पंतनगर: गैरक़ानूनी कृत्यों के खिलाफ डॉल्फिन मज़दूरों का पारले चौक पर न्याय के लिए धरना शुरू

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पंतनगर (उत्तराखंड)। लंबे समय से संघर्षरत डॉल्फिन कंपनी के मज़दूरों का अन्याय के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा। स्थाई मजदूरों को ठेकेदार की नौकरी में नियोजित करने के गैरकानूनी कृत्य के खिलाफ और श्रम कानूनी अधिकारों को लागू करने की माँग पर 28 अगस्त से मज़दूरों ने सिडकुल पंतनगर के पारले चौक पर अपने न्याय के लिए धरना शुरू कर दिया है।

इस दौरान धरना स्थल पर हुई सभा को सम्बोधित करते हुए डॉल्फिन मजदूर संगठन के अध्यक्ष ललित कुमार ने कहा कि कंपनी में विगत लम्बे समय से कंपनी मालिक द्वारा परमानेंट मजदूरों को जबरजस्ती ठेकेदार की नौकरी में धकेला जा रहा है। यह आजाद भारत में संभवतः अब तक का पहला मामला है, जहाँ परमानेंट और नियमित मजदूरों को संविदा और अस्थाई नौकरी में धकेला गया है।

इस अवैध कृत्य पर श्रम विभाग और शासन प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। जबकि संविदा श्रम अधिनियम 1970 के इस घोर उल्लंघन पर मामला प्रकाश में आते ही श्रम विभाग को कम्पनी मालिक और ठेकेदारों के ऊपर जिला कोर्ट में आपराधिक मुकदमा दर्ज करना चाहिए था और ठेकेदारों के लाइसेंस को निरस्त करना चाहिए था और ऐसे सभी परमानेंट मजदूरों की पूर्व की स्थिति में पुनः बहाल करना चाहिए था।

संगठन मंत्री वीरू सिंह ने कहा कि डॉल्फिन कंपनी में 90% से भी ज्यादा मजदूरों को विगत वर्ष में मात्र रुपये 150-300 ही बोनस दिया गया था। बोनस एक्ट के इस घोर उल्लंघन पर भी श्रम विभाग मूकदर्शक बना हुआ है। जबकि कम्पनी मालिक पर श्रम विभाग को मामला संज्ञान में आते ही जिला कोर्ट में बोनस एक्ट के उल्लंघन पर भी आपराधिक मुकदमा दायर करना चाहिए था और मजदूरों के उक्त बकाया बोनस की वसूली कार्यवाही शुरू करनी चाहिए थी।

संगठन उपाध्यक्ष सोनू कुमार ने कहा कि पिछला बकाया न्यूनतम वेतनमान दिलाने से भी श्रम विभाग किनाराकसी कर रहा है। जबकि न्यूनतम वेतनमान कानून के इस उल्लंघन पर भी श्रम विभाग को कंपनी मालिक के विरुद्ध जिला कोर्ट में अलग से क्रिमिनल केस दर्ज करना चाहिए था। न्यूनतम वेतनमान की समस्त धनराशि की वसूली के लिए कार्यवाही शुरू करनी चाहिए थी।

संगठन की महिला उपाध्यक्ष श्रीमती सुनीता ने कहा कि डॉल्फिन कम्पनी में मालिक द्वारा परमानेंट मजदूरों को पूर्व सूचना दिए बिना, कोई नोटिस या आरोप पत्र दिए बिना अविधिक रूप से गेटबंद करके लगातार अनुचित श्रम ब्यवहार किया जा रहा है। इस अवैध कृत्य में लिप्त कंपनी मालिक के ऊपर श्रम विभाग को उत्तराखंड /उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 14(A) के तहत जिला कोर्ट में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराना चाहिए था और उक्त सभी मजदूरों की सवेतन कार्यबहाली बहाली करानी चाहिए। स्थाई आदेशों के उल्लंघन पर कंपनी मालिक के खिलाफ अलग से कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।

महिला श्रमिक पिंकी ने कहा कि कंपनी में हजारों मजदूर कार्यरत हैं, किन्तु उन्हें केंटीन सुविधा नहीं दी जाती है जो कि कारखाना अधिनियम 1948 का है घोर उल्लंघन। इस पर श्रम विभाग को कंपनी मालिक के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करके केंटीन सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए थी।

पिंकी गंगवार ने कहा कि इसके पश्चात् भी श्रम विभाग मूकदर्शक बना हुआ है और प्रशासन एवं पुलिस  कंपनी मालिक के पक्के मित्र बनकर पीड़ित मजदूरों का ही दमन कर रहे हैं। मजदूर विगत सात आठ माह से न्याय मांग रहे हैं और आवाज़ उठा रहे हैं, किन्तु शासन सत्ता पीड़ित मजदूरों की पीड़ा को सुनने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है। इसी कारण से डॉल्फिन कंपनी में श्रमिकों के बीच आक्रोश पनप रहा है जो कि कभी भी बड़े स्तर पर फूट सकता है, जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी।

अन्य मज़दूरों का मिल समर्थन

डॉल्फिन मजदूरों के धरना स्थल पर पहुंचे श्रमिक संयुक्त मोर्चा उधमसिंह नगर के अध्यक्ष दिनेश तिवारी और कार्यकारी अध्यक्ष दलजीत सिंह ने कहा कि श्रमिक संयुक्त मोर्चा और सिडकुल की सभी यूनियने डॉल्फिन मजदूरों के साथ में तन मन धन से पूरी तरह से ख़डी हैं।

धरना स्थल पर समर्थन के लिए आम आदमी पार्टी से किरन विश्वास, समाज सेवी सुब्रत विश्वास, इंट्राक मजदूर संगठन के अध्यक्ष दलजीत सिंह, लुकास टीवीएस मजदूर संघ की पूरी टीम, राणे मद्रास इम्प्लाइज यूनियन के साथी, भाई चारा एकता से के पी गंगवार, विक्की, भूपेंद्र, पिंकी गंगवार, भानु, बब्लू, दिनेश, प्रेमपाल, प्रमोद, राजू समेत सैंकड़ो की संख्या में मजदूर उपस्थित थे।

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