मानेसर| 24 जुलाई को श्रम विभाग की मध्यस्तता में प्रोटेरिअल मज़दूरों के प्रतिनिधि और प्रबंधन के बीच हुए समझौते में प्रबंधन मज़दूरों की कईं मूलभूत मांगों को मानने पर मजबूर हुआ है। समझौते में वेतन बढ़ोतरी, छुट्टियाँ व अब तक संघर्ष में निकाले गए सभी मज़दूरों की पुनः कार्यबहाली शामिल है।

विकट परिस्थितियों में भी 24 दिनों तक चली हड़ताल
प्रोटेरिअल के मज़दूर 30 जून, 2023 से हड़ताल पर थे। जुलाई 2022 में अपना मांग पत्र दाखिल करने के बाद से मज़दूर लगातार संघर्ष की राह पर रहे हैं। विभिन्न धरना-प्रदर्शन-जुलूस के अयाजनों व मई 2023 में एक दिवसीय हड़ताल के बाद भी प्रबंधन द्वारा उनके मांगपत्र व उनकी बुनियादी मांगों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। साथ ही प्रबंधन द्वारा मज़दूरों के साथ बदसलूकी और उनपर काम की प्रक्रिया में दबाव बढ़ाने की गतिविधी लगातार चल रही थी। ऐसे में मज़दूरों ने 30 जून 2023 को कंपनी के अन्दर बैठ कर अपनी हड़ताल शुरू की।
मज़दूरों के संघर्ष को तोड़ने के लिए कंपनी प्रबंधन ने हर चाल, हर साज़िश का इस्तेमाल किया। बिजली पानी बन कर देने से शुरू करके खाना अन्दर ना ले जाने देना व कोर्ट में मज़दूरों पर कंपनी से एक किलोमीटर के दायरे में प्रदर्शन ना करने के स्थायी निषेधाज्ञा की अर्ज़ी भी लगायी। कौर्ट से उनकी अर्ज़ी अस्वीकार होने पर उन्होंने मज़दूरों को पुलिस द्वारा खदेड़े जाने की धमकियाँ भी दीं। लेकिन इन सभी पैंतरों के बावजूद न केवल मज़दूर दृढ़ता से संघर्ष में डटे रहे बल्कि अपने संघर्ष को और व्यापक रूप से क्षेत्र के अन्य ठेका मज़दूरों व मज़दूर यूनियनों से जोड़ने की कोशिश में लगे रहे।



26 जुलाई को थी मानेसर से गुड़गांव तक 22 किलोमीटर जुलूस की तैयारी
20 दिन की हड़ताल के बावजूद प्रबंधन व श्रम विभाग के उदासीन रवैय्ये को देखते हुए मज़दूरों ने पिछले हफ्ते ही 26 जुलाई के लिए कंपनी गेट के सामने गेट मीटिंग व वहां से शुरू हो कर गुड़गांव डीसी ऑफिस तक जूलूस का आह्वान किया था। जुलूस की तैयारी में अन्य कंपनी के यूनियनों को आमंत्रित करना व विभिन्न मज़दूर संगठनों तक पहुँचने की प्रक्रिया भी तेज़ी से जारी थी। इसके अतिरिक्त मज़दूरों ने लगातार धरना स्साथल पर मूहिक रसोई चला कर; खतरनाक बारिश में त्रिपाल के नीचे रात बिता करव खाना न पहुंचाए जाने पर भूख हड़ताल का ऐलान करके आंदोलन की ऊर्जा को बनाए रखते थे व मालिकों के ऊपर दबाव कायम रखते रहे।

क्षेत्र के सभी ठेका मज़दूरों के एक जैसे ही हैं हालात
प्रोटेरिअल मज़दूरों की मांगे क्षेत्र के सभी ठेका मज़दूरों की मांगों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जहाँ कंपनी के पक्के मज़दूरों को 80,000 रु और ठेका मज़दूरों को 10-12 रु मिल रहे हैं वहां समान काम के लिए समान वेतन की मांग, जहाँ मज़दूर 10-10 साल मुख्य उत्पादन में सीधा कंपनी प्रबंधन के तहत झूठे ठेके के रूप में कार्यरत हैं वहां स्थायी काम पर स्थायी रोज़गार की मांग, क़ानून द्वारा निर्धारित छुट्टियों, ग्रेच्युटी और ईएसआई कार्ड की मांग, व कार्यस्थल में सुरक्षा और काम के अत्यधिक बोझ पर अंकुश।
दरअसल ठेका मज़दूरों का इस रूप में शोषण पूरे क्षेत्र में प्रबंधन द्वारा सोचे-समझे तरीके से बनाया गया है। इसी नीति को अब सरकार नए श्रम कानूनों के रूप में लागू करना चाह रही है। ऐसे में प्रोटेरिअल मज़दूरों के आंदोलनों जैसे संघर्ष अथाईकरण की इस पूरी परिकल्पना पर चोट करते हैं।



