जन चेतना यात्रा जारी: अडानी-अंबानी-मोदी गठजोड़ के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का आह्वान

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कॉरपोरेट व फासीवादी हमले से लड़ने; लोकतंत्र, समानता और प्रगति के लिए संघर्ष को मजबूत करने के लिए, 6 दिसम्बर से शुरू 19 दिवसीय यह यात्रा बंगाल के बाद झारखंड पहुंची!

आरएसएस-भाजपा के फासीवादी हमलों के खिलाफ आवाज़ उठाते और कॉरपोरेट पूंजी के शोषण-लूट और उसमे विपक्षी पार्टियों के भी शासक-वर्गीय चरित्र का पर्दाफांस करते हुए जन चेतन यात्रा ने पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में अपनी यात्रा का एक मुकाम पूरा किया।

बाँकुरा जिले के बर्जोरा और बेलियातोरा से गुजरते हुए पश्चिम बंगाल में पश्चिम बर्धमान के दुर्गापुर, आसनसोल इलाकों से होते हुए पश्चिम बंगाल में जन चेतन यात्रा का सफ़र 10 दिसम्बर को समाप्त हुआ। आज 11 दिसम्बर को यात्रा झारखंड के धनबाद में पहुँचा।

इस दौरान जनता के मुलभुत मुद्दों, वास्तविक जनवाद का सवाल, लोकतंत्र, प्रगति और समानता की लड़ाई को मजबूत करने के लिए आवाज़ बुलंद हुई और और यह अडानी-अंबानी-मोदी गठजोड़ के खिलाफ निर्णायक आह्वान हो रहा है। कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में मज़दूर-महनतकक्षों, किसानों और छात्र-युवाओं की बड़ी भागीदारी देखी गई।

यात्रा का चौथा और पांचवा दिन (9-10 दिसंबर 2023)

कृषक, आदिवासी और मज़दूर आंदोलनों का केन्द्र

बाँकुरा क्षेत्र महान कृषक और आदिवासी आंदोलनों की ऐतिहासिक भूमि रहा है। भारत के सर्वप्रथम इस्पात उद्योग और कोयला खदान के जिले दुर्गापुर-आसनसोल में रविवार को कार्यक्रम समाप्त हुआ। इस दौर में यात्रा को ज़िला के निवासियों का भारी जनसमर्थन मिला।

1960 के दशक में नक्सलबाड़ी से उभरे ललकार में दुर्गापुर देश के क्रांतिकारी मजदूर आंदोलन का केंद्र रहा। 1974 में इंदिरा तानाशाही के खिलाफ अखिल भारतीय रेलकर्मी हड़ताल के चलते इस्पात मज़दूरों का राजनैतिक समर्थन मिला। लेकिन 80 के दशक आते-जाते, इस उभार पर उदारवादी आक्रमण हुआ, जिसके चलते ही बेलगाम ठेकाकरण ने मजदूर आंदोलन की व्यापक एकता को खत्म करने की कोशिश थी। आज इस क्षेत्र में कार्यस्थल-संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ और दिन में 14-16 काम के घंटे हमारे सामने बड़ी चुनौतियां है।

नवउदारवाद नीतियों से तहत आबादी के सभी वर्गों में संकट बढ़ा

विभिन्न नुक्कड़ कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जहां वक्ताओं ने क्षेत्र विशेष मुद्दों को उठाया और नवउदारवादी-फासीवादी सिस्टम के खिलाफ एक संयुक्त क्रांतिकारी संघर्ष बनाने की आवश्यकता के बारे में बात की। बैठकों को सीपीआई एमएल (आरआई) से अलीक चक्रवर्ती, चाय बागान संग्राम समिति से समिक, आदिवासी एकता मंच से रतन हांसदा, सीपीआई-एमएल एनडी से राजीव कारी, आजाद गण मोर्चा से सुप्रिया बनर्जी, एमकेपी से अमिताव भट्टाचार्य, एमएसके दिल्ली से श्रेया, सहित अन्य लोगों ने संबोधित किया।

सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने विभिन्न लोक विधाओं से प्रभावित प्रतिरोध के गीत प्रस्तुत किये।

