’50 रुपए फ्लैट रेट पेमेंट’ की वापसी के संघर्ष में बड़ी कीमत चुकाने के बावजूद, ब्लिंकिट मज़दूर संघर्ष में डटे रहे और अब यह जीत हासिल हुई। हालांकि डिलीवरी श्रमिकों की पहचान और उचित अधिकारों का संघर्ष अभी लंबा है।
कोलकाता। कमलगाजी में डिलीवरी श्रमिकों ने ब्लिंकिट कंपनी प्रबंधन द्वारा झूठे वादों, धमकियों, ब्लैकमेल को अपनी एकता से हराकर जीत हासिल किया। हफ्तों सामूहिक हड़ताल के बाद श्रम विभाग में प्रबंधन को आना पड़ा और 16 जून को हुए समझौते द्वारा सभी मज़दूरों की कार्यबहाली करनी पड़ी।
प्रबंधन की धोखाधड़ी के खिलाफ मज़दूरों ने किया टूल डाउन
दरअसल 24 मई को कोलकाता के कमलगाजी में ब्लिंकिट हब के मज़दूरों ने कंपनी की एक अनुचित कार्रवाई के खिलाफ ‘टूल डाउन’ करके आंदोलन शुरू किया। सभी को कम दरों पर काम करने के लिए मजबूर करने की योजना में नए डिलीवरी कर्मचारियों को कम दरों पर लाया जा रहा था। मजदूरों ने विरोध में काम बंद कर दिया और स्थानीय प्रबंधन प्रतिनिधियों को हब में आने के लिए मजबूर किया।
प्रबंधन अगले दिन यानी 25 मई की सुबह उनके मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वापस आने का वादा किया। लेकिन अगले ही दिन प्रबंधन का झूठ स्पष्ट हो गया। वे बात करने नहीं आए, उल्टा सबकी आईडी ब्लॉक कर दिया और एप के जरिए हब बंद होने की सूचना दे दी।
इसके बाद मजदूर कई हफ्तों तक सामूहिक हड़ताल पर रहे। हड़ताल दक्षिण कोलकाता के अन्य केन्द्रों में भी फैल गई। कर्मचारियों ने विवाद को सुलझाने के लिए श्रम विभाग को बुलाया।
दोबारा दबाव डालने पर, स्टोर मैनेजर ने 9 जून को समूह को यह कहते हुए एक संदेश भेजा कि सभी को शर्तों के अधीन बहाल किया जाएगा। कार्यकर्ताओं ने आपस में चर्चा के बाद प्रस्ताव पर सहमति जताई। लेकिन, कंपनी की ओर से जो बयान आया उससे स्पष्ट था कि अगर 33 मज़दूरों की आईडी खोली भी जाती है, तो बाकी 19 मज़दूरों की आईडी तुरंत नहीं खुलेगी।
इस स्थिति में मजदूरों ने सर्वसम्मति के आधार पर कार्य में शामिल होने से परहेज किया। हब खुला, उसके साथ सभी हब में पूरी रात जागे, स्टोर मैनेजर को घर लौटने की अनुमति भी नहीं दी। अंततः मजदूरों ने उच्च प्रबंधन प्रतिनिधि को श्रम कार्यालय में घसीटने पर विवश किया।



श्रम अधिकारी के समक्ष हुआ समझौता
श्रम विभाग के अधिकारी की मध्यस्थता से कंपनी प्रबंधन को आंदोलनकारी श्रमिकों के साथ लिखित समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा और प्रबंधन प्रतिनिधियों को सभी मज़दूरों को अगली सुबह की शिफ्ट में काम पर वापस लेने के समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा।
प्रबंधन ने सभी को ‘गिग्स सिस्टम’ (स्लॉट बुकिंग) के झांसे में ले लिया, लेकिन मज़दूरों ने इसे पकड़ लिया। अनुबंध में यह भी लिखा है कि उन्हें ‘डिस्टेंस पे’ पर काम पर लौटाया जाएगा।
समझौता ब्लिंकिट मज़दूरों के संघर्ष का परिणाम
यह समझौता ब्लिंकिट मजदूरों के संघर्ष का परिणाम है। पिछले साल सितंबर में, उन्होंने ’50 रुपए फ्लैट रेट पेमेंट’ को वापस लेने के खिलाफ बड़ी जोश से लड़ाई लड़ी। यहां तक कि दीवार से पीठ टिकाकर बीस रुपये प्रति पार्सल की दर एक झटके में नीचे लाने के बुलडोजर को रोकने के लिए जी-जान लगा दी। इसके लिए उन्हें काफी कीमत चुकानी पड़ी थी। उसके बावजूद, वे आगे की लड़ाई की तैयारी के लिए एकजुट होने की प्रक्रिया में शामिल हो गए।
पिछले महीने के आंदोलन ने साबित कर दिया है कि डिलीवरी श्रमिकों के एकजुट संघर्ष की जीत निश्चित है। इन छोटी-छोटी जीतों को एक साथ मिलाने के लिए, डिलीवरी कर्मचारी ‘कर्मचारियों की पहचान और उचित अधिकारों’ को छीनने के लिए एक लंबी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं – एक ऐसा सवाल जो सभी ऐप-आधारित डिलीवरी कंपनियों ने नकार दिया है।