भोजनमाताओं का देहरादून में जोरदार प्रदर्शन, सीएम आवास जा रही महिलाओं को रोका

अपनी बुनियादी माँगों को लेकर मुख्यमंत्री आवास कूच कर रहीं भोजनमाताओं को पुलिस ने हाथीबड़कला में बैरिकेडिंग लगाकर रोक और गिरफ्तार कर लिया और बसों में भरकर परेड ग्राउंड छोड़ा।
देहरादून। उत्तराखंड सरकार की वादाखिलाफी के विरुद्ध प्रदेशभर की भोजन माताओं ने मुख्यमंत्री आवास कूच कर प्रदर्शन किया। लेकिन पुलिस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं को हाथीबड़कला में बैरिकेडिंग लगाकर रोक दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बसों में भरकर परेड ग्राउंड छोड़ा।
भोजनमताओं ने राज्य कर्मचारी घोषित करने, न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये करने आदि माँगें पूरा करने के लिए अपनी आवाज बुलंद की।
रविवार को प्रगतिशील भोजन माता संगठन के बैनर तले सैकड़ों की संख्या में भोजन माताएं राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में एकत्र हुईं। जहां सभा करने के बाद राज्य कर्मचारी घोषित करने, न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये करने आदि माँगों को लेकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सीएम आवास कूच करने के लिए निकलीं।

लेकिन पुलिस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं को हाथीबड़कला में बैरिकेडिंग लगाकर रोक दिया। जहाँ महिलायें धरने पर बैठ गईं। पुलिस ने उन्हें जबरिया बसों में भर लिया। जिसका प्रदर्शनकारियों ने जोरदार विरोध किया। जिसके बाद उन्हें परेड ग्राउंड ले जाकर छोड़ दिया।
संगठन की महामंत्री रजनी जोशी ने कहा कि काफी लंबे संघर्ष के बाद शिक्षा मंत्री ने बीते जुलाई माह में भोजन माताओं का मानदेय पांच हजार रुपये करने एवं किसी भी भोजन माता को विद्यालय से नहीं निकालने की घोषणा की थी।
लेकिन, लंबे समय के बाद भी इसे लागू नहीं किया गया और इतने लंबे समय से काम कर रही भोजन माताओं को अध्यापक भी लगातार विद्यालय से निकाल रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने मिड डे मील योजना को गैर सरकारी संस्थानों को दिए जाने का भी विरोध किया है।

उल्लेखनीय है कि प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड, नैनीताल पिछले लंबे समय से भोजनमाताओं की विभिन्न समस्याओं को लेकर संघर्ष कर रहा है। भोजनमाताओं की न्यूनतम वेतन 18000 रुपये व स्थाई रोजगार देने की मांग थी।
बहुत लंबे संघर्ष के बाद उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने जुलाई में भोजनमाताओं का मानदेय 5000 रुपये करने व किसी भी भोजनमाता को विद्यालय से नहीं निकालने की घोषणा की। लेकिन नवम्बर तक वह लागू नहीं किया गया और भोजनमाताओं को बड़ी संख्या में अब भी लगातार विद्यालयों से निकाला जा रहा है।
अब बहुत संघर्षों के बाद 23 नवंबर को कैबिनेट की बैठक में भोजनमाताओं के मानदेय में 1000 रुपए की वृद्धि कर दी है।

संगठन का कहना है कि मानदेय में 1000 रुपये की वृद्धि के बाद भोजनमाताओं का मानदेय 2000 रुपये से बढ़कर 3000 रुपये हो गया है। लेकिन भोजनमाताऐं मुख्यमंत्री महोदय से पूछना चाहती हैं कि क्या मात्र 3000 रुपये में किसी का घर चल सकता है? इस महंगाई में जहां गैस सिलेंडर 900 रुपये से अधिक, सरसों का तेल 200 रुपये प्रति लीटर, आटा-चावल, सब्जी सब इतना महंगा हो।
ऐसे में मात्र 3000 रुपये में तो अकेले व्यक्ति का जीवन यापन भी नहीं हो सकता है, जबकि बहुत सारे परिवारों मे भोजनमाताओं पर ही पूरे घर को चलाने की जिम्मेदारी है। ऐसी भोजनमाताओं को इतने कम मानदेयमें घर चलाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन का कहना है कि सरकार ने भोजनमाताओं के साथ धोखा किया है। 5000 रुपये की घोषणा करके मात्र 3000 रुपये मानदेय लागू कर दिया गया। जिससे भोजनमाताएं अपने आप को छला हुआ महसूस कर रही हैं। इसीलिए 12 दिसंबर को मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचकर सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री महोदय आपने भोजनमाताओं के साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों किया?
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की माँगें-
- घोषणा अनुसार भोजनमाताओं का मानदेय 5000 रुपये प्रतिमाह घोषणा के दिन से लागू किया जाए।
- सभी भोजनमाताओं को स्थाई किया जाए।
- भोजनमाताओं के साथ स्कूल में होने वाले उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए।
- भोजनमाताओं को स्कूलों से निकालना बंद किया जाए व निकाली गई भोजनमाताओं को वापस लिया जाए।
- भोजनमाताओं से स्कूलों में कराये जा रहे अतिरिक्त काम पर रोक लगाई जाए।
- उत्तराखंड के सभी स्कूलों में गैस चूल्हो की व्यवस्था जाए।
- सभी भोजनमाताओं को ईएसआई, पीएफ, पेंशन, प्रसूति अवकाश, आकस्मिक अवकाश जैसी सुविधाएं दी जाए।