केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान को मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने दिया समर्थन
केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार की मजदूर कर्मचारी विरोधी तथा तानाशाही पूर्ण फासिस्ट नीतियों के खिलाफ 3 जुलाई को देश भर में विरोध प्रदर्शन और 6 महीने तक असहयोग की घोषणा की है. मासा इस विरोध प्रदर्शन को समर्थन करता है और इसको आने वाले समय में मज़दूर वर्ग के निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष की तरफ ले जाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है.
विरोध कार्यक्रम के समर्थन में देशभर के जुझारू मज़दूर संगठनों के साझा मंच मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) द्वारा जारी पर्चा-

कोरोना-संकट के बहाने मज़दूर वर्ग पर पूंजीपति-सरकार के खतरनाक हमलों और मेहनतकश जनता के जीवन-आजीविका के संकट के प्रति सरकार की लापरवाही के खिलाफ
3 जुलाई को अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन में शामिल हो!
विरोध प्रदर्शन को मज़दूर वर्ग के निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष में तब्दील करो!
कोरोना-संकट और लॉकडाउन ने साफ तौर पर दिखा दिया है कि कैसे देश के सत्ताधारी वर्ग को देश के मेहनतकश अवाम की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है. उन्होंने इस संकट को कैसे मेहनतकश जनता का और तेजी से शोषण-दमन किये जाने के ‘अवसर’ में बदल डाला है.
मात्र 4 घंटे पूर्व लॉकडाउन की घोषणा करके 24 मार्च से लॉकडाउन के बाद देश के मज़दूर वर्ग, खास कर प्रवासी और असंगठित मज़दूरों को बेरोजगारी-भुखमरी और जीवन संकट का सामना करना पड़ा. पूंजीपति नहीं चाहते थे कि मज़दूर गांव चले जायें, इसलिए सरकार ने मज़दूरों को ‘बंधुआ’ मज़दूर की भांति उनके काम के इलाके में ही उन्हें जबरदस्ती रोके रखा. हजारों मज़दूर परिवार सहित पैदल ही अपने गांव जाने के लिए मजबूर हुए. सैकड़ों मज़दूरों की रास्ते में ही मौत हो गयी. बाद में घर भेजने के लिए मज़दूरों से ट्रेन का किराया भी वसूला गया. मज़दूरों को ले जा रही ट्रेन रास्ता भी भटक गई.

देश की सरकार तब व्यस्त रही कि अम्बानी-अदानी सहित तमाम पूंजीपतियों को कैसे खुश किया जाये. 20 लाख करोड़ के जुमला पैकेज में जितनी भी राहत है, वो पूंजीपतियों के लिए ही है. मज़दूर इस संकट के दौरान कैसे जियेंगे, क्या खायेंगे – उससे सरकार को कोई वास्ता नहीं था.
निजीकरण को तेज किया गया. खास तौर पर सदियों के संघर्ष से हासिल किये गए श्रम कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए श्रम कानूनों में तमाम मज़दूर विरोधी संशोधन किये जाने का सिलसिला और तेज किया गया.जिन श्रम क़ानूनों से मज़दूरों को मामूली राहत मिलने की सम्भावना रहती थी उन 44 श्रम कानूनों को ख़त्म करके 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताएँ लाना, फिक्स्ड टर्म मजदूरी को मान्यता देना, दैनिक 12 घंटा काम, यूनियन बनाने और हड़ताल करने के अधिकार पर हमला से लेकर कई राज्यों में सरकारों ने ज्यादातर श्रम कानूनों को अगले कई सालों तक रद्द करने के मजदूर विरोधी कदम उठाये हैं.
मज़दूरों का PF घटा दिया गया. एक साल के लिए DA व DR रद्द किया गया. लॉकडाउन की अवधि के लिए मज़दूरों को सैलरी के अधिकार के मुद्दे पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने मालिकों का पक्ष लिया.

सरकार मालिकों की ज़रूरत के अनुसार लॉकडाउन वापस लेने की प्रक्रिया को चला रही है. पूंजीपतियों को मज़दूरों की सैलरी घटाने, मनमर्जी से छटनी करने की छूट दी गई है. जिन कंपनियों ने पीएम केयर में करोड़ों रुपये दिए, वे अब मज़दूरों को सैलरी नहीं दे रही हैं और यह कहती हैं कि उनके पास पैसा नहीं है. कोरोना के दौरान सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह अपर्याप्त हैं, और साथ में बेरोजगारी ने मिलकर देश की करोड़ों मेहनतकश जनता के सामने जीवन और आजीविका का भयावह संकट पैदा कर दिया है.
मौजूदा संकट के दौरान जनता को राहत प्रदान करने की बजाय सरकार जनवादी माहौल को खत्म करने में व्यस्त है. सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठानेवालों को देशद्रोही बोलकर जेल में डाला जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा सीएए विरोधी आंदोलन कर्ताओं को रिहा करने की अपील के बावजूद उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है.
दूसरी तरफ, चीन-पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का उग्र-राष्ट्रवादी माहौल बनाया जा रहा है. हमें पता है कैसे युद्ध में मरनेवाला व्यक्ति मज़दूर-किसान के घर से ही आता है. युद्ध के दौरान पूंजीपति वर्ग बेतहाशा मुनाफा बटोरता है और युद्ध का आर्थिक बोझ मेहनतकश जनता पर ही थोपा जाता है, युद्ध के बहाने मेहनतकश जनता के अधिकारों को लेकर आवाज़ उठानेवालों का कैसे दमन किया जाता है.

ऐसी स्थिति में, मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) सरकार को स्पष्ट तौर पर कहना चाहता है कि इस कोरोना-संकट के दौरान यदि सरकार प्राथमिक रूप से स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करने और मज़दूर मेहनतकशों के संकट को हल करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती है तो देश की मेहनतकश जनता जुझारू आन्दोलन करने के लिए मजबूर होगी और सरकार की ईंट से ईंट बजा देगी.
केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार की मजदूर कर्मचारी विरोधी तथा तानाशाही पूर्ण फासिस्ट नीतियों के खिलाफ 3 जुलाई को देश भर में विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम लिया है और 3 जुलाई से 6 महीने तक असहयोग की घोषणा की है.

हम मानते हैं कि आज मज़दूर वर्ग पर हमला जितना तेज है, उसके खिलाफ औपचारिक कार्यक्रमों से आगे बढ़कर मज़दूर वर्ग को लगातार, जुझारू और निर्णायक संघर्ष का रास्ता लेना पड़ेगा, देशी-विदेशी पूंजीपतियों और सरकार के खिलाफ, उनके नव उदारवादी, निजीकरण और साम्राज्यवाद परस्त नीतियों के खिलाफ, मेहनतकश जनता के हित में देश को चलाने के लिए व्यापक आर्थिक और राजनीतिक संघर्ष करना पड़ेगा.
मासा 3 जुलाई के अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन को समर्थन करता है और इसको आने वाले समय में मज़दूर वर्ग के निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष की तरफ ले जाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है.

मासा तात्कालिक रूप से मांग करता है –
1. लॉकडाउन के पूरे समय के लिए सभी मज़दूरों को पूरा वेतन दिया जाए. लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हुए लोगों को 10 हज़ार रुपये प्रति परिवार सरकारी सहायता दी जाए तथा उनके लिए रोजगार का प्रबंध किया जाए.
2. श्रम कानूनों में किये गए सभी मज़दूर विरोधी संशोधनों को तत्काल रद्द किया जाए. विभिन्न सरकारों द्वारा 12 घंटे के कार्यदिवस किये जाने का मजदूर विरोधी फैसला तुरंत रद्द किया जाए. DA और DR रद्द करने और PF में कटौती करने का फरमान तुरंत वापस लिया जाए.
3. सबका फ्री कोरोना टेस्ट व संक्रमित का फ्री इलाज करवाया जाए. इसके लिए निजी हस्पतालों का अधिग्रहण करके उनका राष्ट्रीयकरण किया जाए.
4. घर वापस गए प्रवासी मज़दूरों को आर्थिक सहयोग दिये जाने के साथ साथ उनके गांव में ही उपयुक्त स्वास्थ्य सुविधा और आजीविका का बंदोबस्त किया जाए. उन्हें मनरेगा कार्य दिया जाए. मनरेगा मजदूरी में वृद्धि तथा साल में प्रति व्यक्ति दो सौ दिन की रोजगार गारंटी दी जाए. मनरेगा की तर्ज पर शहरी मज़दूरों के लिए भी रोजगार गारंटी कानून बनाया जाए.
5. सभी स्वास्थकर्मियों और सफाईकर्मियों की सुरक्षा का इन्तजाम किया जाए. भोजन माता (मिड डे मील), आशा और आंगनवाड़ी कर्मियों को ‘कर्मचारी’ का दर्ज़ा देकर सभी सुविधाएँ दी जाएं.
6. कोरोना संकट के बहाने उद्योगों में लगातार की जा रही छटनी और सैलरी काटे जाने पर तत्काल रोक लगाई जाए.
7. निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा पर तत्काल रोक लगाई जाए.
8. विरोध करने के लोकतान्त्रिक अधिकार पर हमला, अंध-राष्ट्रवाद के आधार पर युद्ध का माहौल पैदा करना, मेहनतकश जनता के बीच धर्म-जाति और क्षेत्र के आधार पर विभाजन और नफ़रत पैदा करने की राजनीति बंद की जाए. यूएपीए जैसा काला कानून रद्द किया जाए.