सरकारी शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया देश की तीसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी है। जबर्दस्त लाभ वाली इस कंपनी ने कोविड में भी मुनाफा बटोरा। इसे देश की ‘मिनी रत्न’ कंपनी का दर्ज प्राप्त है।
देश को अंध राष्ट्रवाद, दंगा-फसाद, अल्पसंख्यक आबादी के खिलाफ़ नफ़रत, बुलडोजर के तफ़रके, लब जेहाद में झोंककर केंद्र की मोदी सरकार असल में बैंक, बीमा, रेल, खदान से लेकर रक्षा संयंत्र तक देश की संपत्तियों-उद्योगों को देशी-बहुराष्ट्रीय मुनाफाखोरों को औने-पौने दम में बेचने में जुटी है।
ताजा खबर में सरकार शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एससीआइएल) को बेचने के लिए वित्तीय बोली आमंत्रित करने की तैयारी में है। कोरोना के बीच दो साल की देरी से सरकार इसे बेचने जा रही है। निजीकरण को लेकर आई इस खबर के बाद एससीआइएल के शेयर लगभग पांच फीसदी उछले हैं।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार अब मई के मध्य तक एससीआइएल के निजीकरण के लिए वित्तीय बोलियां आमंत्रित करने की योजना बना रही है। इस बारे में अंतिम निर्णय 14 अप्रैल को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति की ओर से लिया जाएगा।
देश की तीसरी सबसे बड़ी सरकारी कंपनी, जबरदस्त मुनाफा
ज्ञात हो कि सरकारी शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया देश की तीसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी है। यह सरकारी कंपनी जबर्दस्त मुनाफे में रही है। पिछले पांच साल में एससीआइएल का स्टॉक 22.67 फीसदी चढ़ा है। इस स्टॉक का 52 सप्ताह में उच्चतम 151.40 रुपये रहा है और न्यूनतम 79.20 रुपये है।
कोरोना संकट के दौरान देश में आर्थिक गतिविधियां थम गई थीं, लेकिन उस दौरान भी इस कंपनी ने शानदार कमाई की। वित्त-वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में एससीआइएल को रिकॉर्ड 317 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। जो कि पिछले 54 तिमाही (करीब साढ़े 13 साल) के मुकाबले सबसे ज्यादा था।
‘मिनी रत्न’ का खिताब, बम्पर परिसंपत्तियाँ
भारतीय नौवहन निगम लिमिटेड (एससीआइएल) की स्थापना 2 अक्टूबर 1961 को हुई थी। 18 सितंबर 1992 को कंपनी का दर्जा ‘प्राइवेट लिमिटेड’ से बदलकर ‘पब्लिक लिमिटेड’ कर दिया गया। कंपनी को भारत सरकार ने 24 फरवरी 2000 को ‘मिनी रत्न’ का खिताब दिया था।
केवल 19 जहाजों को लेकर एक लाइनर शिपिंग कंपनी की शुरुआत हुई थी और आज एससीआई के पास डीडब्ल्यूटी के 83 से ज्यादा जहाज हैं। कंपनी के पास टैंकर, बल्क कैरियर, लाइनर और ऑफशोर आपूर्ति उपलब्ध है।
योजना पुरानी, कोविड की वजह से लटकी प्रक्रिया
दरअसल, नवंबर 2019 में ही आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडिलीय समिति ने शिपिंग कॉरपोरेशन को बेचने की सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। लेकिन कोरोना संकट की वजह से प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई थी। अब जनता को नफ़रती जुनून में धकेलकर सरकार इसे बेचने को तैयार है।