ओडिशा में पुलिस ने आदिवासी महिलाओं, बच्चों और ईसाई पादरियों पर हमला किया: रिपोर्ट

मार्च के अंत में ओडिशा के मोहना तहसील के जुबा गांव में पुलिस और आदिवासियों के बीच कथित तौर पर झड़प हुई थी. एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि एक चर्च को कथित तौर पर अपवित्र किया गया, पादरियों और बच्चों पर लाठियों से हमला किया गया, महिलाओं के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ की गई थी.
नई दिल्ली: ओडिशा में उन स्थानों, जहां मार्च के अंत में पुलिस और आदिवासियों के बीच कथित तौर पर झड़प हुई थी, का दौरा करने वाली एक आठ सदस्यीय फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने पाया कि एक चर्च को कथित तौर पर अपवित्र किया गया था, पादरियों और बच्चों पर लाठियों से हमला किया गया था, तथा महिलाओं के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ की गई थी.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ओडिशा में किसी ईसाई चर्च पर पुलिस द्वारा किया गया यह पहला हमला है. टीम ने 9 अप्रैल को गजपति जिले के मोहना तहसील के जुबा गांव का दौरा किया. इसमें सात वकील और एक सामाजिक कार्यकर्ता- क्लारा डिसूजा, गीतांजलि सेनापति, थॉमस ईए, कुलकांत दंडसेना, सुजाता जेना, अंजलि नायक, अजय कुमार सिंह और सुबल नायक शामिल थे.
अपनी रिपोर्ट में टीम ने कहा कि ओडिशा पुलिस ने 22 मार्च को एक गांव में कथित तौर पर गांजे की खेती की खबर के आधार पर छापा मारा था.
‘चर्च में जबरन घुसे’
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि उस दिन कई हमले हुए. लगभग 15 पुलिसकर्मी कथित तौर पर जुबा चर्च में घुस गए, जहां चार युवा कोंध आदिवासी महिलाएं और लड़कियां रविवार की प्रार्थना और अगले दिन के लिए सामूहिक प्रार्थना की तैयारी कर रही थीं. उनमें से दो 12 साल की उम्र के नाबालिग थे. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आक्रामक पुलिसकर्मियों ने सफाई के उपकरण तोड़ दिए और चर्च के पवित्र स्थान को अपवित्र कर दिया.’
इसमें कहा गया है कि बिना वारंट के चर्च में पुलिस का कथित प्रवेश अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है, जो धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार भी शामिल है, और यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 298 का उल्लंघन है – धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना.
रिपोर्ट में क्रूर हिंसा का जिक्र किया गया है. इसमें कहा गया है, ‘कोंध आदिवासी समूह की दो युवतियों को चर्च के भीतर लाठियों से पीटा गया और फिर उन्हें लगभग 300 मीटर दूर पुलिस बस में घसीटा गया.’ नाबालिग कथित तौर पर परिसर में रहने वाले पादरियों के पास भागकर मदद मांग रहे थे. रिपोर्ट के अनुसार, 38 वर्षीय सबर आदिवासी समूह की महिला बावर्ची, जो घर में मौजूद थी और नाबालिग लड़कियों की चीखें सुनकर बाहर आई थी, को भी कथित तौर पर बुरी तरह पीटा गया. उसके कपड़े फाड़ दिए गए.
इसमें आगे कहा गया है, ‘यह बताया गया है कि आस-पास के गांव के बच्चों को भी नहीं बख्शा गया, जिनमें से कुछ अपनी माताओं की गोद में थे. बच्चों और महिलाओं को बस में कुछ दूर ले जाया गया और वहीं छोड़ दिया गया… महिलाओं से कुछ मोबाइल फोन छीन लिए गए, जो अभी तक उन्हें वापस नहीं किए गए हैं.’ साथ ही कहा गया है कि इसमें से कई बीएनएसएस और पॉक्सो अधिनियम के उल्लंघन के बराबर हैं.
‘पादरियों की पिटाई’
दो कैथोलिक पादरियों पर भी कथित तौर पर पुलिस ने हमला किया जो अपने घरों से बाहर निकले थे. फादर जेजी और फादर डीएन- जिन्हें रिपोर्ट के अनुसार कथित तौर पर घसीटा और पीटा गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि पादरियों पर ‘पाकिस्तानी’ होने और लोगों का धर्म परिवर्तन करने का आरोप लगाया गया था. रिपोर्ट में कहा गया कि डीएन के कंधे की हड्डी टूट गई है. कुछ पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर पादरी के घर से 40,000 रुपये लूट लिए.
रिपोर्ट के अनुसार, अन्य ग्रामीणों – जिनमें एक विधवा स्त्री और उनकी नाबालिग बेटी भी शामिल थी- को भी पीटा गया, पुलिस ने स्थानीय लोगों के घरों में जबरन प्रवेश किया और जो कुछ भी उनके हाथ लगा उसे नष्ट कर दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लगभग 20 मोटरसाइकिलें नष्ट कर दी गईं तथा टीवी सेट, चावल, धान, मुर्गियां और अंडे सहित संपूर्ण खाद्य सामग्री नष्ट कर दी गईं.’
‘कोई कार्रवाई नहीं हुई’
रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि गजपति जिला मानव विकास सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर है और ओडिशा के 30 जिलों में से 27वें स्थान पर है. यह अल्पसंख्यक बहुल जिला है, जिसमें 38% ईसाई हैं और 50% से ज़्यादा आदिवासी आबादी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा प्रभावित मोहना ब्लॉक जिले के सबसे कम विकसित ब्लॉकों में से एक है और ओडिशा का दूसरा सबसे बड़ा ब्लॉक है, जहां 37.11% महिला साक्षरता दर है और 93% लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कथित तौर पर क्रूरता की घटना के 20 दिन बाद भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. ‘हालांकि, यह बताया गया है कि पुलिस अधीक्षक, गजपति को भी शिकायतें की गई हैं.’
टीम ने लिखा कि उनका मानना है कि यह ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति सांप्रदायिक रूप से पक्षपाती और/या आदिवासी समूहों के प्रति जातिवादी मानसिकता वाले कुछ पुलिसकर्मियों का काम है, जिनमें बच्चों और महिलाओं के मानवाधिकारों और सम्मान की कोई भावना नहीं है.’
टीम ने कहा कि उन्हें कथित क्रूरताओं पर किसी मीडिया रिपोर्ट की जानकारी नहीं है. रिपोर्ट में पुलिस का हवाला नहीं दिया गया है.
इसने राज्य प्रशासन को कई सिफारिशें कीं, जिसमें पुलिस के बीच महिलाओं, आदिवासियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति सांप्रदायिक और जातिगत पूर्वाग्रह रखने वाले आपराधिक तत्वों की पहचान करने और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा गया. इसने एससी/एसटी (पीओए) अधिनियम, पॉक्सो अधिनियम, बीएनएसएस की लागू धाराओं और संविधान में निहित मौलिक अधिकारों को तत्काल लागू करने के लिए कहा.
रिपोर्ट में विभिन्न पृष्ठभूमि से पुलिसकर्मियों की भर्ती करने और उन्हें कानूनों और सभी धार्मिक स्थलों के सम्मान की आवश्यकता के बारे में जागरूक करने का भी आह्वान किया गया है. इसमें मीडिया से भी अधिक सहयोग की अपील की गई है.