सतही छानबीन के आधार पर बृजभूषण के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने दाख़िल की बेहद कमज़ोर चार्जशीट

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पोक्सो एक्ट की धाराएं निरस्त, अन्य धाराओं के लिए दिखाए अपर्याप्त सबूत

15 जून, नयी दिल्ली | बृजभूषण बनाम महिला खिलाड़ियों के केस में आज दिल्ली पुलिस द्वारा कोर्ट में 1000 पेज की चार्जशीट प्रस्तुत की गयी है। 15 जून तक डब्ल्यूएफआई के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ़ चार्जशीट का दाखिल किया जाना, 7 जून को पहलवानों और केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के बीच हुई वार्ता में बने सहमती के मुख्य बिन्दुओं में से एक था। इस समझौते के आधार पर ही पहलवानों ने 15 अगस्त तक धरने को निलंबित करने की घोषणा की थी। बृजभूषण के ख़िलाफ़ मुकद्दमा, पटियाला कोर्ट स्थित सांसदों के लिए बने विशेष न्यायालय में चलाया जाएगा।
पोक्सो की धाराएं हटाने के लिए उत्सुक नज़र आई पुलिस द्वारा जमा की गयी चार्जशीट पर, पुलिस द्वारा दिए जा रहे बयान साफ़ इशारा करते हैं कि चार्जशीट में आरोपी के ख़िलाफ़ बेहद कमज़ोर केस बनाया गया है। नाबालिग खिलाड़ी द्वारा दाखिल पहली प्राथमिकी में लगाए गए सख्त कानून पोक्सो की धाराएं चार्जशीट में शामिल नहीं की गयी हैं। पुलिस का कहना है कि पीड़ित नाबालिग खिलाड़ी और उनके परिवार वालों ने आरोपों को वापस ले लिया है जिस कारण से उन्होंने यह धाराएं हटाईं हैं।

यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नाबालिग खिलाड़ी के पिता ने अपनी शिकायत वापस लेने के समय यह स्पष्ट किया था कि उनपर बनाए जा रहे सामाजिक दबाव के कारण उन्हें यह फैसला लेना पड़ रहा है। लेकिन इस दबाव के बारे में पुलिस द्वारा कोई छानबीन व पीड़ित व उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान करने की अलग पहल नहीं हुई है। महत्वपूर्ण है कि कानून के मुताबिक़ दुसरा बयान दिए जाने से ही पहला बयान अपने आप ख़ारिज नहीं होता, बल्कि दोनों बयानों की तहकीकात होती है। इसलिए पुलिस द्वारा दुसरे बयान के आधार पर कोर्ट में पोक्सो की धाराओं को हटाने का प्रस्ताव पेश करना प्रश्नास्पद है।

यौन उत्पीड़न की धाराएं लगी लेकिन सबूतों से अब भी मुंह फेर रही है पुलिस

अन्य 6 पहलवानों द्वारा दाखिल दुसरे एफआईआर के आधार पर पुलिस ने चार्जशीट में बृजभूषण के ख़िलाफ़ धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से हमला करना या आपराधिक बल का इस्तेमाल करना), 354 क (यौन उत्पीड़न) और 354 घ (महिला का पीछा करना) शामिल की हैं। लेकिन पुलिस के मुताबिक़ इन आरोपों की पुष्टि के लिए भी सबूत अपर्याप्त है।

पुलिस ने बताया है कि बृजभूषण के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप में अब तक कुल 25 लोगों ने गवाही दी है। सबूत के तौर पर पहलवानों द्वारा सैकड़ों फोटो पेश किए गए हैं हालांकि कोई फ़ोटो या वीडियो दाखिल नहीं की गयी है।
पुलिस का कहना है कि उन्होंने सभी फोटो की जांच कर ली है लेकिन इनमें उन्हें कोई आपत्तिजनक बात नज़र नहीं आयी है और सिर्फ आरोपी की उपस्थिति दिख रही है।

