खटीमा फाइबर्स से अवैध निष्कासित 200 मज़दूरों ने किया प्रदर्शन, कार्यबहाली की माँग

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खटीमा फाइबर्स में मज़दूरों का शोषण व दमन आम है। यहाँ मनमर्जी रखने और निकालने का धंधा चलता है। असुरक्षित परिस्थिति में काम से यहाँ मज़दूर प्रायः अपंग होते हैं, जान गँवाते हैं।

खटीमा, उधम सिंह नगर (उत्तराखंड)। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र खटीमा स्थित खटीमा फाइबर्स लिमिटेड ने एक बार फिर 200 मज़दूरों को बगैर नोटिस निकाल दिया। जिसके खिलाफ मज़दूर संघर्षरत हैं। मंगलवार को मज़दूरों ने श्रम भवन पर प्रदर्शन कर श्रम प्रवर्तन अधिकारी का घेराव किया।

ज्ञात हो कि पिछले सप्ताह खटीमा फाइबर्स प्रबंधन ने बगैर किसी पूर्व सूचना के करीब 200 मज़दूरों को निकाल दिया था। मज़दूर शाम को जब काम से वापस लौट रहे थे तब उनको कंपनी के नोटिस बोर्ड से खबर मिली कि उनकी सेवाएं समाप्त हो गई हैं।

इससे आक्रोशित खटीमा फाइबर्स के मज़दूरों ने हसील स्थित एसडीएम कार्यालय पर प्रदर्शन कर अपनी पीड़ा बताई थी और कार्यबहाली की माँग की थी। मज़दूरों का तबसे आंदोलन जारी है।

कंपनी ने अवैध रूप से निकाला है

मज़दूरों का कहना है कि नियमानुसार किसी भी कर्मचारी को अगर कंपनी से निकाला जाता है, तो उसे 3 महीने पूर्व नोटिस दिया जाता है, लेकिन कंपनी द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। हम लोग सुबह ड्यूटी कर घर गए और शाम को नोटिस बोर्ड पर 200 मज़दूरों को निकालने का नोटिस चिपका दिया गया।

मज़दूरों ने बताया कि कंपनी ने जिन मज़दूरों को निकाला है, उनमें कम से कम 50 मज़दूर ऐसे हैं जो कंपनी में 25 से 30 साल से कार्यरत हैं। बाकी सभी 10 से 15 साल से कंपनी में कार्यरत हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि पीएफ कंपनी द्वारा मज़दूरों से काट लिया गया है लेकिन पीएफ फंड में जमा नहीं किया जा रहा है। जबकि कंपनी पीएफ की पूरी 24 फीसदी राशि मज़दूरों के वेतन से कति गई है। साथ ही कंपनी द्वारा बकाया वेतन व ग्रेजुएटी भी नहीं दी जा रही है।

श्रम विभाग के घेराव के बाद श्रम प्रवर्तन अधिकार (लेबर इंस्पेक्टर) मीनाक्षी भट्ट ने कंपनी का दौरा किया और मीडिया को बताया कि कारखाने के प्रबंधक का कहना है कि उसने किसी भी श्रमिक की सेवा समाप्त नहीं की है, अगर कारखाना चलता है तो पुनः कार्य पर बुलाया जाएगा।

जबकि हक़ीक़त यही है कि प्रबंधन ने मज़दूरों को अवैध रूप से निकाला है।

शोषण का केन्द्र है खटीमा फाइबर्स

पेपर-गत्ता बनाने वाली फैक्ट्री खटीमा फाइबर्स लिमिटेड मज़दूरों के शोषण व दमन के कुख्यात है। यहाँ पूरा काम ठेके में होता है और मनमर्जी रखने और निकालने का धंधा चलता है। अक्सर होने वाली दुर्घटनाओं में यहाँ के न जाने कितने मज़दूरों की जान जा चुकी है, कितने अपंग हैं।

इसके खिलाफ संघर्षों का सिलसिला भी पूरन है। 1997 में यह पहला बाद आंदोलन हुआ था, यूनियन बनाने का प्रयास हुआ था। लेकिन लंबे व जुझारू संघर्ष को बड़े दमन से कुचल दिया गया था। तबसे कई छोटे-बड़े आंदोलन होते रहे लेकिन मालिक की मनमानी जारी है।

उल्लेखनीय है कि खटीमा फाइबर्स मालिक को सीधा सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। कांग्रेसी सरकार हो या भाजपा, मालिक की सभी नेताओं के साथ खुले रिस्ते हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री का यह गृह क्षेत्र है और उनका हेलिकॉप्टर भी वहाँ उतरता है।

12 घंटे काम; बेहद कम मज़दूरी व सुविधाएं

खटीमा फाइबर्स के मजदूरों ने फैक्ट्री प्रबंधन पर अधिक काम करवाने के बावजूद कम मजदूरी देने का आरोप लगते रहे हैं। 12 घंटे काम करने के बावजूद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिलती। पीएफ भी 24 फीसदी मज़दूरों से काटा जाता है। काम के दौरान घायल होने पर फैक्ट्री प्रबंधन उपचार तक नहीं कराता, मृत्यु पर भी मुआवजा मुआवजा नहीं दिया जाता।