अपने पहले चरण में, यात्रा ने उन शहरों और क्षेत्रों को कवर किया जहां श्रमिक अधिकारों पर हमले, कृषि संकट, जमीन और विस्थापन प्रमुख मुद्दे हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि नवउदारवाद से तहत आबादी के सभी वर्गों में संकट बढ़ गया है। वास्तविक स्वतंत्रता और सम्मान के लिए लोगों के जुझारू और समझौताहीन  संघर्षों की एकता बनाने के लिए, हम झारखंड और बिहार से होते हुए वाराणसी की ओर कूच करेंगे।

जन चेतना यात्रा: पहला और दूसरा दिन

फासीवादी और कॉर्पोरेट आक्रमण के खिलाफ, कोलकाता से बनारस तक जन चेतना यात्रा के तहत कोलकाता के धर्मतल्ला में प्रतिरोध सभा और शहर में जन रैली के साथ उद्घाटन कार्यक्रम हुआ। दूसरे दिन यात्रा हुगली और बर्धमान जिलों के विभिन्न शहरों में अभियान और कार्यक्रम करते हुए हुगली के उत्तरपाड़ा से रवाना हुई।

कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में भागीदारी देखी गई और यह अडानी-अंबानी-मोदी गठजोड़ के खिलाफ एक निर्णायक आह्वान रहा। दोनों जिले ऐतिहासिक रूप से क्रमशः कपड़ा उद्योग और कृषि समृद्धि के केंद्र रहे हैं।

https://mehnatkash.in/2023/12/07/jan-chetna-yatra-begins-with-rally-in-kolkata/

कठिन हालात: कपड़ा उद्योग तबाह; किसानों की बर्बादी

हुगली, जो कभी जूट और सूती कपड़ा उद्योगों के लिए मशहूर था, वहां मिलों के बंद होने का सिलसिला शुरू हो गया है। पिछले कुछ दशकों में, नवउदारवादी भारत में उद्योग एसईजेड में स्थानांतरित हो गए हैं जहां श्रम अधिकार लागू नहीं होते और ऐतिहासिक रूप से श्रमिक आंदोलन कमज़ोर रहा है।

इसी तरह, बर्धमान में कृषि में नवउदारवादी नीतियों का लागू होना, खाद एवं बीज की बढ़ती लागत, सिंचाई की कमी ने एक उपजाऊ क्षेत्र को संकट में धकेल दिया है। किसान अपनी उपज कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं। मशीनीकृत कटाई की शुरुआत और कोई वैकल्पिक रोजगार नहीं होने के कारण, इस क्षेत्र में बेरोजगारी का स्तर तेजी से बढ़ा है, जिससे नौकरियों के लिए पलायन आम हो गया है। जिले में कार्यक्रमों के दौरान उठाए गए मुद्दों में दलितों और विशेष रूप से आदिवासियों की स्थिति भी शामिल थी, जो कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा है।

यात्रा के तहत चिनसुराह, गलसी, पानागढ़ में कार्यक्रम आयोजित किये गये। कार्यक्रम को सौरेन चाटर्जी (एमकेपी), झेलम, महिला आंदोलन कार्यकर्ता (एफआईआर), फातिमा (सीपीआई-एमएल आरआई), अखिल हिंद फॉरवर्ड ब्लॉक (क्रांतिकारी) के राम चंद्र आजाद और तापती चाटर्जी, महिला आंदोलन कार्यकर्ता (श्रमजीवी नारी मंच) और अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया।

दार्जिलिंग, दिल्ली, कोलकाता और मुर्शिदाबाद के सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिरोध के गीत प्रस्तुत किये। इन कार्यक्रमों के माध्यम से यात्रा में शामिल होने और नवउदारवादी-फासीवादी हमलों के खिलाफ लोगों के संघर्ष को मजबूत करने का आह्वान किया गया।

यात्रा जारी

फासीवादी और नवउदारवादी हमले से लड़ने, लोकतंत्र, समानता और प्रगति के लिए संघर्ष को मजबूत करने और विकसित करने के लिए, बाबरी विध्वंस दिवस 6 दिसम्बर को कोलकता से शुरू 19 दिवसीय यह यात्रा बंगाल के बाद झारखंड व बिहार होते हुए 20 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के बनारस में सम्पन्न होगी।

उल्लेखनीय है कि यह यात्रा इन क्षेत्रों में कार्यरत विभिन्न क्रन्तिकारी वामपंथी और जनवादी संगठनो ने मिलकर शुरू की है।

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