चुनाव पूर्व सर्वेक्षण: मतदाताओं ने माना; असल चुनावी मुद्दे भयावह बेरोज़गारी, बढ़ता भ्रष्टाचार, महंगाई है

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सीएसडीएस-लोकनीति का सर्वेक्षण: 60% के अनुसार पिछले पांच वर्षों में नौकरी पाना अधिक कठिन हो गया है, 55% ने माना भ्रष्टाचार बढ़ा है, विकास ‘केवल अमीरों के लिए’ हुआ है।

नई दिल्ली: सीएसडीएस-लोकनीति द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं ने बेरोजगारी, महंगाई और विकास को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक तीन मुद्दों में शुमार किया है.

इनमें बेरोजगारी और महंगाई सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए सिरदर्द पैदा करने में सक्षम हैं. द हिंदू के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन उत्तरदाताओं ने ‘विकास’ को मुद्दा बताया है, वे भाजपा को वोट दे सकते हैं.

बेरोजगारी – जो राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरी थी – समय के साथ तीव्र हो गई है और महत्वपूर्ण रूप से भारत की युवा आबादी को प्रभावित कर रही है, जैसा कि हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में पाया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि 2022 में कुल बेरोजगार आबादी में बेरोजगार युवाओं की हिस्सेदारी 82.9% थी.

अध्ययन में पाया गया है कि लगभग तीन-पांचवें (60 फीसदी) उत्तरदाताओं को लगता है कि पिछले पांच वर्षों की तुलना में नौकरी पाना अधिक कठिन हो गया है, जो नौकरी बाजार में मौजूदा चुनौतियों को रेखांकित करता है. केवल 12% ने कहा कि उन्हें नौकरी पाना आसान लगता है.

जहां ‘विकास’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक प्रमुख मुद्दा है, वहीं, 10 में से 2 मतदाताओं का मानना ​​है कि पिछले पांच वर्षों में देश में कोई विकास नहीं हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘… चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में पाया गया कि 32% मतदाता सोचते हैं कि पिछले पांच वर्षों में विकास ‘केवल अमीरों के लिए’ हुआ है.’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘केवल 8% उत्तरदाताओं’ ने भ्रष्टाचार और अयोध्या में राम मंदिर को अपने प्रमुख मुद्दों के रूप में उल्लेख किया है. हालांकि, अधिकांश मतदाताओं के बीच यह धारणा है कि मोदी सरकार के पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है.

इस बीच, न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को लेकर किसानों के विरोध जैसे मुद्दों की गूंज है. 63 प्रतिशत किसानों ने कहा कि किसानों के विरोध प्रदर्शन की मांगें वास्तविक हैं, जबकि केवल 11 प्रतिशत ने आंदोलन को साजिश माना.

द वायर से साभार