लुधियाणा: ‘भारत में फासीवादी उभार और प्रतिरोध की रणनीति’ विषय पर सेमिनार आयोजित

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लुधियाणा (पंजाब)। 13 अक्टूबर को अदारा ‘प्रतिबद्ध’ ने ‘भारत में फासीवादी उभार और प्रतिरोध की रणनीति’ विषय पर पंजाबी भवन, लुधियाणा में सेमिनार का आयोजन किया। सेमिनार की शुरुआत प्रो. जी.एन. साईबाबा और माता कैलाश कौर को दो मिनट का मौन रखकर और क्रांतिकारी नारे बुलंद करके श्रद्धांजलि दी गई।

जानी-पहचानी मार्क्सवादी पत्रिका प्रतिबद्ध के संपादक सुखविंदर ने इस विषय पर विस्तार में बात की। उनके अलावा डा. सुखदेव भूँदड़ी, डा. बलविंदर सिंह औलख, विश्वकांत, हरप्रीत सिंह, अवनीत, इन्कलाबी मज़दूर केंद्र की रविता, सुखविंदर सिंह, दाता सिंह और अन्य लोगों ने विचार-चर्चा में हिस्सा लिया, अनेकों सवाल रखे। मौसम और रमेश ने क्रांतिकारी गीत पेश किए। दाता सिंह और अन्य साथियों ने सेमिनार के अंत में सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि क्रांतिकारी आंदोलन के विकास के लिए ऐसी विचार-चर्चाएँ होती रहनी चाहिए। मंच संचालन लखविंदर ने किया।

सुखविंदर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखते हुए फासीवाद के खिलाफ संसार स्तर पर कम्युनिस्ट आंदोलन के तजर्बे का निचोड़ सांझा करते हुए कहा कि फासीवाद के खतरे को घटाकर देखने के बहुत भयानक नतीजे निकलते हैं, फासीवादी सत्ता कायम होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। इसी से अगर फासीवाद का खतरा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है तो क्रांतिकारी आंदोलन को बड़े नुक्सान उठाने पड़ते हैं। इसलिए फासीवाद से सबंधित सही सैधांतिक समझ की ज़रूरत है और ठोस हालातों का ठोस विश्लेषण होना चाहिए। इसी से ही फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध की सही युद्धनीति लागू की जा सकती है।

उन्होंने फासीवादी आंदोलन और फासीवादी सत्ता के लाज़िमी लक्षणों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारत में आर. एस. एस . की अगवाई में मज़बूत हिंदुत्वी फासीवादी आंदोलन है और इसके खिलाफ लड़ा जा सकता है। लेकिन इसके खिलाफ लड़ते हुए यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पूरे देश में फासीवादी आंदोलन एक समान नहीं है। भारत का बहु-राष्ट्रीय स्वरूप और जाति-व्यवस्था हिंदुत्वी फासीवाद के रास्ते में बड़ी रुकावटें हैं। उन्होंने कहा कि आज समाजवादी क्रांति के लिए संघर्ष करते हुए फासीवादी उभार के खिलाफ लड़ा जाना चाहिए।