मानवजाति के सामने कोरोना वायरस सबसे बड़ा ख़तरा
दुनिया भर में अब तक इस वायरस से 14,600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.भारत में इसके 415 मामले अब तक सामने आए है. इस महामारी के फैलने का सबसे बड़ा कारण ये है कि अब तक इसकी दवा इजाद नहीं हो सकी है.दुनिया भर में मेडिसिन क्षेत्र के वैज्ञानिक इसकी कारगर दवाई बनाने में जुटे हुए हैं लेकिन इस बीच अमरीकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने इस वायरस की दवा बनाए जाने का दावा किया.शनिवार, 21 मार्च को डोनॉल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया-”हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और एज़िथ्रोमाइसिन का कॉम्बिनेशन मेडिसिन की दुनिया में बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकता है. एफ़डीए ने ये बड़ा काम कर दिखाया है- थैंक्यू. इन दोनों एजेंट को तत्काल प्रभाव से इस्तेमाल में लाना चाहिए, लोगों की जान जा रही है.”
ट्रंप ने दावा कि अमरीका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफ़डीए ने कोरोना वायरस की दवा खोज ली है.ट्रंप ने इसे लेकर व्हाइट हाउस की मीडिया ब्रीफिंग में भी बयान दिया.उन्होंने कहा- ”हम इस दवा को तत्काल प्रभाव से उपलब्ध कराने जा रहे हैं. एफ़डीए ने काफ़ी उम्दा काम किया. ये दवा अप्रूव (स्वीकृत) हो चुकी है.”बीबीसी ने इस बात की पड़ताल करने की कोशिश की कि क्या इन दो दवाओं का कॉम्बिनेशन कोरोना वायरस की औपचारिक दवाई है.साथ ही क्या अमरीकी स्वास्थ विभाग की ओर से इसे स्वीकृत किया जा चुका है.ट्रंप के इस बयान के बाद 21 मार्च को ही अमरीका के सेंटर फॉर डिज़िज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने एक रिपोर्ट जारी की.
इस रिपोर्ट में सीडीसी ने बताया कि कोविड-19 के मरीज़ों के लिए एफ़डीए ने कोई दवा अब तक अप्रूव नहीं की है.हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अमरीका सहित कई देशों में कोविड-19 के मरीज़ों के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल किया जा रहा है.एक छोटे से अध्ययन के मुताबिक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के साथ एज़िथ्रोमाइसीन का कॉम्बिनेशन कोविड-19 के असर को कम कर सकता है.इस रिपोर्ट में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के साथ एज़िथ्रोमाइसीन के इस्तेमाल को ‘अनकंट्रोल बेसिस’ बताया गया है. इससे साफ़ है कि इस कॉम्बिनेशन को औपचारिक इलाज ना माना जाए.
दरअसल विज्ञान-मेडिसिन की दुनिया में किसी भी तरह की दवा के असर को दो तरह से मापा जाता है
1) अनियंत्रित यानी अनकंट्रोल ऑब्सर्ज़वेशन
2) नियंत्रित यानी कंट्रोल ऑब्सर्ज़वेशन
अनियंत्रित ऑब्सर्ज़वेशन में कोई खास दवा अगर असर कर रही हो तों उन्हें इस्तेमाल में लाया जाता है. ज़्यादातर इसका असर व्यक्तिपरक होता है यानी हर इंसान पर एक जैसा हो ये तय नहीं होता.वहीं नियंत्रिक ऑब्सर्ज़वेशन में एक योजना के तहत तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है. इससे किसी दवा के असर को लेकर ज़्यादा और सटीक जानकारी पता चलती है.
रिपोर्ट में ये भी साफ़ लिखा है कि क्लोरोक्विन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवाओं के कुछ नकरात्मक असर भी हैं. इनके इस्तेमाल के साथ कुछ मरीज़ों को खास सलाह दी जानी चाहिए. इनके इस्तेमाल से किडनी फ़ेल होने औऱ दिल से जुड़ी परेशानियों की संभावना रहती है.सीडीसी का कहना है कि अमरीका में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के कुछ क्लिनिकल टेस्ट की योजनाएं तैयार हैं और जल्द ही ये प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया, ”हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल सिर्फ़ हास्पिटल वर्कर करेंगे जो कोविड-19 के मरीज़ों की देखभाल कर रहे हैं. या फिर अगर किसी को घर में कोई संक्रमित है तो उसकी देखभाल करने वाला ही इस दवा का सेवन करे.”इसके अलावा ICMR ने एक प्रेस रिलीज़ जारी करके बताया है कि ‘नेशनल टास्क फोर्स कोविड-19 का गठन किया गया है. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा वहीं ले सकते हैं जो कोविड-19 के हाई रिस्क में हों.’
