लॉकडाउन के बावजूद भारी संख्या में पहुँचे हमलावरों पर रासुका की कार्रवाई हो!
गुडगाँव। कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के बीच आपराधिक व माँब लिंचिंग की घटनाएँ भी बढ़ रही हैं। ताजा घटना आईएमटी मानेसर के अलियरपुर गाँव की है, जहाँ 8 अप्रैल को मारुति मानेसर के ट्रेनी मज़दूरों सहित तमाम मज़दूरों की गांव के दबंगों ने हॉकी, लाठी डंडों से बुरी तरह पिटाई की है। इनमे से गंभीर स्थिति में किशन को गुड़गांव रेफ़र किया गया है।
घटना स्थानीय अलियरपुर चौक पर स्थित बीजीआर बिल्डिंग की है, जिसमें क़रीब 150 मज़दूर रहते हैं। ये सभी मज़दूर मारुति सुजुकी, उसके पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों और होंडा में काम करते हैं। आठ अप्रैल को दिन के क़रीब 11 बजे 25-30 स्थानीय दबंग हाथ में डंडे और लोहे की रॉड लेकर इस बिल्डिंग में घुस गए।
दहशत में मज़दूरों ने अपने कमरों में भागकर अंदर से लॉक कर लिया, लेकिन जो मज़दूर बाहर रह गए उनकी बेरहमी से पिटाई की गई। दबंगों ने एक कमरे में, जहाँ मारुति में ट्रेनिंग पर रखे गए तीन मज़दूर थे, उनकी लाठी डंडों से बुरी तरह पिटाई की। इस हमले में सिवान (बिहार) निवासी किशन को बुरी तरह चोट लगी और सिर फट गया। दर्जनों और मज़दूर घायल हुए।
हमले का शिकार सभी मज़दूर बिहार के हैं। रिपोर्ट के अनुसार हमलावर उन्हें बिहार से आकर कोरोना फ़ैलाने वाला बोलते रहे।
मकान मालिक द्वारा फ़ोन से सूचना देने पर पुलिस आई और किशन को गुड़गांव के रॉक लैंड अस्पताल ले जाया गया, जहाँ से उन्हें पारस हास्पिटल रेफर कर दिया गया।

मेहनतकश प्रतिनिधि खुशीराम ने पीड़ित मज़दूर किशन से अस्पताल में मुलाकात की और बताया कि मज़दूर बहुत दहशत में है। हॉस्पिटल ने पीड़ित का फोटो भी नहीं लेने दिया। पीड़ित मज़दूर ने कहा कि उसे क्यों मारा गया है, नहीं पता।
प्रतिनिधि ने बताया कि किशन मारुति मानेसर प्लांट में दो साल के लिए स्टूडेंट ट्रेनी है, जिसने एक साल पूरा कर लिया है। घटना के समय कमरे में तीन पार्टनर थे, जिनमे से छोटू कुमार को भी चोट लगी है। साथ ही कई और मज़दूर घायल हैं।
पुलिस के अनुसार इस मामले में एफ़आईआर दर्ज हुई है। लेकिन क्या धाराएं लगी हैं, नहीं पता। असल में अपराधियो पर जानलेवा हमला, माँब लिंचिंग के साथ लॉकडाउन के उल्लंघन पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के तहत मुक़दमा दर्ज कर कार्रवाई होनी चाहिए। यही नहीं, इस मामले में गाँव के सरपंच, मारुति प्रबंधन व स्थानीय प्रशाशन को भी सुरक्षा ना दे पाने के कारण कटघरे में खड़ा करना चाहिए।
सवाल यह है कि लॉकडाउन के बावजूद 20-25 दबंग डंडे और सरिया लेकर कैसे वारदात करने पहुँचे, जबकि चप्पे-चप्पे पर पुलिस मौजूद है? इतनी देर वारदात होता रहा, लेकिन पुलिस क्यों नदारत रही?
यह चिंतनीय स्थिति है कि बिहार के मज़दूरों के प्रति स्थानीय तौर पर सतत नफ़रत व्याप्त है। ऐसे में सवाल यह भी है कि दूर राज्यों से आकर काम करने वाले मज़दूरों की सुरक्षा के कोई प्रावधान क्यों नहीं हैं?