की ही कड़ी का एक और मुकाम बताया है।
कोर्ट ने प्रशांत भूषण की यह माँग ठुकरा दी कि इस मामले में याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि इसमें खामी है। अदालत ने यह माँग भी नहीं मानी थी कि इस केस को किसी अन्य बेंच को भेजा जाए।
अदालत ने शुक्रवार को श्री भूषण को भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के बारे में अपने दो ट्वीट्स के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया। बीते 5 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे की विस्तृत बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक फैसला पढ़ते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि प्रशांत भूषण ने ‘गंभीर रूप से अदालत की अवमानना’ की है। अब 20 अगस्त को पीठ सजा पर सुनवाई करेगी।
असल मामला क्या है?
प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट को लेकर दो ट्वीट किए थे, जिसे लेकर अवमानना कार्यवाही चल रही थी।

प्रशांत भूषण ने 27 जून को एक ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वो इस विनाश में विशेष तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को लेकर पूछेंगे।’
प्रशांत भूषण ने 29 जून को एक तस्वीर को ट्वीट किया था और सीजेआई की आलोचना करते हुए लिखा था, ‘सीजेआई राजभवन नागपुर में बीजेपी नेता से संबंधित पचास लाख की मोटरसाइकिल पर बिना मास्क या हेलमेट के सवारी कर रहे हैं।’

दरअसल, जब देश में मास्क और लॉकडाउन के नियमों को लेकर सख्ताई की जा रही थी तब देश के मुख्य न्यायधीश जस्टिस एएस बोबड़े एक भारी भरकम मोटरसाइकिल के साथ तस्वीर खिंचाते नजर आ रहे हैं। तस्वीर में सीजेआई बोबड़े बिना हेलमेट के दिख रहे हैं और मुंह पर मास्क भी नहीं पहना था। जस्टिस बोबड़े की यह तस्वीर ऐसे समय में सामने आयी थी।
सक्रियता से उठाते रहे हैं मामले
प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसले लगातार उठाते रहे हैं और हाल ही में उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में शीर्ष अदालत के रवैये की तीखी आलोचना की थी।
भूषण ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिए थे।
प्रशांत भूषण का कोर्ट में प्रस्तुत पक्ष
प्रशांत भूषण की ओर से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने सफाई पेश करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ न्यायपालिका की सामान्य आलोचना की थी और ये किसी दुर्भावना से प्रभावित नहीं था। दवे ने कहा कि न्यायपालिका के कामकाज में कई सारी कमियां हैं, जिसके कारण प्रशांत भूषण ने आलोचना की थी।

इस मामले को लेकर सौंपे 140 पेज के विस्तृत हलफनामे में भूषण ने कहा था, ‘सीजेआई या सीजेआई के उत्तराधिकारियों के कार्यों की आलोचना करना न्यायालय को अपमानित करना और उसके अधिकार को कम करना नहीं है। ऐसा मानना या सुझाव देना कि सीजेआई ही सुप्रीम कोर्ट हैं और सुप्रीम कोर्ट सीजेआई है, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संस्था को कमजोर करना है।’
भूषण ने कहा कि मोटरसाइकिल पर सवार भारत के मुख्य न्यायाधीश के बारे में उनका ट्वीट सुप्रीम कोर्ट में पिछले तीन महीनों से अधिक समय तक होने वाली अप्रत्यक्ष सुनवाई को लेकर उनकी पीड़ा को रेखांकित करने वाला था, जिस दौरान शायद ही किसी मामले की सुनवाई हुई हो।
हलफनामे में आगे कहा गया है कि भारत के पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों के बारे में भूषण का ट्वीट उनके बारे में उनका वास्तविक प्रभाव था और यह उनका विचार है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को नष्ट करने की अनुमति दी और इस तरह की अभिव्यक्ति को अवमानना नहीं माना जा सकता है।
प्रशांत भूषण की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है, ‘मैंने जो कुछ भी ट्वीट किए हैं, वे इस प्रकार के हैं कि पिछले वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के तरीके और कामकाज के बारे में मेरी वास्तविक राय है और विशेष रूप से पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका के बारे में, कार्यपालिका की शक्तियों पर अंकुश लगाने और सर्वोच्च न्यायालय के पारदर्शी व जवाबदेह तरीके से कार्य करने को सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका यह कहने के लिए विवश करती है कि उन्होंने लोकतंत्र को कमजोर करने में योगदान दिया।’
आगे कहा गया है, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आलोचना के अधिकार में न्यायपालिका की निष्पक्ष और मजबूत आलोचना शामिल है। यह किसी भी तरह से अदालत की अवमानना या अदालत की गरिमा को कम करना नहीं है।’
अभी एक और अवमानना का मामला लंबित है
प्रशांत भूषण के खिलाफ एक और अवमानना कार्यवाही चल रही है जिसमें ये आरोप लगाया गया है कि साल 2009 में तहलका पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने पूर्व जजों पर भ्रष्टाचार के बेबुनियाद आरोप लगाया था, जिसके कारण अदालत की अवमानना होती है।
इस मामले पर भी कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई करने का फैसला किया है।
फैसले का व्यापक विरोध
दूसरी ओर देश भर में बहुत से लोगों और संगठनों ने अदालत के इस निर्णय को सही नहीं माना है। लोगों ने इस बात के लिए प्रशांत भूषण की सराहना की कि उन्होंने माफ़ी माँगने के बजाय सजा भुगतने के लिए जेल जाना बेहतर समझा। श्री भूषण और उनके पिता पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण न्यायपालिका की जवाबदेही के लिए सक्रिय हैं।
सोनभद्र में प्रशांत भूषण की सजा के खिलाफ आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, मजदूर किसान मंच व आदिवासी वनवासी महासभा कार्यकर्ताओं ने शुरू किया विरोध।
मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक सोशलिस्ट नेता डा सुनीलम ने कहा, “प्रशांत जी ने समझौता करने माफी मांगने की बजाए जेल जाने का विकल्प चुना। हमारे लिए यह गर्व का विषय है। उनसे यही उम्मीद थी।”
प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने ट्विट में लिखा, ‘इस अधिनियम के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने खुद को नीचा दिखाया है, और गणतंत्र को भी नीचा दिखाया है। भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला दिन।’