संघर्ष से निकाले कुछ नए नतीजे; आगे के आंदोलनों को मिलेगी मदद
प्रोटेरिअल आन्दोलन ने सरकार-प्रबंधन के तन्त्र से टकराकर कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण कायम किये हैं। यह इस क्षेत्र में पहली बार है जब ठेका मज़दूरों के साथ प्रबंधन श्रम विभाग की मध्यस्तता में औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत धरा 12(3) के समझौते में भागीदार बनी है वह दो मौकों पर ऐसे लिखित त्रिपक्षीय समझौतों के माध्यम से विवाद का निपटारा किया गया है। कानूनी दायरे में कंपनी द्वारा एक किलोमीटर के दायरे में मज़दूरों के प्रदर्शन पर रोक लगाने की स्थायी निषेधाज्ञा की अर्ज़ी ख़ारिज होना व न्यायालय द्वारा कंपनी के अन्दर मज़दूरों के धरने के अधिकार का समर्थन करना भी आन्दोलन से निकलने वाला एक महत्वपूर्ण उदाहरण हैं जो आने वाले समय में अन्य आंदोलनों में भी मज़दूरों का पक्ष मज़बूत करेगा।
प्रबंधन के प्रचार से व कम्पनियों में बने काम के तरीके से ठेका मज़दूरों में व्यापक तौर से यह मानसिकता बनाई गयी है कि ठेका मज़दूर संगठित नहीं हो सकते, अपनी यूनियनें नहीं बना सकते व अपनी मांगों को उठाने का कोई भी प्रयास करने से वे अपनी नौकरी गवा सकते हैं। प्रोटेरिअल का आन्दोलन इस व्यापक निराशावादी सोच को चुनौती देते हुए ठेका व अस्थायी मज़दूरों के बीच संगठित संघर्ष की संभावना, ज़रुरत और प्रासंगिकता को सामने रखता है। हर कंपनी में आम हो चुके, व देश के श्रम कानूनों द्वारा भी मान्य माने जा रहे अस्थायी रोज़गार के चलन के ख़िलाफ़ संघर्ष में यह पूरे मज़दूर आन्दोलन के लिए एक आगे बढ़ता कदम है।
क्षेत्र के अन्य यूनियनों व संगठनों का मिला समर्थन
प्रोटेरिअल मज़दूरों ने इस पिछले एक साल में अपने खुद के कार्यक्रमों के अलावा क्षेत्र में मज़दूरों के हो रहे सभी संघर्षों और कार्यक्रमों में अपनी पूरी भूमिका निभायी। चाहे वो मारूति के बर्खास्त मज़दूरों के प्रदर्शन हो या बेल्सोनिका के मज़दूरों का धरना, या क्षेत्र में सभी यूनियनों द्वारा मई दिवस के अवसर पर आयोजित साझा कार्यक्रम हो या 18 जुलाई को एमएसएमएस द्वारा बुलाई गयी रैली हो, प्रोटेरिअल के मज़दूर हर जगह अपनी पूरे क्षमता के साथ पहुँचते रहे। प्रबंधन ने लगातार उनके बाकी आंदोलनों के साथ तालमेल के रुख पर अंकुश लगाने की कोशिश की और समझौता वार्ता में इससे एक बड़ा मुद्दा बनाते रहे जिसके बाद भी मज़दूर क्षेत्र स्तरीय आंदोलन से जुड़े रहे। इसका परिणाम इस बात में भी नज़र आया की प्रोटेरिअल मज़दूरों के धरने पर क्षेत्र के स्थायी मज़दूरों की युनियनें भी पहुँचती रहीं। इमें मारूति कार प्लांट, मारूति सुजुकी पॉवरट्रेन व बेल्सोनिका यूनियन भी शामिल रहीं।





