उत्तर प्रदेश में प्रदर्शनकारियों को अवैध रूप से हिरासत में लेने, घरों पर बुल्डोजर की कार्रवाई और पुलिस हिरासत में कथित पुलिस हिंसा की विभिन्न घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है।
उत्तरप्रदेश की योगी सरकार द्वारा राज्य को भय व आतंक में तब्दील करने, कानूनों की धज्जियां उड़कर दमन का हथियार बेलगाम बनाने, अवैध हिरासत, लाठी-गोली से आगे बढ़ाकर विरोधियों-अल्पसंख्यकों का घर बुलडोजर से ध्वस्त करने के खिलाफ इंसाफपसंद लोगों का विरोध बढ़ता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि रविवार को इलाहाबाद में योगी प्रशासन ने जेएनयू छात्रा और एक्टिविस्ट आफ़रीन फ़ातिमा के पिता और सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद जावेद के घर पर बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया।
बगैर किसी क़ानूनी प्रक्रिया के दशकों पुराना उनका घर मलबे का ढेर बना दिया गया क्योंकि पुलिस का मानना है कि वह प्रयागराज में 10 जून को विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के ‘मास्टरमाइंड’ थे। जबकि यह घर उनकी पत्नी का था।
सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान ले
पूर्व जजों और अधिवक्ताओं ने पैगंबर टिप्पणी मामले में सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश राज्य में प्रदर्शनकारियों को अवैध रूप से हिरासत में लेने, घरों पर बुल्डोजर की कार्रवाई और पुलिस हिरासत में कथित पुलिस हिंसा की विभिन्न घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है।
पत्र याचिका में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों को सुनने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का मौका देने के बजाय, उत्तर प्रदेश के राज्य प्रशासन ने ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने की मंजूरी दी है।
पत्र में लिखा गया है, “मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर आधिकारिक तौर पर अधिकारियों को “दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया है कि यह एक उदाहरण स्थापित करता है ताकि कोई भी अपराध न करे या भविष्य में कानून अपने हाथ में न ले।”
पत्र याचिका में आगे लिखा है, “उन्होंने आगे निर्देश दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 , और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986, गैरकानूनी विरोध के दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ लागू किया जाना चाहिए। इन टिप्पणियों ने पुलिस को क्रूरता और गैरकानूनी रूप से प्रदर्शनकारियों को यातना देने के लिए प्रोत्साहित किया है।”
इसके अलावा, यह कहा गया है कि यूपी पुलिस ने 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है और विरोध करने वाले नागरिकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।
पत्र याचिका में आगे कहा गया है कि विभिन्न वीडियो सामने आए हैं जिसमें यह देखा गया है कि पुलिस हिरासत में युवकों को लाठियों से पीटा जा रहा है, प्रदर्शनकारियों के घरों को बिना सूचना के तोड़ा जा रहा है और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों का पीछा किया जा रहा है और पुलिस द्वारा उन्हें पीटा जा रहा है।
पत्र में लिखा है, “सत्तारूढ़ प्रशासन द्वारा इस तरह का क्रूर दमन कानून के शासन का अस्वीकार्य तोड़फोड़ और नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है, और संविधान और राज्य द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का मजाक बनाता है। समन्वित तरीके से पुलिस और विकास प्राधिकरणों ने स्पष्ट निष्कर्ष तक पहुंचाया है कि विध्वंस सामूहिक अतिरिक्त न्यायिक दंड का एक रूप है, जो राज्य की नीति के कारण अवैध है।”
याचिका में यह कहते हुए कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में प्रवासी श्रमिकों और पेगासस मामले के मुद्दों पर स्वत: कार्रवाई की थी, पत्र याचिका में सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति में गिरफ्तारी के लिए स्वत: कार्रवाई करने का आग्रह किया गया।
पत्र याचिका जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी, पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट; जस्टिस वी. गोपाल गौड़ा, पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट; जस्टिस ए.के. गांगुली, पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट; जस्टिस एपी शाह, पूर्व चीफ जज, दिल्ली हाईकोर्ट; जस्टिस के चंद्रू, पूर्व जज, मद्रास हाईकोर्ट; जस्टिस मोहम्मद अनवर, पूर्व जज, कर्नाटक हाईकोर्ट; शांति भूषण, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट; इंदिरा जयसिंह, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट; चंद्र उदय सिंह, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट; श्रीराम पंचू, सीनियर एडवोकेट, मद्रास हाईकोर्ट; प्रशांत भूषण, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट; आनंद ग्रोवर, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट की ओर से भेजी गई है।
साभार: लाइव लॉ के इनपुट के साथ