जबकि, सरकार कह रही है कि सब कुछ सही है, सामान्य है !
5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार द्वारा स्वायत्तता छीने जाने के बाद, जम्मू कश्मीर में संचारबंदी के छह महीने गुज़र चुके हैं। इस मौके पर रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) यह बता रहा है कि इस क्षेत्र में पत्रकार कैसे काम कर रहे हैं। कश्मीरी ज़्यादा भ्रम में नहीं थे। उच्चतम न्यायालय के 10 जनवरी के आदेश के बाद, कि कश्मीर घाटी में संपूर्ण इंटरनेट बंदी गैरकानूनी है, सरकार ने 153 वेबसाइट की “व्हाईट लिस्ट“ प्रकाशित की जो कि अब कश्मीरियों को उपलब्ध थी। 24 जनवरी को साइट की संख्या बढ़ाकर 301 की गई।
सरकार ने यह भी दावा किया कि उसने 2जी मोबाइल इंटरनेट सेवा बहाल कर दी है और 844 बूथ का नेटवर्क स्थापित कर रही है जहां से आम लोग इंटरनेट का इस्तमाल सकेंगे, लेकिन अस्सी लाख की आबादी वाले क्षेत्र के लिए इसका मतलब यह हुआ कि हर 9500 संभावित उपयोगकर्ताओं के लिए केवल एक कनेक्शन प्वाइंट।
“व्हाईट लिस्ट“ में शामिल की गयी वेबसाइटों का चयन पूरी तरह मनमाना दिख रहा है। सोशल मीडिया, समाचार साइट और पीयर टू पीयर नेटवर्क योजनाबद्ध तरीके से बाहर रखे गये। इसी तरह गूगल और याहू जैसे सर्च इंजन के भारतीय संस्करणों पर सेंसर जारी है, लेकिन याहू का का क्यूबेक संस्करण लिस्ट में है। इसके अलावा, मीडियानामा समाचार वेबसाईट के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार केवल 58 साइटों तक ही वास्तव में पहुंचा जा पा रहा है।
आरएसएफ के एशिया पैसिफिक डेस्क प्रमुख डैनियल बस्टार्ड ने कहा, “नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से घोषित कदमों के बेतुकेपन को दरकिनार क्रर भी दिया जाए, तो उच्चतम न्यायालय के फैसले पर उनकी प्रतिक्रिया अपमानजनक और उपेक्षापूर्ण है।“ उन्होंने कहा, “प्रतिबंध बनाये रखने से कश्मीरी पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने से रोका जा रहा है और समूचे क्षेत्र के नागरिकों को विश्वसनीय और स्वतंत्र तरीके से की गई रिपोर्टिंग, समाचार एवं जानकारी से वंचित रखा जा रहा है। हम उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों से अनुरोध करते हैं कि इस मुद्दे पर वह और बारीकी से नज़र डालें और सुनिश्चित करें कि कार्यपालिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करना बंद करे, जो कि वह छह महीने से कर रही है।“
कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में आरएसएफ ने पुष्टि की है कि “व्हाईट लिस्ट“ में शामिल कई साइट वास्तव में 2जी कनेक्शन की कमज़ोरी के कारण उपलब्ध नहीं हैं, जो मूल रूप से एसएमएस संदेश भेजने के लिए तैयार किया गया था। बैंडविथ बहुत कमज़ोर और आंशिक है और कनेक्शन बार बार टूटता है।
असल में, केवल उन्हीं साइट तक पहुंच संभव हो पा रही है, जिन पर सिर्फ टेक्स्ट यानी सिर्फ पढ़ी जा सकने वाली सामग्री है और यह पत्रकारीय कार्य को सीमित करता है। फ्रीलांसर कुर्तुलैन रहबर ने कहा, “छह महीने पहले जैसी स्थिति थी, उससे कोई बेहतर स्थिति नहीं है। 2जी स्पीड से आप कुछ नहीं कर सकते क्योंकि यह बेहद धीमी है। यह कहना मज़ाक ही है कि लोगों की बेहतरी के लिए इंटरनेट शुरू किया गया है।“ न्यूजक्लिक वेबसाइट के अनीस जरगर सहमति जताते हुए कहते हैं, “भले ही अधिकारियों ने सीमित संख्या में वेबसाइट तक पहुंच उपलब्ध करवाई है पर मेरे लिये यह उतना ही सुविधाजनक है जितना शुरुआती बैन के समय था, मतलब यह अनियमित और असुविधाजनक है।“
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के लिए कार्य करने वाले श्रीनगर संवाददाता सैयद अली सफवी मुश्किल से काम कर पा रहे हैं। वह कहते हैं, “हर बार जब भी सरकार कश्मीर में संचारबंदी लागू करती है, विदेशी मीडिया के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों को सबसे ज़्यादा मुश्किल होती है। इसके अलावा हम पर हमेशा कड़ी नज़र रखी जाती है औैर सेंसरशिप थोपी जाती है।”
केंद्र सरकार पर क्षेत्र की कवरेज पर नियंत्रण का आरोप लगाते हुए पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार गौहर जिलानी ने कहा, “सत्तारूढ़ भाजपा के हिंदू श्रेष्ठतावादियों की तरफ से यह स्पष्ट रूप से कश्मीर की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। कश्मीर को एक खुली जेल में तब्दील कर दिया गया है। यह सूचना ब्लैकहोल इतिहास में सबसे लंबा ई-कर्फ्यू है और पत्रकारिता को लगभग असंभव बना रहा है।“
अर्ली टाइम्स के संवाददाता जहांगीर रशीद ने कहा, “सूचना का अधिकार आज बुनियादी अधिकार माना जाता है लेकिन यह दुखद है कि कश्मीरवासियों को इस बुनियादी अधिकार से वंचित किया जा रहा है।“
बंदी के बावजूद, आरएसएफ ने श्रीनगर के नौ पत्रकारों के वीडियो की श्रृंखला की, जिसमें यह बताया गया कि काम करना कैसे असंभव सा है और कैसे केंद्र सरकार क्षेत्र से आने वाली समूची सूचना व जानकारी पर नियंत्रण रख रही है। वॉयसेस फ्रॉम कश्मीर से यह वीडियो इंटरव्यू संचारबंदी के सौवें दिन ऑनलाइन जारी किया गया था।
आरएसएफ की 180 देशों की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट में भारत 140वें नंबर पर है लेकिन कश्मीर में पत्रकारीय स्वतंत्रता के अंकुश के कारण 2020 के इंडेक्स में इसमें और गिरावट की आशंका है।
मीडियाविजिल से साभार