देश बेचो अभियान: विधुत संशोधन विधेयक बिजली विभाग के निजीकरण का मसौदा है

निजी कंपनियां बिजली वहीं देंगीं जहां उसे मुनाफा अधिक हो। यह आम बिजली उपभोक्ताओं की पॉकेट पर एक और डकैती है। यह कानून राज्य सरकार की शक्तियों को हड़पने वाला है।
मोदी सरकार तेजी से सार्वजनिक व सरकारी उद्यमों-संपत्तियों को बेचने में बेखौफ जुटी हुई है। इसी क्रम में तमाम विरोधों के बीच केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने 2003 के बिजली क़ानून में संशोधन करने के लिए सोमवार को लोकसभा में विद्युत संशोधन विधेयक, 2022 पेश किया।
मंत्री ने बेहतर कॉर्पोरेट प्रशासन के माध्यम से प्रशासनिक सुधार लाने के लिए संशोधन आवश्यक बताया। यानी स्पष्ट तौर पर मोदी सरकार की कॉरपोरेट पक्षधरता का बखान किया। फिलहाल कुछ संशोधनों के लिए इसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है।
निजीकरण के मोदी सरकार के इस क़दम के खिलाफ देशभर के 27 लाख बिजली कर्मचारियों ने पूरे देश में जोरदार विरोधप्रदर्शन के साथ हड़ताल की। विपक्षी पार्टियों ने भी इसका जमकर विरोध किया। विपक्ष ने इसे बिजली महकमें के निजीकरण की दिशा में एक कदम बताया।
उल्लेखनीय है कि जन विरोधी कृषि कानूनों और मज़दूर विरोधी श्रम संहिताओं के साथ कोविड पाबंदियों के बीच सन 2020 में मोदी सरकार ने विधुत संशोधन विधेयक 2020 भी पेश किया था। लेकिन किसान आंदोलन के कारण यह स्थगित रहा। कृषि कानूनों की वापसी के साथ संयुक्त किसान मोर्चा को इसे पारित न करने का सरकार ने आश्वासन दिया था। लेकिन मौका देखकर अब इसे क़ानूनी जामा पहनने में वह जुट गई।
क्या है नया बिजली कानून
मौजूदा संशोधन विधेयक में विधुत कानून 2003 में 10 संशोधन प्रस्तावित किये गये हैं। नया कानून विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 14, धारा 42 आदि में संशोधन के साथ अधिनियम में धारा 60ए को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है।
यह देश भर के अहम बिजली क्षेत्र को देशी-बहुराष्ट्रीय मुनाफाखोर कंपनियों के हित में संशोधन है। साथ ही यह कानून राज्य सरकार की शक्तियों को हड़पने और देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने वाला है। यह देश के आम बिजली उपभोक्ताओं की पॉकेट पर एक और डकैती है। संशोधन में जुर्माने की दरें बढ़ाई गयीं हैं और कई मामलों में जेल व जुर्माना दोनों का भी प्रस्ताव किया गया है।
इसमें मूल बदलाव बिजली के वितरण में निजी कम्पनियों को अनुमति देना है। उपभोक्ताओं को अलग-अलग निजी कम्पनियों से बिजली खरीदने का अवसर देना है। निजी कम्पनियां बिजली वितरण के लिए सरकारी आधारभूत चीजों (खम्बों, तार लाइनों आदि) का इस्तेमाल अब कर सकेंगी।
ध्यान रहे कि बीते वर्षों में निजी दूर संचार कम्पनियों को कारोबार की छूट दी गयी जिन्होंने बीएसएनएल के साधनों को इस्तेमाल कर अपना कारोबार बढ़ाया। सरकार ने घाटे की जगहों पर बीएसएनएल को कारोबार करने को कहा और शहरों आदि में निजी कम्पनियों के कारोबार को प्रोत्साहन दिया। परिणाम यह हुआ कि बीएसएनएल को घाटे में धकेलकर उसे बेचा जाने लगा।
ज़ाहिर है कि बिजली महकमें में भी यही प्रक्रिया अपनायी जा रही है। बिजली विभाग के ढेरों कामों- मीटर लगाना, मीटर रीडिंग लेना, बिल वसूलना लाइनों के कामों आदि को पहले से ही ठेके/संविदा में देकर निजीकरण प्रक्रिया जारी है।
मौजूदा संशोधन में निजी कम्पनियों को वितरण के लिए लाइसेंस दिये जा रहे हैं। स्पष्ट है कि निजी कम्पनियों के लिए सुविधा व जन कल्याण से कहीं ऊपर मुनाफा है। वे बिजली वहीं देंगीं जहां उसे मुनाफा अधिक हो। बाकी घाटे वाले क्षेत्रों में सरकार सरकारी विभाग को बिजली देने को कहेगी। सरकारी विभाग का निजी कम्पनियों के मुनाफा बढ़ाने, उनका कारोबार बढ़ाने का एक माध्यम की तरह से इस्तेमाल किया जायेंगे।
इस कानून से क्या फर्क पड़ेगा?
- इस विधेयक से बिजली वितरण क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निजी कंपनियों की घुसपैठ का रास्ता तैयार होगा। उनका दबदबा कायम होगा।
- निजी कंपनियों का दखल बढ़ने से सस्ती बिजली का दौर समाप्त होगा। लोगों को महंगा पावर टैरिफ चुकाना होगा।
- निजी कंपनियां उन सर्कल में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश करेंगी, जहां बिजली वितरण का कारोबार मुनाफे वाला है।
- उन इलाकों में बिजली के संकट की स्थिति पैदा होगी, जहां कारोबार मुनाफे वाला नहीं है, क्योंकि ऐसे इलाकों से निजी कंपनियां दूर रहेंगी।
- सरकारी कंपनियां केवल उन ग्राहकों के भरोसे रह जाएंगी, जो सब्सिडी के सहारे काम चला रहे हैं। जिन्हें घाटे के नाम पर बेच दिया जाएगा।
- निजी कंपनियों को अपने हिसाब से बिजली का टैरिफ तय करने की छूट मिलेगी।
- यह कानून राज्य सरकार की शक्तियों को हड़पने और देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने वाला है।
जनविरोधी नए बिजली कानून का चौतरफा विरोध
किसान संगठन और बिजली विभाग के कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं। किसान संगठनों का कहना है कि उन्हें खेती के लिये बिजली बिल में सब्सिडी मिलती थी वह इन संशोधनों के बाद बंद हो जायेगी। सब्सिडी नहीं मिलने से फसल का दाम ऊपर चढ़ेगा और खाद्य पदार्थों पर महंगाई भी बढ़ेगी। निजी कम्पनियां अपने मुनाफे के लिए उपभोक्ताओं को बिजली ऊँची दरों पर देंगी।
बिजली कर्मचारी, इंजिनीयर्स भी इन संशोधनों का विरोध कर रहे हैं। निजी कम्पनियों के इस क्षेत्र में आने के बाद तो यहां कर्मचारियों, मजदूरों का और बुरा हाल होगा। निजी कम्पनियां ऊँचे दामों पर बिजली बेचकर और कर्मचारियों, मजदूरों का शोषण कर अति मुनाफा कमायेगी।
मुनाफाखोरों के हित में काम करने वाली मोदी सरकार खुले तौर पर बड़ी बेशर्मी से काम कर रही है। मजदूर, मेहनतकश की गाढी कमाई को लूटकर अड़ानी-अम्बानी जैसे पूंजीपतियों की तिजोरियों में पहुंचाया जा रहा है। मौजूदा विधुत संशोधन 2022 इसी कड़ी में उठाया गया एक बड़ा कदम है।