यूपी से नहीं पा सकी पुलिस एक भी बयान, फोन रिकॉर्ड तक नहीं खंगाले

पुलिस ने यह भी बताया कि भाजपा सांसद के खिलाफ यूपी से किसी ने भी गवाही नहीं दी है। पहलवानों ने बृजभूषण पर लखनऊ समेत यूपी के अन्य जगहों पर हुई प्रतियोगिताओं के दौरान शारीरिक दुराचार के आरोप भी लगाए थे। पुलिस ने गोंडा समेत यूपी में कई जगह पहुंचकर काफी लोगों के बयान लिए है।

पुलिस के मुताबिक़ उनको पीड़ित व आरोपी की बातचीत और उपस्थिति का अंदेशा देते हुए कोई कॉल डिटेल भी नहीं मिले हैं। अधिकारियों का कहना है कि घटनाएं पुरानी होने के कारण वे मोबाइल आदि की कॉल डिटेल को खंगाल नहीं सकी। लेकिन पिछले एक साल के समय के कॉल रेकोर्ड का भी कोई निरिक्षण करने की बात स्पष्ट नहीं की गयी है।

जान बूझ कर जमा की गयी है कमज़ोर चार्जशीट?

जहाँ एक ओर 15 जून तक चार्जशीट जमा किया जाना सरकार पर पहलवानों द्वारा बनाये गए दबाव का परिणाम है वहीँ पुलिस द्वारा चार्जशीट के अंतरवस्तु के बारे में दिए जा रहे बयान बेहद चिंताजनक भी हैं। कोर्ट में चार्जशीट का इस कदर जमा किया जाना सरकार और पुलिस द्वारा मामले को दबाने का भी एक कदम हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस लोकुर ने हाल ही में यह प्रश्न उठाया कि चार्जशीट तैयार करना, पूरी तरह से पुलिस की ज़िम्मेदारी होने के बावजूद खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को यह सूचना कैसे थी कि 15 जून तक चार्जशीट जमा किया जा सकता है?

चार्जशीट वह मूल दस्तावेज़ है जिसके आधार पर आरोपी के खिलाफ पूरा केस चलाया जाता है। चार्जशीट में पुलिस द्वारा किए गए पूरे तहकीकात का ब्यौरा और सारे सम्बंधित सबूत शामिल होते हैं। चार्जशीट दाखिल होने के बाद पुलिस का काम ख़तम और कोर्ट का काम शुरू होता है। लेकिन कोर्ट भी अपना फैसला उन्हीं तथ्यों के आधार पर ले सकती है जो पुलिस या अन्य पक्षों द्वारा पेश किये जाते हैं। किन्हीं परिस्थितियों में कोर्ट विषय में पुनः तहकीकात की मांग भी कर सकती है।

आन्दोलनकारियों को चार्जशीट की पेशकश से नहीं होना चाहिए निश्चिंत

यह कोई पहली दफा नहीं है जब बृजभूषण शरण सिंह पर बेहद संगीन इलज़ाम लगाए गए हैं। बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर दाऊद इब्राहीम के लोगों को शरण देने व कत्ल इत्यादि के कई केस बृजभूषण शरण पर बन चुके हैं लेकिन इनमें से अधिकतर अवसर पर सबूत ना मिलने पर वे कोर्ट द्वारा बरी किए जा चुके हैं।

मौजूदा मामले में जहाँ पहलवानों के दबाव में सरकार और पुलिस अंततः केस और चार्जशीट दाखिल करने पर मजबूर हुई है, वहीं पुलिस द्वारा दाखिल चार्जशीट ‘सबूत के अभाव में बरी कर दिए जाने’ की मंजिल की ओर ही इशारा कर रही है। चार्जशीट दाखिल किए जाने के बदले में धरने को समाप्त करने के फैसले के बावजूद इस आन्दोलन की आंच सरकार पर बनाए रखना, बृजभूषण को सज़ा दिलाने की मुख्य शर्त है। चार्जशीट का प्रारंभिक विश्लेषण यह साफ़ बताता है कि मात्र आधी-अधूरी और कमज़ोर चार्जशीट दाखिल किये जाने को आन्दोलन की जीत मानना खतरनाक साबित होगा।