क्रांतिकारी नौजवान सभा ने उठाया सवाल- किसकी आज़ादी? कौन है अमृत? और कैसा महोत्सव? देश की बड़ी आबादी आज भी शोषण, दमन, हिंसा और राजकीय दोहरी हिंसा की बेड़ियों में कैद है।
जयपुर (राजस्थान)। क्रांतिकारी नौजवान सभा (केएनएस), राजस्थान ने किया जालौर में दलित मासूम की जातिगत हत्या और राजस्थान सरकार के जातिगत शासकीय दमन के खिलाफ जयपुर के गांधी सर्किल पर आक्रोश प्रदर्शन किया।
इसके साथ ही राजस्थान यूनिवर्सिटी के गेट पर इसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन और धरना हुआ, जिसमें केएनएस ने हिस्सा लिया। शाम को झालाना बस्ती में भी केएनएस ने प्रदर्शन किया।
प्रदर्शन के दौरान युवाओं ने निरंतर संघर्ष में हिस्सा लेने और समाज में किसी भी तबके के साथ हो रहे हर अन्याय का विरोध करने का संकल्प लिया। कहा कि कितनी भी बार और किसी भी तरह से बार-बार देश को आज़ाद घोषित किया जाए, देश की बड़ी आबादी आज भी शोषण, दमन, हिंसा और राजकीय दोहरी हिंसा की बेड़ियों में कैद है।
आज़ादी के 75 साल का जश्न : कौन आजाद हुआ?
प्रदर्शन में जयपुर के अलग-अलग इलाकों से, खासकर दलित बस्तियों से केएनएस के सदस्यों समेत कई लोगों ने हिस्सा लिया और अपने विचार रखे।
वक्ताओं ने कहा कि आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर जहां एक और पूरे देश में जश्न मनाया गया, राजस्थान में दलित और आदिवासी लोगों में गहरा दुःख और आक्रोश छाया रहा। जालौर, राजस्थान में दबंग जाति के अध्यापक द्वारा तीसरी कक्षा के एक नन्हे से दलित बच्चे को पीटा गया, जिससे बच्चा बेहोश हो गया और 23 दिन अस्पताल में इलाज चलने के बाद बच्चे की मौत हो गई।
बच्चे की लाश घर पर पड़ी रही और राजस्थान पुलिस तथा राजस्थान प्रशासन जबरन समझौता करवाने के लिए बच्चे के परिवार और गांव की दलित आबादी पर तरह-तरह से दबाव बनाते रहे, लाठी चार्ज किया और दौड़ा – दौड़ा कर इतना पीटा की कई लोग अस्पताल पहुंच गए।
क्रांतिकारी नौजवान सभा, राजस्थान ने इस पूरी घटना में आरोपी, राजस्थान पुलिस और प्रशासन में छुपी जातिवादी हिंसक मानसिकता के खिलाफ स्वतंत्रता दिवस के दिन जयपुर के गांधी सर्किल पर इस घटना के साथ-साथ राजस्थान और पूरे देश में बढ़ रहे दलित उत्पीड़न, स्कूलों में दलित बच्चों के साथ मारपीट-भेदभाव, दलित उत्पीडन के मामलों में पुलिस और प्रशासन द्वारा अक्सर की जाने वाली दोहरी हिंसा, इस भेदभाव और गैर बराबरी के पीछे के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक भौतिक आधारों, तथा उन भौतिक आधारों को छुपाने वाले इस पूरे पूंजीवादी लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ भी आक्रोश प्रदर्शन किया गया।
साथ ही दलितों को फासीवाद के दलदल में घसीटने वाले उन हिंदुत्वादी संगठनों के खिलाफ भी आक्रोश व्यक्त किया गया जो अन्य सभी दलित उत्पीड़न के मामलों की तरह ही इस मामले पर भी न सिर्फ खामोश नजर आए, बल्कि लीपा-पोती करते और आज़ादी का अशोभनीय अमानवीय जश्न मनाते नजर आए।

ये अमृत महोत्सव नहीं, मृत महोत्सव है
