4 अगस्त, गुड़गांव | कल 3 अगस्त को मज़दूर सहयोग केंद्र और इंकलाबी मज़दूर केंद्र द्वारा डीसी कार्यालय के आगे सभा का आयोजन किया गया और हरियाणा सरकार व भारत के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन सौंपा गया। कार्यक्रम में क्षेत्र के अन्य सामाजिक संस्थाओं, मज़दूर संगठनों और वकीलों ने भी भागीदारी निभायी जिनमें प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और स्वराज अभियानभी शामिल थे।

संगठनों ने गरीब मेहनतकश मज़दूर तबके पर चल रही साम्प्रदायिक हिंसा का असर व इनमें विशेषकर अल्पसंख्यक मुसलमान समुदाय के प्रवासी मज़दूर के साथ हो रही हिंसा, उन्हें काम से और घरों से निकालने की कोशिशों को उजागर किया और प्रशासन से इस विषय में तीव्र हस्तक्षेप की मांग की। आज गुड़गांव क्षेत्र में रेड़ी-पटरी व छोटे दूकान लगाने वाले अल्पसंख्यक तबके से आने वालों की आबादी तेज़ी से गाँव की ओर पलायन कर रही है। यह पूरी परिघटना सरकार की आँखों के सामने बल्कि उनकी देखरेख में होती दिख रही हैं। सभी वक्ताओं ने प्रशासन से मांग की कि शहर छोड़ कर जा रहे ऐसे प्रवासी मज़दूरों को आश्वस्त करें व इनके ऊपर दबाव बनने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही हो।
2 अगस्त को मानेसर के भागरौला गाँव में हुई पंचायत का पुरज़ोर विरोध किया गया। पुलिस के मुताबिक़ ऐसी पंचायत को अनुमति नहीं दिए जाने के बावजूद उसका आयोजन व उसमें मुसलमान मज़दूरों को क्षेत्र छोड़ कर जाने की धमकी पुलसी प्रशासन द्वारा लिए जा रहे कदम की प्रभावकारीता पर संगीन प्रश्न उठाते हैं। वहीं बजरंग दल, आरएसएस व इनसे सम्बंधित विभिन्न संगठनों को मिली खुली छूट आने वाले राज्य और लोक सभा के चुनाव की तैयारी की कड़ी है जो सरकार के प्रति लोगों में बनी निराशा से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है।
साम्प्रदायिक अजेंडे को सीमित करने में नज़र आया किसान आन्दोलन का प्रभाव
किसान आन्दोलन द्वारा हरियाणा की जनता को मिली सीख आज इन सांप्रदायिक दंगों के फैलने में एक बड़ी रुकावट बनी हैं क्योंकि जनता सरकार व संघ की विभेदकारी राजनीति को समझ चुकी है। इसी तरह इस क्षेत्र में मज़दूर आन्दोलनों का इतिहास में हर धर्म के मज़दूरों का नाम छपा हुआ है। जनता के हितों में हुए यह संघर्ष जनता के लिए धर्म-जाति के विभाजन से उठ कर एकता की ज़रुरत के मिसाल हैं। इसका असर इस बात में भी नज़र आ रहा है की राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वधर्म पंचायतों के आयोजन करके सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश को चुनौती दी जा रही है और खट्टर सरकार व भाजपा-आरएसएस की निंदा की जा रही है।
आज दोनों ही पक्षों से इस हिंसा में धकेले जा रहे युवा दरअसल बेरोज़गार मेहनतकश परिवारों के बच्चे ही हैं जिन्हें यह सरकार शिक्षा, रोज़गार और अपने भविष्य की कोई उज्जवल कल्पना नहीं दे पा रही और जो गलत विचारधरा, क्रोध और लालच के चपेट में आकर इस हिंसा में कूद रहे हैं। दंगों में किसी भी समुदाय के मेहनतकश व सबसे कमज़ोर तबके को ही जान माल का नुक्सान होता है, और फायदा बड़े राजनेता और पार्टियाँ उठाती हैं। ऐसे में इस माहौल को चुनौती दे कर जनता के असल मुद्दों को उठाना, व हमले के शिकार हो रहे मज़दूर साथियों के साथ खड़ा होना हर न्यायप्रीय और सचेत मज़दूर की ज़िम्मेदारी है।