आटा लेने बाहर निकलने पर पुलिस ने बुरी तरह पीटा
कोरोना महामारी से देश में आई आपदा में एक और ग़रीब मज़दूर ने जान गवाई| लेकिन 27 वर्षीय रोशल लाल की मृत्यु कोरोना संक्रमण से नहीं हुई है, बल्कि संक्रमण रोकने के नाम पर सरकार द्वारा मज़दूरों पर थोपी गए अव्यवस्थित नाकेबंदी और इस दौरान पुलिस द्वारा परेशान मज़दूरों पर किये जा रहे दमन से हुई है|
एक दलित परिवार से आने वाला, लखीमपुर जिला के फरिय पिपरिया का निवासी रोशनलाल गुड़गांव में दिहाड़ी कर के अपनी माँ को पैसे भेजा करता था| लॉकडाउन घोषित होने ने बाद, शहर में काम बंद हो जाने के कारण वह 29 मार्च को वापस अपने गाँव लौटा| गांव पहुँच कर सरकार ने उसे और उसके परिवार को सरकारी स्कूल में क्वारंटाइन में रख दिया| किन्तु, इस क्वारंटाइन व्यवस्था में उसके पास खाने का कोई इंतज़ाम नहीं दिया गया| 30 मार्च को जब वह आटा लाने चक्की की और निकला तो युपी पुलिस के हवालदार अनूप कुमार ने बेरहमी से उसे पीटा और उसके हाँथ तक तोड़ दिए| मार की इस दहशत और बेईज्ज़ती से परेशान हो कर रोशन लाल ने अपनी जान लेने का दुखद फैसला लिया| आत्महत्या के मिनटों पहले उनके द्वारा अपने परिजनों और दोस्तों को भेजे गए व्हाट्सएप रिकॉर्डिंग में उनहोंने कहा:
“दोस्तों, आगर किसी को भरोसा ना हो तो मेरी पेंट खोल के देख लो उसमें बस खून ही जमा मिलेगा और कुछ नहीं मिलेगा| इसके बाद मैंने सुसाइड कर लिया| अब मुझे जीना है ही नहीं| अब मै जी के क्या करूँगा जब मेरे हाँथ ही टूट गए हैं| उसके बाद मै सुसाइड कर लिया, अब मई बस मरूँगा| और लास्ट में ये भी मै बता रहा हूँ, मरने के बाद अगर किसी ने कह दिया की इसका कोरोना वायरस था तो उसकी मेरे पास जांच भी है| मेरा और कुछ नहीं है, मै अपने आप ही मरना चाहता हूँ| ठीक है, उसपे ज़रूर कार्यवाही होनी चाहिए, अनूप कुमार सिंह, सिपाही है| उसने आज मुझे बेरहमी से पीटा है| बस उसके चलते आज मै सुसाइड कर लिया है| अब मुझे जी के क्या करना है| उसपे ज़रूर कार्यवाही हो, ज़रूर कार्यवाही हो| अनूप कुमार सिंह… अनूप कुमार सिंह ने मेरे साथ बहुत गलत किया है, मै बहुत मजबूर हूँ|”
ठेकेदार के पास अब भी दिहाड़ी बकाया थी…
इस दर्दनाक सन्देश के बाद उसने बताया की उसके एक खाते में रु.80,000 और दुसरे खाते में रु.20,000 हैं, जो उसकी माँ को दे दिए जाएं| साथ ही उसने बताया की गुड़गांव में उसके ठेकेदार के पास उसके रु. 25,000 बकाया हैं जो भी उसकी माँ को दिए जाएं| अपनी इन अंतिम इच्छाओं को व्यक्त कर के रोशन लाल ने अपनी जान ले ली| रोशन लाल के परिवार वालों द्वारा पुलिस में अनूप कुमार सिंह के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज कराने की कोशिश अब तक नाकाम रही है|
गुड़गांव जैसे बड़े औद्योगिक केन्द्रों में दिहाड़ी मज़दूरों की कठिन परिस्थिति और युपी बिहार में छूटे उनके गाँव में एक भिन्न प्रकार का सामाजिक शोषण, यह दोनों ही देश के कई प्रवासी मज़दूरों के जीवन की हकीकत हैं, जिनसे लड़ कर ही वे अपनी ज़िन्दगी बिताते हैं| कोरोनो के नाम पर सरकार की ली गयी नीतियां सुर्खियाँ बनाने के लिए तो पर्याप्त हैं, लेकिन देश के मज़दूरों की बड़ी आबादी के जीवन की कठिन वास्तविकताओं से बिलकुल लापरवाह| ऐसी ही लापरवाह नीति और दमनकारी वयवस्था का परिणाम है की यह लॉक डाउन जान बचाने के बजाए कई मज़दूरों की जान जाने के सबब बन रहा है| कोरोना के संदर्भ में अब तक देश में 3 अन्य आत्महत्याएं हो चुकी हैं जहां अपर्याप्त जानकारी और बेबस परिस्थितियों में फंसे लोगों ने बीमारी का शिकार होने के भय से अपनी जान ले की है| अन्य करोड़ों मज़दूर आधे पेट खा कर, बिना नौकरी शहर में फेज हुए हैं| अन्य कई उधारी पर राशन लेते हुए लॉकडाउन के पूर्व भविष्य में मात्र अनिश्चितता और अन्धकार ही देख पा रहे हैं| क्या मात्र महामारी पर रोक लगने से मेहनतकश जनता की कठिनाइयाँ ख़त्म हो पाएंगी?