1.
सांस
सब कुछ
कभी भी कहीं ठीक-ठाक था
फिर भी
यह क्या
यह कैसी भागमभाग मची हुई है
जैसे
जो बचा है
उसी को बचा लेने की खातिर
हाँफना
बार-बार पूछ रहा है
ऐसे हांफते जाने में भला क्या उपाय हैं?
2.
मौत से डर आखिर किसे नहीं लगता
बड़े खूंखार भी भागते नज़र आते हैं।
लेकिन
एक चिकित्सक हैं
जो मौत से लगातर भिड़ा हुआ है
हमें इस विज्ञान में
और गहरे
और माहिर होना चाहिए।
3.
अब आया ऊंट
पहाड़ के नीचे
किंतु
इसका मतलब यह तो नहीं कि
पहाड़
ऊंट के ऊपर ढह ही गया है
ऊंट
अगर सचमुच का आइमी है
तो एवरेस्ट तक
कदमों तले नजर आता है।
4.
चुतियापा
कभी भी एकांगी नहीं होता
हम जो
खुद उसमें शामिल रहे होते हैं।
5.
भीतर का मन
निरे शक में
डुबा दिया है इसने
आदमी का
आदमी पर से विश्वाम उठा दिया है
हां,
हमारे दौर का
यही सबसे बड़ा सच है कि
अपने-अपने जीने में
हमने किस-किसको मारा
कि
किसी न किमी से
आखिर तो हम भी मारे ही जाने थे।
कवि : शम्भू दत्त पांडेय ‘शैलेय’