चित्र कथा: दिल्ली में वायु गुणवत्ता चरम पर! कौन है ज़िम्मेदार?

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दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भयावह प्रदूषण से जूझ रहा है। सरकार किसानों द्वारा पराली जलाने से फैलते प्रदूषण का शोर मचाया जा रहा है। अब पर्यावरण से जुड़े ‘थिंक टैंक’ ‘सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट’ (सीएसई) की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ताप ऊर्जा संयंत्रों की ओर से उत्सर्जन मानकों का पालन नहीं करने से क्षेत्र में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के अध्ययन में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित कोयला आधारित 12 ताप विद्युत संयंत्रों (टीपीपी) में ‘फ्लू गैस डीसल्फ्यूराइजेशन (एफजीडी)’ प्रौद्योगिकी लगाने से सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) के उत्सर्जन से पर्यावरण बुरी तरह दूषित हो रहा है।

ये संयंत्र दादरी टीपीपी, गुरु हरगोबिंद टीपीएस, हरदुआगंज टीपीएस, इंदिरा गांधी एसटीपीपी, महात्मा गांधी टीपीएस, पानीपत टीपीएस, राजीव गांधी टीपीएस, राजपुरा टीपीपी, रोपड़ टीपीएस, तलवंडी साबो टीपीपी, यमुना नगर टीपीएस और गोइंदवाला साहिब ताप संयंत्र हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि जून 2022 और मई 2023 के बीच इन संयंत्रों ने वायुमंडल में 281 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ा। 

अध्ययन में ताप विद्युत संयंत्रों से होने वाले उत्सर्जन के प्रभाव की तुलना पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन से की गई है। इसमें पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के ताप विद्युत संयंत्रों से होने वाला वार्षिक सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन (89 लाख टन) पराली को जलाने से होने वाले उत्सर्जन से 16 गुना अधिक है।

देखें चित्रकथा में…