मध्यप्रदेश में पत्रकारों को थाने में नंगा खड़ा करने, दिल्ली में हिन्दू महपंचायत में पत्रकारों पर हमले, उत्तरप्रदेश में पेपरलीक की खबर चलाने पर पत्रकार की गिरफ़्तारी के बाद यह शर्मनाक घटना…
भुवनेश्वरः ओडिशा में एक स्थानीय दैनिक अखबार के पत्रकार को अस्पताल के बिस्तर हथकड़ी और जंजीर से बांधकर रखने का मामला सामने आया है. ओडिशा मानवाधिकार आयोग (ओएचआरसी) ने इस घटना पर स्वत: संज्ञान लिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने इस संबंध में बालासोर के पुलिस महानिरीक्षक (पूर्वी रेंज) से 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट मांगी है. आदेश में कहा गया, ‘मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आयोग ने बालासोर के पूर्वी रेंज के पुलिस महानिरीक्षक को इस मामले में तथ्यों का उल्लेख करते हुए एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है, विशेष रूप से आदेश प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर अस्पताल के बिस्तर पर हथकड़ी और जंजीर में पत्रकार को बांधने का कारण बताने को कहा गया है.’
ओडिशा मानवाधिकार आयोग ने इस घटना पर मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी और जन स्वास्थ्य अधिकारी से भी रिपोर्ट देने को कहा है.
बीते सात अप्रैल को घटना से संबंधित तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, जिसमें एक पत्रकार को राज्य के बालासोर जिले में अस्पताल के बिस्तर पर जंजीर से बंधा देखा गया, जिसके बाद अधिकारियों ने मामले की जांच शुरू की थी. अधिकारियों ने बताया कि पत्रकार लोकनाथ दलेई को बुधवार (छह अप्रैल) को वाहन टकराने की घटना को लेकर एक होमगार्ड से विवाद के बाद गिरफ्तार किया गया था. बालासोर पुलिस अधीक्षक सुधांशु शेखर मिश्रा ने कहा कि मामले में संबंधित पुलिसकर्मियों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है.
पत्रकार दलेई ने कहा कि उन्हें बुधवार (छह अप्रैल) शाम को हमले हमले से संबंधित मामले की जानकारी दी गई और पुलिस स्टेशन ले जाया गया. उन्होंने कहा, ‘जब मैं पुलिस स्टेशन पहुंचा, मैंने पुलिस को यह बताने की कोशिश की कि एक मामूली दुर्घटना थी, जिसमें दोनों ओर से कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.’
पत्रकार का कहना है कि पुलिसकर्मियों ने उनके साथ मारपीट की. उन्होंने कहा, ‘पुलिस स्टेशन में पुलिसकर्मियों ने मुझसे मारपीट की, जिसके बाद मैं बेहोश हो गया.’ दलेई को सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया और बाद में बालासोर जिला स्वास्थ्य ले जाया गया. पत्रकार ने कहा, ‘मुझ पर नजर रखने के लिए लगभग तीन पुलिसकर्मी थे. उन्होंने मुझे जमीन पर लिटाया गया और सुबह सात बजे से दोपहर 12 बजे तक मेरे पैर अस्पताल के बिस्तर से बांध दिए गए थे.’
उन्होंने कहा कि वह इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाएंगे. उन्होंने कहा, ‘यह एफआईआर मेरी छवि खराब करने के लिए जान-बूझकर किया गया प्रयास है. मेरी रिपोर्ट से प्रशासन खुश नहीं था, क्योंकि मैंने सच लिखा था. उन्होंने इस मामूली सी घटना का मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया और मेरे साथ खराब व्यवहार किया.’
उनका कहना है कि बालासोर जिले के नीलगिरी पीएस इलाके में भ्रष्टाचार के संबंध में कथित तौर पर एक खबर के प्रकाशन को लेकर उनके साथ यह व्यवहार किया गया. पत्रकार के खिलाफ आईपीसी की धारा 341 (गलत तरीके से रोकना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 294 (गाली-गलौज), 506 (आपराधिक धमकी), 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल), 186 (लोक सेवक के कर्तव्यों के निर्वहन में स्वेच्छा से बाधा डालना), 189 (लोक सेवक को चोट पहुंचाने की धमकी) और 332 (स्वेच्छा से लोक सेवक को चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया.