न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि इस मामले में 13 सितंबर तक कार्रवाई की जाए।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि केंद्र न्यायाधिकरणों में अधिकारियों की नियुक्ति न करके इन अर्द्ध न्यायिक संस्थाओं को ‘शक्तिहीन’ कर रहा है.
न्यायालय ने कहा कि न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं. कोर्ट ने केंद्र से कहा कि इस मामले में 13 सितंबर तक कार्रवाई की जाए.
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि वह केंद्र सरकार के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती, लेकिन वह चाहती है कि बड़ी संख्या में रिक्तियों का सामना कर रहे न्यायाधिकरणों में केंद्र नियुक्तियां करे.
कई महत्वपूर्ण न्यायाधिकरणों और राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण (एनसीएलटी), ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी), दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण (टीडीएसएटी) जैसे अपीलीय न्यायाधिकरणों में करीब 250 पद खाली हैं.पीठ ने कहा, ‘नियुक्तियां नहीं करके आप न्यायाधिकरणों को कमजोर कर रहे हैं.’
न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की बात पर गौर किया और न्यायाधिकरणों में रिक्तियों और उनसे संबंधित नए कानून संबंधी सुनवाई को 13 सितंबर के लिए स्थगित कर दी.पीठ ने कहा, ‘हम आशा करते हैं कि तब तक नियुक्तियां कर दी जाएंगी.’
केंद्र के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘यह तो साफ है कि आप इस अदालत के फैसलों का सम्मान नहीं करना चाहते. अब हमारे पास न्यायाधिकरण सुधार कानून पर रोक लगाने या न्यायाधिकरणों को बंद करने का विकल्प है या फिर हम स्वयं ही उनमें लोगों की नियुक्ति करें या अगला विकल्प है अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दें.’
न्यायालय ने कहा, ‘हम सरकार के साथ टकराव नहीं चाहते हैं और उच्चतम न्यायालय में जिस तरह से नौ न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है, हम उससे प्रसन्न हैं. पूरी कानूनी बिरादरी ने इसकी सराहना की है. ये न्यायाधिकरण सदस्यों या अध्यक्ष के अभाव में समाप्त हो रहे हैं. आप हमें अपनी वैकल्पिक योजनाओं के बारे में सूचित करें.’मेहता ने कहा कि सरकार भी किसी तरह का टकराव नहीं चाहती है. उन्होंने इस आधार पर कुछ और समय मांगा कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, जो इन मामलों में पीठ की मदद कर रहे हैं, वह कुछ निजी परेशानियों से जूझ रहे हैं.
न्यायालय ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका समेत कई नई याचिकाओं पर नोटिस जारी किए. यह कानून संसद के मानसून सत्र के दौरान पारित हुआ था और इसे राष्ट्रपति ने 13 अगस्त को मंजूरी दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि मोदी सरकार ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के जरिये उन प्रावधानों को भी बहाल कर दिया है, जिसे पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.नए कानून में एक धारा 184 जोड़ी गई है, जिसे शीर्ष अदालत ने अपने 14 जुलाई के आदेश में रद्द कर दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि वित्त अधिनियम की धारा 184 (11), जो सदस्यों के लिए चार साल का कार्यकाल निर्धारित करती है, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कानून के शासन और संविधान के अनुच्छेद 14 के सिद्धांतों के विपरीत है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्ष या जब तक वह 70 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है और अधिकरण के सदस्य का कार्यकाल पांच वर्ष या उसके 67 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक का होगा.
इसी तरह कोर्ट ने जुलाई 2021 के अपने फैसले में कहा था कि नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष तय करना असंवैधानिक है. हालांकि ये सारे प्रावधान नए कानून में जोड़ दिए गए हैं.
पीठ ने कहा कि इन न्यायाधिकरणों में पीठासीन अधिकारी या अध्यक्ष के 19 पद रिक्त हैं. इसके अलावा न्यायिक और तकनीकी अधिकारियों के क्रमश: 110 और 111 पद भी रिक्त पड़े हैं.
द वायर से साभार