NCERT द्वारा पाठ्यपुस्तकों में बदलाव आधुनिक पीढ़ी को ज्ञान से वंचित करेगा -हिस्ट्री कांग्रेस

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बयान में यह भी कहा गया है कि इतिहास के प्रति इस तरह का संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण इस युग के किसी भी आधुनिक प्रगतिशील समाज के विचार के विपरीत है।

नई दिल्ली। इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस (आईएचसी) ने एनसीईआरटी द्वारा हटाए गए अंशों के परिणामस्वरूप इतिहास की पाठ्यपुस्तकों और पाठ्यक्रम में हुए बदलावों को लेकर चिंता जाहिर की है।

सोमवार को जारी एक बयान में इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष प्रोफेसर केसवन वेलुथट और सचिव प्रोफेसर नदीम अली रिजवी ने कहा कि उन सभी विद्वानों ने जो ‘तर्कसंगत वैज्ञानिक ज्ञान’ को महत्व देते हैं, इस दृष्टिकोण को त्रुटिपूर्ण और अस्वीकार्य पाया है।

इससे पहले देश-विदेश के 250 के क़रीब इतिहासकारों ने इन बदलावों की आलोचना करते हुए कहा था कि चुनिंदा तरह से पाठ्यपुस्तकों से सामग्री हटाना शैक्षणिक सरोकारों पर विभाजनकारी राजनीति को तरजीह दिए जाने को दिखाता है।

ज्ञात हो कि इन बदलावों में एनसीईआरटी ने मुगलों के इतिहास पर पूरे अध्यायों के साथ गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगे, नक्सली आंदोलन और दलित लेखकों के जिक्र को भी हटाया है। इसके परिणामस्वरूप सीबीएसई, उत्तर प्रदेश और एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को मानने वाले अन्य राज्य बोर्डों के पाठ्यक्रम में बदलाव होंगे।

इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस का बयान

आईएचसी के बयान में कहा गया कि मुगल घराने के नैरेटिव को पूरी तरह से हटाने से आधुनिक पीढ़ी को उस ज़माने के ज्ञान से वंचित होगी, जिसने भारत को राजनीतिक एकता दी। इससे यह पीढ़ी अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति और आधुनिक भारतीय समाज के विचार तैयार करने वाले सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास के महत्व को भी नहीं समझ पाएगी।

उन्‍होंने कहा कि यह एक ऐसा युग था जो कबीर तुलसीदास और अबुल फ़ज़ल जैसे दार्शनिक दिग्गजों के आधुनिकतावादी और उदार विचारों से जुड़ा हुआ है।

बयान में यह भी कहा गया कि प्रचलित नीति का एक संकेत यह भी है कि ‘महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित आख्यान को भी तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।’

बयान में यह भी कहा गया है कि इतिहास के प्रति इस तरह का संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण इस युग के किसी भी आधुनिक प्रगतिशील समाज के विचार के विपरीत है।

हर विषय के पाठ्यक्रमों से घातक छेड़छाड़

इतिहास के अलावा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से भी कुछ अंश हटाए हैं, जिसमें चर्चित आंदोलनों के उदय, 2002 के गुजरात दंगों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट का उल्लेख शामिल है।

इसी तरह, 2002 के गुजरात दंगों का संदर्भ कक्षा 11 की समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग सोसाइटी’ से हटा दिया गया है।

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार कक्षा 12 के छात्रों को 15 वर्षों से अधिक समय से पढ़ाई जाने वाली राजनीतिक विज्ञान की किताबों से कुछ महत्वपूर्ण अंशों को एनसीईआरटी द्वारा पिछले साल जून में जारी ‘तर्कसंगत बनाई गई सामग्री (कंटेंट) की सूची’ में दिए बिना ही हटा दिया गया था।

चुपचाप हटाई गई इस सामग्री की खबर सामने आने पर हुई व्यापक आलोचना के बाद एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा था कि इसे ‘तर्कसंगत बनाई गई सामग्री’ की सूची में न रखना एक चूक हो सकती है और इसे लेकर राई का पहाड़ नहीं बनाया जाना चाहिए।

भाजपा-संघ की खतरनाक मुहिम

मोदी सरकार के सत्ता में आने के साथ ही एक साजिशपूर्ण योजना के तहत इतिहास व अन्य पाठ्यक्रमों को दूषित करने और आरएसएस के एजेंडे के तहत सांप्रदायिक, असत्य व अवैज्ञानिक पाठ्यपुस्तकें थोपने का खेल लगातार तेज होता गया है।

इसके लिए बाकायदा प्रतिष्ठित संस्थाओं को ही भ्रष्ट करने का खेल लगातार जारी है। कोविड आपदा को अवसर बनाकर पारित नई शिक्षा नीति (एनईपी) जहाँ कॉरपोरेट के माँग के अनुरूप है, वहीं आरएसएस के एजेंडे को भी पूरा करता है।

भगवाकरण के इसी एजेंडे के तहत 2022 में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था।

इसी तरह, कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी।

इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था। वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे।

उससे पूर्व 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे। वहीं, 2018 में भी एक ऐसे ही बदलाव में कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में ‘गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों’ में से ‘मुस्लिम विरोधी’ शब्द हटा दिया था।