साथी नरेंद्र थनवाल ने “गांधी जी की मूर्ति के सामने” खुद को “हरिजन नहीं भंगी” के रूप में परिचित करवाते हुए ऐलान किया, “मुझे गर्व है कि मैं एक भंगी के घर में पैदा हुआ हूं और आज इस शोषण के खिलाफ लड़ रहा हूं। हमें रैलियों, कांवड़ और दूसरी यात्राओं में ले जाने वाले हिंदुत्ववादी संगठन कहां हैं आज? ठीक कहा था भगत सिंह ने कि गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों के आ जाने से देश के गरीब मजदूर वर्ग के जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा और वाकई में काले अंग्रेज़ आ गए हैं। भगत सिंह के विचारों पर चल कर ही असली आज़ादी मिल सकती है।”
साथी राधेश्याम ने कहा, हमें जातिवाद और जातिवादी लोगों का डट के मुकाबला करना होगा। इनसे डरने की जरूरत नहीं है, इनका सामना करो। खून-पसीना बहाओ, शिक्षित हों और सही तरीके से लड़ना सीखो।
साथी मुस्कान ने कहा कि प्रदर्शन के वक़्त पुलिस जिस तरह दबाने की कोशिश कर रही है, वैसे ही वो गरीब लोगों को हमेशा डंडे के जोर पर दबाने की कोशिश करती है। साथ ही ठेठ तरीके से समझाया कि हमें अपने आस-पास चल रहे समाज को देख कर, अपने अनुभव से सीखना चाहिए कि कौन दलितों, गरीबों, मजदूरों का दोस्त है और कौन दुश्मन और कौन दुश्मन का दलाल।
साथी राजू ने दलित एकता पर ज़ोर देते हुए कहा, “मैं सफाई कर्मी हूं, बाल्मिकी हूं, लेकिन आज इस बच्चे के साथ जो हुआ, वैसा किसी भी बच्चे के साथ आगे से नहीं होना चाहिए, हमें उसके लिए एक हो कर संघर्ष करना चाहिए।”
साथी बबलू ने शिक्षा के महत्व पर ज़ोर दे कर कहा कि जब तक हम शिक्षित नहीं होंगे, हम समझ नहीं पाएंगे कि कैसी-कैसी चालें खेली जाती हैं हमारे साथ, इसलिए शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है।
साथी गणेश ने फासीवाद की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये रोज़ हमें ऐसे ही नफ़रत के तमाशों में उलझाए रखते हैं, “ये हमें लड़वाते हैं,” जाति-धर्म के झगड़ों में, कल कुछ हुआ था, आज यह हुआ है, कल भी आपको कुछ न कुछ देखने को मिलेगा, ताकि हम गुस्से और दर्द से इन्हीं के खिलाफ लड़ते रहें और जो हमारे साथ सबसे बड़ा शोषण, पूंजीवादी शोषण, हो रहा है, उसके खिलाफ लड़ने पर न तो हमारा ध्यान जाए और न हम उसके लिए एक हो पाएं।
साथी सन्नी ने कहा कि ये हादसा किसी भी बच्चे के साथ हो सकता है और अक्सर बच्चे डर के मारे किसी को नहीं बताते हैं, इसलिए सभी साथियों का अपने घर और अड़ोस-पड़ोस के स्कूल जा कर संभालना चाहिए कि बच्चा स्कूल में वाकई कैसा है।
जयपुर सफाई मज़दूर यूनियन की तरफ से साथी सुरेश ने कहा, “ये अमृत महोत्सव नहीं, नन्हे से दलित बच्चे की लाश पर मनाया जा रहा मृत महोत्सव है।” ये भी कहा कि बड़े-बड़े संगठन और खासकर दलितों को हिन्दू भाई बोलने वाले हिंदुत्ववादी संगठन आज़ादी के जश्न में लगे हैं, कह रहे हैं कि आज प्रदर्शन न करें। झालाना सरदार बस्ती से मालवीय नगर बाल्मीकि कॉलोनी से लेकर जवाहर नगर टीला नंबर 1 से आज़ाद नगर बस्ती तक, एक तरफ सड़क है और एक तरफ जंगल और बीच में दलित आदिवासी आबादी की कच्ची बस्ती है। इस बस्ती में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई सभी धर्म के लोग हैं लेकिन सब के सब दलित हैं। कोई भी धर्म हमें सड़क के उस पार नहीं ले जा पाया और सड़क के इस पार की पहचान कोई धरम नहीं, बल्कि दलित जाति है।
केएनएस के अन्य सदस्यों ने भी अपनी बात रखी। साथियों ने बताया कि जिस छोटे से दलित बच्चे इंद्र कुमार की जानलेवा पिटाई हुई, वो सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की तीसरी कक्षा में पढ़ता था। सरस्वती शिशु विद्या मंदिर स्कूलें चलाई जाती हैं आरएसएस के शिक्षा विंग विद्या भारती द्वारा। विद्या भारती भारत में निजी स्कूलों का सबसे बड़ा तंत्र चलता है (लगभग 30,000 स्कूलें)।
सर्वहारा एकता मंच से आए साथी प्यारेलाल, भादरा से आए साथी प्रदीप और साथी नरेंद्र जी एडवोकेट राजस्थान हाईकोर्ट ने भी अपने विचार रखे।
जातिवाद के उन्मूलन के लिए पूरी व्यवस्था बदलना जरूरी
विस्तार से चर्चा हुई कि मनुवादी सोच की जड़ें कितनी गहरी हैं, इस बात का पता इसी बात से चल जाता है कि राजस्थान के उच्च न्यायाल में डॉ. अम्बेडकर की मूर्ति बाहर लगी है और मनु की मूर्ति भीतर। मूंछ रखने, घोड़ी चढ़ने, अम्बेडकर के विचारों को मानने जैसी बातों पर यहां दलितों की हत्याएं हुई हैं। कानून की नजर में समानता का आदर्श भारत में कभी लागू नहीं हुआ। पुलिस, कोर्ट, सिस्टम, सब अमीरों के फायदे और सुरक्षा के लिए हैं और अमीर अधिकतर ऊंची जाति के हैं। हमें धर्म के झगड़ों में उलझा कर रखा गया है ताकि हम वर्ग और जाति के इस भेद को न देख पाएं।
जातिवाद और पूंजीवाद आपस में गहरे रूप से जुड़े हुए हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि पहले कि व्यवस्थाओं में जातिवाद नहीं था। लेकिन क्यूंकि वर्ण व्यवस्था का मूल आधार आर्थिक और दार्शनिक है, इसलिए जातिवाद के उन्मूलन के लिए हमें इस पूरी व्यवस्था को ही बदल कर समाजवादी समतामूलक व्यवस्था को लाना होगा। इसके लिए एक दिन की रस्म अदायगी नहीं, रोज़ संघर्ष करना होगा, लगातार संघर्ष करना होगा। विचारों और औजारों के हथियार ले कर अपना संघर्ष खुद करना होगा।
अंत में इस संकल्प के साथ कि हम निरंतर संघर्ष में हिस्सा लेंगे और समाज में किसी भी तबके के साथ हो रहे हर अन्याय का विरोध करेंगे, क्रांतिकारी गीतों और नारों के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

यूनिवर्सिटी के गेट पर व झालना बस्ती में प्रदर्शन व रैली
प्रदर्शन से पहले, सुबह KNS के साथियों ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के गेट पर इसी मुद्दे पर चल रहे विरोध प्रदर्शन और धरने में हिस्सा लिया और प्रदर्शन को क्रांतिकारी नारों और विचारों के साथ क्रांतिकारी दिशा देने का प्रयास किया।
दिन में झालाना में अलग-अलग लोगों से इस बार में बात चीत की गई। शाम को प्रदर्शन किया गया।
प्रदर्शन के बाद गांधी सर्किल से अरण्य भवन, सोमेश्वरपुरी स्कूल, काली कमली बाग़, भट्टे से होते हुए, बाबा रामदेव मंदिर तक रैली निकाली गई और सभा हुई। रैली में “जालौर के दलित बच्चे इंद्र कुमार को न्याय दो!”, “हत्यारे दबंग टीचर को कड़ी से कड़ी सजा दो!” के नारों के साथ साथ, “स्कूलों में दबंग टीचरों के हाथों दलित बच्चों की पिटाई नहीं सहेंगे!”, “स्कूलों में मार पीट बंद करो!”, “स्कूलों में जातिगत भेदभाव नहीं सहेंगे!” जैसे दिल से निकले नारे भी बुलंद किए गए।
इस प्रकार “आज़ादी” के सरकारी जश्न के बीच मजदूर वर्ग के हर तबके के लिए सच्ची, समान, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक आज़ादी की मांग और संघर्ष की आवाज़ को तेज किया गया।