लाकडाउन के बीच बसों को गुपचुप तरीके से गुजरात भेजा गया
लाकडाउन के बीच उत्तराखंड में फंसे गुजरातियों के लिए राज्य सरकार ने लग्जरी बसें उपलब्ध कराईं और उन्हें घर पहुंचाया। लेकिन, वापसी में गुजरात में फंसे उत्तराखंड के लोगों से किराए के तौर पर मोटी रकम वसूली गई और उन्हें हरियाणा -राजस्थान बार्डर पर छोड़ दिया गया। ऐ लोग अब न घर के हुए न घाट के। यह सब इतने गुपचुप तरीके से हुआ कि किसी को कानों कान खबर न हुई। सोशल मीडिया पर उत्तराखंड राज्य सरकार के इस कदम पर सवाल उठ रहे हैं और सरकार की फजीहत हो रही है।
दरअसल, गुजरात के मुख्यमंत्री के सचिव अश्वनी कुमार ने एक न्यूज एजेंसी को बताया- ‘गुजरात के अलग-अलग जिलों के करीब 1800 लोग हरिद्वार में फंसे हुए थे। केंद्रीय मंत्री मनसुखभाई मांडविया, गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के विशेष प्रयासों से इन लोगों को वहां से निकालकर इनके घर पहुंचाने की व्यवस्था की गई।’ इसी व्यवस्था के चलते उत्तराखंड परिवहन की कई गाड़ियां हरिद्वार से अहमदाबाद पहुंची थी। दिलचस्प है कि ये काम इतनी गोपनीयता से किया गया कि उत्तराखंड के परिवहन मंत्री तक को ये खबर नहीं लगी कि उनके विभाग की कई गाड़ियां लॉकडाउन के दौरान कई राज्यों की सीमाओं को पार करते हुए 1200 किलोमीटर के सफर पर निकल चुकी हैं।

27 मार्च को जारी एक आदेश से मालूम पड़ता है कि उत्तराखंड परिवहन की ये गाड़ियां सीधे प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देशों के तहत गुजरात भेजी गई थीं। इनका उद्देश्य हरिद्वार में फंसे गुजरात के लोगों को उनके घर पहुंचना था। वापस लौटते हुए यही गाड़ियां वहां फंसे उत्तराखंड के लोगों को लेकर आ सकती थी, लेकिन ऐसा कोई भी आदेश उत्तराखंड सरकार की ओर से जारी नहीं हुआ।
जब ये बसें हरिद्वार से रवाना होने लगी और यह खबर सार्वजनिक हुई तो यह मामला विवादों से घिरने लगा। सवाल उठने लगे कि जब लॉकडाउन के चलते पूरे देश में ही लोग अलग-अलग जगहों पर फंसे हैं और उत्तराखंड में भी कई अलग-अलग राज्यों के लोग फंसे हैं तो सिर्फ गुजरात के लोगों के लिए ही विशेष बसें क्यों चलाई जा रही हैं? इसके साथ ही यह भी सवाल उठे कि तमाम जगहों से उत्तराखंड के जो प्रवासी पैदल ही लौटने पर मजबूर हैं उनके लिए कोई बस अब तक क्यों नहीं चलाई गई? साथ ही यह सवाल भी उठने लगे कि जब अहमदाबाद के लिए बसें निकल ही चुकी हैं तो फिर ये बसें खाली वापस क्यों लौटें, वहां फंसे उत्तराखंड के लोगों को ही वापस लेती आएं। और जिन्हें बैठाया गया, उनसे पैसे वसूले गए । उत्तराखंड के लोग अपने घर जाने के लिए सवार हो गए, ऐसे ही 13 लोगों के एक ग्रुप से कुल 18 हजार रुपए किराया मांगा गया |

यही वो समय था जब सोशल मीडिया पर ये बातें तेजी से फैलने लगीं। लिहाजा इन बसों के अहमदाबाद पहुंचने से पहले इनकी खबर वहां रहने वाले लोगों तक एक उम्मीद बनकर पहुंच गई। अब उत्तराखंड सरकार पर भी दबाव बढ़ने लगा। राज्य के परिवहन मंत्री से इस संबंध में सवाल पूछे गए तो सामने आया कि उन्हें भी इन बसों के निकलने की कोई जानकारी नहीं थी।
दबाव बढ़ने पर उत्तराखंड सरकार ने यह एलान तो कर दिया कि वापस लौटती बसें गुजरात में रह रहे प्रवासियों को लेकर लौटेंगी, लेकिन इस दिशा में कोई पुख्ता कदम नहीं उठाए गए। नतीजा ये हुआ कि वहां से लौट रहे दर्जनों उत्तराखंड के प्रवासी न तो घर के रहे न घाट के। ये तमाम लोग राजस्थान से लेकर हरियाणा के अलग-अलग में इलाकों में अब तक भी फंसे हुए हैं।
