श्रीलंका: धरना-प्रदर्शन के 50 दिन; राजपक्षे परिवार राजनीति छोड़े, जनता की अदालत में पेश हो!

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राष्ट्रपति के इस्तीफे की माँग; राष्ट्रपति भवन पर लगातार धरना-प्रदर्शन जारी; अभी भी निजी निवेश पर जोर। …वर्तमान संकट पूंजीवाद की देन है, जिसका समाधान पैबंद लगाने से नहीं निकलेगा।

अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ चल रहा आंदोलन शनिवार को 50वें दिन में प्रवेश कर गया। इस बीच, आयोजकों ने आंदोलन तेज करने और बड़ी प्रतिभागिता के साथ रैलियां निकालने की चेतावनी दी है।

उल्लेखनीय है कि श्रीलंका इस समय गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और दिवालिया होने के कगार पर है। श्रीलंका में इस समय लोगों को भोजन, ईंधन, दवाओं और रसोई गैस से लेकर माचिस तक की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।

लेकिन सरकार का चेहरा बदलने के बावजूद सरकार जो समाधान सुझा रही है, वह संकट को और बढ़ाने वाला है। बिजली से लेकर ईधन तक निजी निवेश को ही बढ़ाने व देश को और कर्ज में डूबने वाला है।

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राष्ट्रपति के इस्तीफे की माँग हुई तेज

राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवेश द्वार गाले फेस इलाके में जनता का 50 दिनों से लगातार धरना-प्रदर्शन जारी है। राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर एक मार्च के लिए प्रदर्शनकारी स्थानीय समयानुसार दोपहर दो बजे से काले झंडे लेकर प्रदर्शन स्थल पर इकट्ठा हुए।

प्रदर्शनकारी जनता राष्ट्रपति राजपक्षे से भी इस्तीफा देने की मांग कर रही है, हालांकि उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया है। इस बीच, अदालत के किसी आदेश का हवाला देकर पुलिस ने कहा कि सेंट्रल कोलंबो में किला क्षेत्र की कुछ प्रमुख सड़कों पर प्रदर्शनकारियों के एकत्र होने पर रोक लगा दी गई है।

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चमीरा जीवनथा नामक एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “हमारा संघर्ष तभी समाप्त होगा जब राजपक्षे परिवार राजनीति छोड़ देगा और उनके द्वारा किए गए सभी गलत कामों के लिए उन्हें लोगों की अदालत में पेश किया जाएगा।”

श्रीलंका में तबाही के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया व उनके परिवार के अन्य सदस्यों पर सत्ता छोड़ने की माँग के साथ लोग आंदोलन कर रहे हैं। नौ मई को सरकार समर्थक व विरोधी प्रदर्शनकारियों में झड़पें हो गई थीं, जिनमें 11 लोग मारे गए थे और 200 से ज्यादा घायल हुए थे। पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री बने।

बिजली संकट के लिए नया फार्मूला

बिजली संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के बिजली और ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकेरा ने रविवार को कहा कि एक त्वरित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन योजना 1 जून से लागू होने की संभावना है। कोलंबो पेज की रिपोर्ट के अनुसार, बिजली उत्पादन के लिए ईंधन बिल प्रति माह 100 मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक होने के बाद बिजली और ऊर्जा मंत्रालय में हुई चर्चा के दौरान योजना को लागू करने का निर्णय लिया गया।

अक्षय ऊर्जा उत्पादन योजना के तहत अब तक समाधानों को लागू करने के लिए दो उपाय किए गए हैं।

पहला, औद्योगिक, सरकारी, अस्पताल और होटल की छतों पर सोलर पैनल लगाने के लिए छत की जगह तलाशने की तैयारी की जा रही है। इसके अलावा, सीलोन इलेक्ट्रिसिटी (सीईबी) रात में उत्पादन लागत को कम करने में मदद करने और दिन के दौरान पैसे बचाने में मदद करने के लिए थर्मल और जल विद्युत संयंत्रों का प्रबंधन करेगा।

दूसरा, उचित शुल्क संशोधन के साथ प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए अनंतिम अनुमोदन दिया जाएगा। इस परियोजना के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, सस्टेनेबल एनर्जी अथॉरिटी और निवेशक के सहयोग से खरीद समझौते के जारी होने के बाद काम करने की उम्मीद है।

कोलंबो पेज की रिपोर्ट के अनुसार, यह निवेशक से आवश्यक निवेश के साथ राष्ट्रीय ग्रिड की क्षमता के साथ-साथ ट्रांसमिशन की लाइन को बढ़ाएगा। इसके अलावा, वित्तीय और तकनीकी मूल्यांकन के बाद, चयनित अक्षय परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर निवेश को भी समायोजित किया जाएगा।

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संकट का समाधान इधर नहीं है!

ये योजनाएं भी दरअसल संकट को हल करने की जगह निजी निवेश को बढ़ावा देने वाले ही हैं।

श्रीलंका का मौजूद संकट ही पूंजीवादी नियोजन और वैश्विक मुनाफाखोर नीतियों की देन हैं। बाजारवादी और मुनाफा केंद्रित योजनाओं ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को चौपट किया, अतिशय कर्ज का बोझ बढ़ा और देश की जनता को घोर संकट में धकेल दिया।

वर्तमान संकट का समाधान पैबंद लगाने से नहीं निकलेगा, बल्कि यह जनता के लिए नए संकटों को जन्म देगा और तबाही और विकट होगी।

जबतक व्यवस्था के केंद्र में इंसान की जगह मुनाफा रहेगा, उत्पादन आम जनता की आवश्यकताओं की जगह बाजार के लिए होगा, संकट गहराता ही जाएगा।

किसी राजपक्षे को हटाकर दूसरे राजपक्षे या विक्रमसिंघे को बिठाने से कोई हल नहीं निकलेगा। इसका वास्तविक समाधान उत्पादन, राजकाज और पूरे सामाजिक ढांचे पर मेहनतकश के सीधे नियंत्रण से ही निकलेगा।

श्रीलंका की संकटग्रस्त जनता का शानदार संघर्ष इसी लक्ष्य के साथ आगे बढ़कर वास्तविक समाधान तक पहुँच सकती है। और तभी जनता वास्तव में सकून पाएगी!

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