यौन उत्पीड़न, यातायात की असुविधा और निष्प्रभावी ICC पर उठे सवाल
नीमराना स्थित डाईडो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की यूनियन ने रविवार 5 दिसंबर को महिला श्रमिकों के मुद्दों पर विशेष बैठक का आयोजन किया। बैठक में स्थायी व ठेका महिला श्रमिकों की उत्साहपूर्ण भागीदारी रही।
स्थायी और ठेका मज़दूरों के काम का चरित्र एक सामान ही है, लेकिन क्षेत्र की अन्य कम्पनियों की तरह ही प्लांट में कार्यरत 300 के करीब श्रमिकों में से अधिकतर ठेके पर काम करते हैं।कंपनी में केवल 5 स्थायी महिला श्रमिक हैं व 50 से अधिक महिलाएं ठेके पर काम करती हैं। इनमें से अधिकतर पैकिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं और एक छोटी संख्या आरी पर काम करती हैं।
महिला श्रमिकों की एकता पर ख़ास ज़ोर
मीटिंग का ख़ास जोर महिला श्रमिकों को यूनियन प्रक्रिया से जोड़ने, उनके बीच की एकता मज़बूत करने और उनके विशेष मुद्दे समझने पर था। महिला श्रमिकों ने अपनी समस्याओं और उनके निवारण के रास्तों पर विस्तार से चर्चा की। स्थायी नौकरी न मिलना व बेहद कम वेतन के अतिरिक्त महिला श्रमिकों की खास समस्याएं उभर कर आयीं।
इनमें कम्पनी में यौन उत्पीड़न, कार्यस्थल में ICC का निष्प्रभावी होना, घर से कम्पनी तक यातायात की उचित सुविधा की कमी, तबियत ख़राब होने के बावजूद श्रमिक से भारी काम लेने की ज़बरदस्ती करना, बस के जाने के समय में अनावश्यक देरी, गेट पास देने में भेदभाव व गेट पास देने की प्रक्रिया में महिलाओं से फालतू के अनावश्यक सवाल करना, उनसे बहार जाने के समय पति को बुलाने की मांग करने जैसे कई पहलु उभर के आये।
इसमें कम्पनी में यौन उत्पीड़न का मुद्दा विशेष रूप से सामने आया, जहाँ कई श्रमिकों ने सुपरवाईज़र द्वारा अनुचित कमेन्ट, नम्बर माँगना, गेट पास देने के समय बाहर मिलने की मांग करना, अनुमति के बिना उसे छूना इत्यादि के अपने अनुभव साझा किए। कम्पनी में ICC होने, व ICC का बोर्ड लगा होने के बावजूद महिला श्रमिकों का कहना था की ICC प्रभावी नहीं है व बहार से कमेटी में शामिल की गयी सदस्या भी शिकायत करने पर भी उनका उचित सहयोग नहीं करती।
“यूनियन बनने से मिला सुपरवाईज़र द्वारा यौन हिंसा को चुनौती देने का हौसला”
ठेके पे कार्यरत एक महिला श्रमिक ने बताया कि लम्बे समय से उत्पीड़न का सामना करने के बाद उन्होंने अन्तः अपने सुपरवाईज़र के ख़िलाफ़ लिखित शिकायत दर्ज कराने का हौसल जुटाया। उनका कहना है कि लम्बे समय से भय में रहने के बाद, यूनियन के बनने और उसका सहयोग मिलने से ही वह यह शिकायत दर्ज करा सकी हैं। इसके बाद भी उन्हें ICC से उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। ICC की बहार से आने वाली सदस्या ने जहाँ शुरुआत में उन्हें कई अच्छी बातें बतायीं थीं वहीँ शिकायत उठाने के वक्त उन्होंने श्रमिक शिकायतकर्ता को सहयोग करने में कोई भूमिका नहीं निभायी। एचआर की एक महिला सदस्या जो महिलाओं की लाइन का निरिक्षण किया करती हैं वो भी महिला श्रमिकों की यौन उत्पीड़न की शिकायत को अनसुना करती आई है।
यूनियन का कहना है कि ICC के दिए गए नंबर पर कई बार फ़ोन करने के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। अंततः उन्होंने मुद्दे को एचआर के सामने उठाया जहाँ एक दफा कार्यवाही न होने के बाद अब दुबारा एच आर को लिखित शिकायत दी गयी है। श्रमिक प्रक्रिया के किसी नतीजे तक पहुँचने के इंतज़ार में हैं।
यूनियन द्वारा प्रबंधन को दिए गए चार्टर ऑफ़ डिमांड में अन्य मांगों के साथ महिला श्रमिकों की कई विशेष मांगें भी शामिल हैं। इनमें कंपनी के अन्दर डिस्पेंसरी और क्रेश की सुविधा, महिलाओं के लिए अलग रेस्टरूम व यातायात की सुविधा प्रमुख हैं।
“जीवन निकल गया और कुछ नहीं मिला…”
जापानी बहुराष्ट्रीय कंपनी होने के बावजूद डाईडो इंडियन प्राइवेट लिमिटेड अपने श्रमिकों को मात्र न्यूनतम मज़दूरी ही बेसिक सलारी देती है। 8-10 साल काम करने के बाद भी मज़दूरों को बेहद कम तनख्वाह और नाम मात्र सुविधाएँ ही मिल रही हैं। स्थायी श्रमिकों की प्रति माह रु 8,300/- वेतन है जिसके अलावा उन्हें अटेंडेंस के आधार पर अतिरिक्त रु 1800/- और काम के मुताबिक़ ओवर टाइम मिलता है।
अधिकतर महिलाओं का कहना है कि घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी के कारण उन्हें महीने में कभी न कभी छुट्टियाँ लेनी पड़ ही जाती हैं और उन्हें अटेंडेंस की राशि नहीं मिल पाती। वहीँ ठेका मज़दूरों को प्रति माह रु 7300/- का वेतन मिलता है और लगातार रोज़गार की असुविधा का सामना करना पड़ता है। श्रमिकों ने कई सालों के प्रयासों के बाद सितंबर में यूनियन का रजिस्ट्रेशन हासिल किया और फिलहाल प्रबंधन के साथ अपनी मांगपत्र पर वार्ता में हैं।