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की ओर से जारी की गई सूचना
यानी अस्पताल में काम करने वाले वो कर्मी जो कोरोना वारयस से संक्रमित मरीज़ का इलाज कर रहे हों या जिनके घर कोई किसी शख्स को कोरोना पॉज़िटिव पाया गया हो तो उससे संपर्क में रहने वाले भी इस दवा का सेवन कर सकता है.ये दवा मान्यता प्राप्त डॉक्टर की प्रिस्किप्शन पर ही दी जाएगी, लेकिन अगर इस दवा को लेने वाले शख़्स को कोरोना के लक्षणों के लक्षणों के अलावा कोई और परेशानी होती है तो उसे तुरंत अपने डॉक्टर को संपर्क करना होगा. ”हालांकि, एज़िथ्रोमाइसीन के साथ इस दवा के कॉम्बिनेशन पर भारत में कोई बात नहीं कही गई है.
दिल्ली के श्री गंगाराम अस्पताल में डिपार्टमेंट ऑफ़ चेस्ट मेडिसीन के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. बॉबी भलोत्रा ने बताया कि ” चीन, अमरीका सहित कई देशों में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत में भी कुछ केस में इन दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन इसके क्लिनिकल टेस्ट अब नहीं किए गए हैं. ””अभी तक किसी भी इंटरेशनल संस्था ने इन दवाओं को प्रमाणिकता के साथ स्वीकृति नहीं दी है ऐसे में इसे कोरोना की दवा कहना सही नहीं है. आने वाले कुछ दिनों में इस दिशा में कुछ क्लिनिकल टेस्ट भी होंगे. भारत भी इस दिशा में काम कर रहा है”उन्होने बताया कि भारत में तीन तरह के मरीज़ सामने आ रहे हैं-
वो लोग जो कोरोना के टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए हैं लेकिन कोई लक्षण नहीं पाए जा रहे हैं उन्हें एंटी एलर्जिक दवाएं दी जा रही हैं.
जिन मरीज़ों में संक्रमण ज्यादा असर दिखा रहा है औऱ उन्हें सांस फुलने, बुख़ार जैसी परेशानी है उन्हें एडमिट किया जा रहा है और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन जैसी दवाएं दी जा रही हैं.
जो मरीज़ काफ़ी गंभीर हालत में हैं उन्हें एचआईवी एंटीरेट्रो वायरल दवाएं तक दी जा रही है.
इन दवाओं को अब तक इनके त्वरित असर के आधार पर ही दिया जा रहा है.अगर किसी मरीज़ को दिल की बीमारी, किडनी में दिक्कत है तो उसके लिए ये दवा हानिकारक साबित हो सकती है. ऐसे में ध्यान तो रखना ही होगा. कोई भी ख़ुद से खरीद कर इन दवाओं का सेवन ना करे.
क्लोरोक्विन मलेरिया की बेहद पुरानी और कारगर दवाई है. इसका इस्तेमाल दशकों से मलेरिया के मरीज़ों के लिए किया जा रहा है.बीते कई सालों में इस दवा के कुछ नकारात्मक असर भी सामने आए जिसके कारण कई देशों ने इसके इस्तेमाल पर नियंत्रण भी लगाए हैं लेकिन अभी भी कई देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है.
बीबीसी ने अपनी पड़ताल में पाया है कि भारत-अमरीका में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल कर रहे हैं. जैसा कि भारत में ICMR ने इस दवा को तय शर्तों के साथ इस्तेमाल करने को कहा गया है.लेकिन ट्रंप ने दावा किया है कि एफडीए ने इस दवा को अप्रूव किया है जिसे ख़ुद एफडीए ने ही नकार दिया है. ऐसे में इसे कोरोना वायरस की औपचारिक दवा नहीं कहा जा सकता.
कीर्ति दुबे
बीबीसी संवाददाता