लॉकडाउन में फंसे मां-बाप,महीनों से बेटियां भी दूर

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परिवार से अलग फुटपाथ पर रहने को मजबूर

खुशहाली और आंचल ने लगभग एक महीने से अपने माता-पिता और पांच साल के भाई को नहीं देखा है।तीन साल की आंचल शिंदे बड़ी मुश्किल से कुछ खाती है और दिनभर रोती रहती है। देशव्यापी लॉकडाउन के चलते वो अपने माता-पिता से दूर है। आंचल और उसकी सात साल की बहन खुशहाली अब कांदिवली के पोइसर जिमखाना के पास एक फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं। यहां उनका मौसी दोनों की देखभाल करती हैं। इन मासूमों के माता-पिता करीब 54 किलोमीटर दूर अंबरनाथ में एक किराए के घर में रहते हैं। लॉकडाउन और जिले की सीमाएं सील होने के बाद अब लगभग एक महीना हो गया है जब से दोनों बच्चों ने अपने माता-पिता को नहीं देखा है।

बुरी तरह रोते हुए खुशहाली कहती है, ‘मेहरबानी करके कोई मेरी मां को वापस बुला लो। आंचल उन्हें बहुत याद करती है।’ इनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं जो पांच महीने पहले एक ठेकेरार के पास काम करने के लिए बच्चों के साथ अंबरनाथ चले आए थे। ठेकेदार नगरपालिका में नालियों की मरम्मत कराने का काम करता है।अंबरनाथ से फोन पर दोनों बच्चों की मां सुरेखा (26) ने बताया, ‘मैं बच्चों के साथ 19 मार्च को अपने बहन से मिलने के लिए कांदिवली गई थी। 22 मार्च (जनता कर्फ्यू का दिन) को मैं अपने पति के साथ ठेकेदार से अपनी मजदूरी लेने के लिए अंबरनाथ लौट आई थी। ये एक बड़ी रकम थी। मगर जब हम यहां पहुंचे तो ठेकेदार ने बताया कि भुगतान में एक या दो दिन की देरी होगी। इसलिए हम वहीं रुके रहे। हमें थोड़ी जानकारी थी कि देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की जाएगी और हम इतने लंबे समय के लिए अपने बच्चों से अलग हो जाएंगे। मगर हम उम्मीद कर रहे थे 14 अप्रैल को ट्रेनें फिर से शुरू हो जाएंगी, मगर ऐसा नहीं हुआ।’

सुरेखा अपील करते हुए कहती हैं, ‘मेरी बेटियां मेरा इंतजार कर रही हैं, प्लीज मुझे उनके पास वापस ले चलो।’ उनके पति शेखर कहते हैं, ‘हमारे पास अब भोजन नहीं बचा है। बारह दिन पहले स्थानीय पार्षद ने कुछ चावल, गेंहू और प्याज दी थी, लेकिन अब वो भी खत्म हो चुका है।’इसी बीच सुरेखा कहती हैं, ‘हमारा पांच साल का बेटा उस वक्त हमारे साथ ही आ गया था, वो अपनी बहनों को बहुत याद करता है। लॉकडाउन में कम से कम हम अपने रिश्तेदारों के पास जाने का प्रबंधन करते हैं तो हम वहां अधिक सुरक्षित रहेंगे। हमें नहीं पता कि लॉकडाउन कितने समय तक रहेगा मगर हमारी बेटियां वहां अकेली हैं।’

जनसत्ता से साभार