हजारों जनता सडकों पर, व्हाइट हाउस घेरा, ट्रंप छिपा बंकर में
अमेरिका के विभिन्न शहरों में लोग पुलिस और सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आए हैं। 25 मई को मिलीपोलिस में एक स्वेत पुलिसकर्मी ने एक अश्वेत अमरीकी जार्ज फ्लॉयड की गर्दन पर घुटने रखकर जानबूझ कर हत्या कर दी। इस घटना के बाद से पूरे अमेरिका में नस्लभेद और रंगभेद के खिलाफ जनता का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।

25 मई के बाद धीरे-धीरे यह विरोध प्रदर्शन अमेरिका के 40 शहरों में फैल गया और इस ने हिंसक रूप ले लिया जिसके बाद शासकों ने उन शहरों में कर्फ्यू लगा दिया। कर्फ्यू के बावजूद लॉस एंजेलिस, फिलेडेल्फिया, वाशिंगटन डीसी, शिकागो, न्यूयॉर्क जैसे शहर में लोग हजारों की संख्या में सड़क पर उतरे। वहीं न्यूयॉर्क में पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर कार चढ़ा देने के बाद मामला और बिगड़ गया। फिलहाल हजारों लोगों को हिरासत में लिया गया है।

न्यूयॉर्क के मेयर ने शहर में हो रहे दंगों के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जिम्मेदार ठहराया है। न्यूयॉर्क के डेमोक्रेटिक मेयर सहित कई राज्यों के पुलिस प्रमुख और प्रवक्ताओं ने राष्ट्रपति ट्रंप के रवैए की आलोचना करते हुए नस्लभेदी हिंसा के लिए ट्रंप की राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है।
सोमवार को प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस के सामने जा पहुंचे तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस के अंडर ग्राउंड बंकर में 1 घंटे तक छुपना पड़ा। एक जगह पर अमेरिकी पुलिस प्रदर्शनकारियों के सामने घुटनों पर झुकी हुई नजर आ रही है। ये पुलिसकर्मी अपने सहकर्मी द्वारा किए गए अपराध के लिए अफसोस व्यक्त कर रहे हैं।

व्हाइट हाउस बना पुलिस छावनी
पूरे व्हाइट हाउस को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए 5,000 नेशनल गार्ड को उतारा गया है। इसके अलावा 2000 गार्डों को तैनात रहने को कहा गया है। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अलग-अलग शहरों में जारी हिंसा के लिए देश के वामपंथ को जिम्मेदार ठहराया है।
प्रदर्शन अमेरिका के 140 शहरों में फ़ैल गया है। खबर में बताया गया कि पुलिस ने सप्ताहांत में दो दर्जन अमेरिकी शहरों से कम से कम 2,564 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें से 20 प्रतिशत गिरफ्तारी लॉस एंजिलिस में हुई हैं।
नस्लभेद और रंगभेद दमनकारी हथियार
दरअसल यह अचानक नहीं हुआ है रंगभेद और नस्ल भेद और अश्वेत और अफ्रीकी मूल के लोगों पर पुलिसिया दमन का अमेरिका में इतिहास रहा है जिसके खिलाफ जनता का संघर्ष इसी तरीके से उभरता रहा है।
नवंबर 2016 में अपनी इसी नस्लभेदी, जनविरोधी राजनीति को लेकर रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे। प्रवासी मजदूरों, महिलाओं, जनतांत्रिक संघर्षों और पर्यावरण आंदोलन पर हमला ट्रंप के मुख्य एजेंडे में शामिल थे।

अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ और अश्वेत लोगों के आंदोलन ब्लैक लाइव्स मैटर ने दुनिया भर में ट्रंप और पुरानी सरकारों के नस्लभेदी रवैए को उभारकर रख दिया है। बराक ओबामा के दो बार के शासनकाल के बावजूद अश्वेत लोगों के खिलाफ अत्याचार और भेदभाव संगठित रूप लेने लगे हैं।
अन्य देशों में फैला प्रदर्शन
1968 में डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद अमेरिका में इतने व्यापक स्तर पर तीखा जन संघर्ष हो रहा है। इस विरोध प्रदर्शन को कई देशों में व्यापक जनसमर्थन मिला है कनाडा, लंदन, न्यूजीलैंड इत्यादि देशों में भी अमेरिकी दूतावास के बाहर भी प्रदर्शन हुए हैं।
बदलाव की नई संभावनाएं
नस्लभेद के खिलाफ अमेरिकी जनता का यह प्रदर्शन संघर्ष और बदलाव की संभावना को दिखाता है। भारत में भी कई बुद्धिजीवियों, फिल्म हस्तियों, खिलाड़ियों इत्यादि ने जॉर्ज फ्लाइड की हत्या और अमेरिकी समाज के नस्लभेद रवैए की आलोचना की है।

लेकिन यही लोग जब भारत में सीएए और एनआरसी के खिलाफ आंदोलन चल रहा था, छात्रों, एक्टिविस्टों और असहमति दर्ज कराने वाली आवाजों पर हो रहे पुलिसिया दमन पर चुप थे। दिल्ली पुलिस द्वारा एक मुस्लिम युवक फैजान को इसी तरीके से मारा गया था, लेकिन असहमति या विरोध की कोई आवाज कुलीन वर्ग द्वारा नहीं उठाई गई थी।
अमेरिका के इस आंदोलन और जन संघर्ष से भारत के मज़दूर और दलित आंदोलन और सामाजिक आंदोलन को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। हम एक ही प्रकार के भेदभाव और सामाजिक-राजनीतिक आतंक के खिलाफ दो अलग-अलग नजरिया नहीं रख सकते हैं, यह दोगलेबाजी होगी।

नस्ल, जाति, धर्म, क्षेत्रवाद पर आधारित हिंसा और घृणा का समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए, चाहे वह अमेरिकी समाज हो, भारतीय समाज हो या दुनिया का कोई भी कोना हो।