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नई दिल्ली, 14 मई ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस

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May 15, 2024
in अभी अभी, राजनीति / समाज
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नई दिल्ली, 14 मई ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस
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(जीएएनएचआरआई) ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) भारत की पुनः मान्यता लगातार दूसरे साल टाल दी है।

जिनेवा स्थित जीएएनएचआरआई, अपनी मान्यता उप-समिति (एससीए) के माध्यम से, एनएचआरआई (नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्ट्यूशंस) के पेरिस सिद्धांतों के अनुपालन में समीक्षा और मान्यता के लिए जिम्मेदार है।

जीएएनएचआरआई की वेबसाइट के अनुसार, यह एक “कठोर प्रक्रिया है, जो चार क्षेत्रों: अफ्रीका, अमेरिका, एशिया प्रशांत और यूरोप” में से प्रत्येक के एनएचआरआई प्रतिनिधियों द्वारा पूरी की जाती है।

भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लगातार दूसरे साल अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली

जीएएनएचआरआई ने माना है कि सदस्यों की नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी है, साथ ही आयोग अपने मामलों की जांच की देखरेख के लिए पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति करता है।

सूत्रों ने बताया कि जीएएनएचआरआई ने हाल ही में अपनी समीक्षा बैठक के दौरान एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) की पुनः मान्यता को टाल दिया।

उन्होंने कहा कि पिछले साल, एनएचआरसी की समीक्षा को एक साल के लिए टाल दिया गया था, जो इसकी पुनः मान्यता के लिए मार्च 2023 में होनी थी।

एक सूत्र ने कहा कि मान्यता को टाले जाने का मतलब है कि अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

संयुक्त राष्ट्र पेरिस सिद्धांतों और जीएएनएचआरआई विधान के अनुसार, जीएएनएचआरआई मान्यता के लिए दो वर्गीकरणों का उपयोग किया जाता है: ‘ए’ – पूरी तरह से पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप और ‘बी’ – आंशिक रूप से पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप।

एनएचआरसी द्वारा 2018 में जारी एक बयान के अनुसार, 1993 में स्थापित मानवाधिकार आयोग को पहली बार 1999 में मान्यता का ‘ए’ दर्जा मिला था, जिसे उसने 2006 और 2011 की समीक्षाओं में बरकरार रखा था। यह 2016 के लिए समीक्षा की प्रक्रिया के तहत था, जिसे नवंबर, 2017 में दूसरे सत्र के लिए टाल दिया गया था, जिसके दौरान जीएएनएचआरआई की मान्यता पर उप समिति ने सिफारिश की थी कि एनएचआरसी, भारत को फिर से ‘ए’ दर्जा दिया जाए।

जीएएनएचआरआई की स्थापना भी 1993 में हुई थी।

तेरह दिसंबर, 1993 को ट्यूनिस, ट्यूनीशिया में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में, एनएचआरआई के एक समूह ने राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक नेटवर्क की नींव रखी, जिसे आज जीएएनएचआरआई के नाम से जाना जाता है।

मान्यता के तहत अन्य कारकों के साथ-साथ पेरिस सिद्धांतों के अनुपालन को भी ध्यान में रखा जाता है।

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि यह “दुखद और शर्मनाक” है कि जीएएनएचआरआई ने एनएचआरसी को मान्यता देने से इनकार कर दिया है।

चिदंबरम ने मंगलवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “एक मान्यता प्राप्त मानवाधिकार निकाय के रूप में एनएचआरसी के दर्जे को 2023 में निलंबित कर दिया गया था और अब 2024 में फिर से। जीएएनएचआरआई ने निष्कर्ष निकाला है कि भारत का एनएचआरसी अंतरराष्ट्रीय निकाय को इसको लेकर संतुष्ट करने में विफल रहा है कि एनएचआरसी ‘सरकारी हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से काम करने में सक्षम है। यह एनएचआरसी और भारत सरकार के लिए एक झटका है।”

हालांकि, सूत्रों का कहना है कि मान्यता टालने का मतलब है कि अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

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