निजीकरण से बीटेक 6 हजार और आइटीआइ होल्डर 5 हजार मासिक पर काम करने को मजबूर

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विद्युत प्रसारण निगम में संचालन व रखरखाव ठेके पर दे रखा है। पूरे निगम को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। यहाँ तक कि जहां पर्याप्त स्टाफ है, वहां का काम भी ठेके पर दे रहे हैं।

ऊर्जा से जुड़े महकमों में निजीकरण की ऐसी बयार चली कि सरकारी तंत्र में अंधेरगर्दी छा गई है। ठेकेदारी से विद्युत प्रसारण निगम पूरी तरह से वेंटिलेटर पर आ चुका है। निजीकरण ने ऐसे हाल बिगाड़े कि बीटेक डिग्री धारी युवा 6 हजार रुपए मासिक और आइटीआइ होल्डर 5 हजार मासिक वेतन पर काम करने को मजबूर है।

विद्युत प्रसारण निगम में जहां 132 केवी जीएसएस का संचालन ठेके पर दिया जा रहा है, वहीं 220 केवी जीएसएस का रखरखाव ठेके पर दे रखा है। जिम्मेदार अफसर पूरे निगम को निजी हाथों में सौंप चुके हैं, वहीं बचे हुए जीएसएस भी जल्द ही निजी हाथों में चले जाएंगे। प्रदेश में जीएसएस ठेके में देने का असर भी दक्षिण राजस्थान के जिलों में ज्यादा देखने में आया है।

बड़ी बात यह भी है कि जिन हाथों में जीएसएस की जिम्मेदारी है, वे अनुभवी भी नहीं है। उन्हें महज 15 दिन के प्रशिक्षण के साथ ही जीएसएस पर तैनात कर दिया गया।

ये हाल: 132 केवी जीएसएस के

सरकारी नियम: 7 तकनीकी स्टाफ, 3 जेइएन, 1 जेइएन स्वीकृत

निजीकरण में : 6 आइटीआइ, एक बी-टेक और 4 सिक्योरिटी गार्ड

यह जानें स्थिति

450 सब स्टेशन 132 केवी के प्रदेश में

200 से ज्यादा स्टेशन जा चुके ठेके में

1.90 लाख में ठेके में 132 केवी जीएसएस

स्टाफ का भी कुप्रबंधन

विद्युत प्रसारण निगम के हाल ये है कि अंतिम छोर के जीएसएस पर कम स्टाफ के भरोसे ही जिम्मेदारी छोड़ दी गई है, जबकि शहर और आसपास के जीएसएस पर प्रतिनियुक्ति पर लगाया गया है। रावतभाटा के पास कुआंखेड़ा, डूंगरपुर के आसपुर और प्रतापगढ़ स्थित जीएसएस इसका उदाहरण है, जहां से इंजीनियरिंग सुपरवाइजर और इंजीनियर्स को देबारी और पालोदा में प्रतिनियुक्ति पर लगा दिया गया है।

प्रसारण निगम के 220 केवी जीएसएस पर नियमानुसार 10 तकनीकी स्टाफ, 2 सुपरवाइजर, 2 जेइएन, 3 एइएन, 1 एक्सइएन, 2 हेल्पर सेकंड स्टाफ नियुक्त रहता है। निगम में जहां पर्याप्त स्टाफ है, वहां का रखरखाव भी ठेके पर दे रहे हैं। रखरखाव के नाम पर 220 केवी जीएसएस पर सालाना 8 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं, वहीं 132 केवी जीएसएस के रखरखाव पर 4 लाख रुपए सालाना खर्च हो रहे हैं।