क़ानूनी जानकारी: ईपीएफओ के तहत कौन है पेंशन हक़दार; कैसे और कितनी मिलेगी पेंशन?

श्रमिकों के मन में पीएफ व पेंशन संबंधित तमाम दुविधाएं बनी रहती हैं। अंशदान कितना होगा, फंड/पेंशन कैसे मिलेगा, कौन सा फॉर्म भरना होगा आदि। आइए क़ानूनी प्रावधानों को जानें-

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) मज़दूरों के लिए सबसे अहम सामाजिक सुरक्षा संगठन है। जो लंबे संघर्षों के बाद अस्तित्व में आया। वर्तमान में इसके सदस्यों से संबंधित 27.74 करोड़ खाते (वार्षिक रिपोर्ट 2021-22) मौजूद हैं।

संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) 1995 में लागू हुई थी। यह योजना उन सभी श्रमिकों पर लागू है जो कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना के अंतर्गत आते हैं। इसके अंतर्गत कर्मचारियों को स्थायी आधार पर पेंशन, कर्मचारी की मृत्यु पर परिवार के सदस्यों/आश्रित को पेंशन राशि मिलती है।

हालांकि वर्तमान समय में ईपीएफ फंड को कमजोर बनाने, मालिकों को ज्यादा लाभ पहुँचने के तमाम खेल जारी हैं। श्रमिकों की गाढ़ी कमाई के सबसे सुरक्षित इस फंड को शेयर में लगाने के उपक्रम के साथ इसे सटोरियों (बड़े मुनाफाखोरों) के हवाले किया जा रहा है, ब्याज दरें लगातार घटाई जा रही हैं। नियोक्ता सीटीसी (कास्ट टू कंपनी) के बहाने अपने अंशदान का बोझ मज़दूरों पर डाल रहे हैं।

कब बना ईपीएफओ?

कर्मचारी भविष्य निधि 15 नवंबर, 1951 को कर्मचारी भविष्य निधि अध्यादेश की घोषणा के साथ अस्तित्व में आई। वर्ष 1952 के विधेयक संख्या 15 कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि की स्थापना का प्रावधान हुआ था। जिसे कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के रूप में जाना जाता है, जिसका क्षेत्र सम्पूर्ण भारत है।

इसके तहत बनाए गए अधिनियम और योजनाओं को एक त्रि-पक्षीय बोर्ड द्वारा प्रशासित किया जाता है जिसे केंद्रीय न्यासी बोर्ड, कर्मचारी भविष्य निधि के रूप में जाना जाता है, जिसमें सरकार (केंद्र और राज्य दोनों), नियोक्ता और कर्मचारियों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

केंद्रीय न्यासी बोर्ड भारत में संगठित क्षेत्र में लगे कार्यबल के लिए एक अंशदायी भविष्य निधि, पेंशन योजना और एक बीमा योजना का प्रबंधन करता है। बोर्ड को कर्मचारी पीएफ संगठन (ईपीएफओ) द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें देश भर में 138 स्थानों पर कार्यालय शामिल हैं। ईपीएफओ भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।

बोर्ड तीन योजनाएं संचालित करता है – ईपीएफ योजना 1952, पेंशन योजना 1995 (ईपीएस) और बीमा योजना 1976 (ईडीएलआई)।

ईपीएस पेंशन पाने की पात्रता

कोई भी मज़दूर/कर्मचारी 10 साल की नौकरी पूरी करने पर पेंशन पाने के हकदार हो जाते हैं। ये 10 साल यदि एक ही कंपनी में पूरे हुए हैं तो भी पेंशन मिलेगी और अगर कई कंपनियों में जोड़कर भी 10 साल की नौकरी पूरी हुई है तो भी सेवा समाप्ति के बाद पेंशन मिलेगी। पेंशन कितनी मिलेगी, यह इसपर निर्भर करता है कि पीएफ कितना कटता रहा है और कुल कितने साल नौकरी रही है। 

श्रमिक के वेतन (बेसिक+डीए) से 12% काटकर उसके ईपीएफ खाते में जमा किया जाता है। इतना ही पैसा (12%) कंपनी भी पीएफ खाते में जमा करती है। कंपनी की तरफ से जो 12% जमा होता है, उसमें से 8.33% अलग करके पेंशन अकाउंट (ईपीएफ) मे जमा हो जाता है। शेष 3.67% पीएफ खाते में ही शामिल कर दिया जाता है।

हालांकि आज तमाम संस्थानों में सीटीसी के तहत कई चीजें गड्डमड्ड हैं। नियोक्ता अपने अंशदान को भी श्रमिक के वेतन का हिस्सा बना देता है, जो कि गैरक़ानूनी है।

इस प्रकार, पीएफ अकाउंट में हर महीने कुल 15.67% पैसा जमा होता है और 8.33% पेंशन अकाउंट का हिस्सा बन जाता है। पेंशन अकाउंट में जमा 8.33% के बदले में रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है। इसीलिए, जितना ज्यादा वेतन (बेसिक+डीए) व सेवा अवधि होती है, उतनी ज्यादा पेंशन बनती है।

अगर नौकरी 10 साल से कम समय की है, तो ईपीएस की रकम को फुल एंड फाइनल सेटलमेंट करते समय एक साथ निकाला जा सकता है। लेकिन 10 साल या इससे ज्‍यादा समय की नौकरी के बाद ये राशि पेंशन के तौर पर ही मिलती है।

यह ध्यानतालब है कि अगर किसी की नौकरी का कार्यकाल पूर्ण वर्षों के बाद 6 महीने से अधिक है तो उसे भी पूरा वर्ष माना जाएगा। जैसे 19 साल 7 महीने की नौकरी को पूरा 20 साल माना जाएगा। इसी तरह 30 साल 5 महीने को सिर्फ 30 साल ही गिना जाएगा। 

58 साल उम्र से कम या ज्यादा पर पेंशन राशि

कोई श्रमिक 50 साल की उम्र के बाद घटी हुई पेंशन का भी विकल्प चुन सकता है। 58 साल की उम्र पूरी होने में जितने साल उम्र कम होगी, उतने वर्षों के लिए 4% सालाना की दर से कम करके पेंशन रकम मिलेगी। उदाहरण के लिए 58 साल की उम्र में रिटायरमेंट पर अगर 5 हजार रुपए पेंशन मिलनी थी तो 50 साल की उम्र में पेंशन शुरू कराने पर इसका 0.7837 गुना ही यानि 5000x 0.7837= 3919.50 रुपए प्रतिमाह मिलेगी।

यदि श्रमिक 58 साल की उम्र पूरी होने पर तुरंत पेंशन न लेना चाहे, तो वह बाद के 2 वर्षों में जाकर शुरू करा सकता है। कम उम्र के फॉर्मूला में जैसे, हर साल के लिए 4 प्रतिशत घटती है, उसके उलट बढ़ी हुई पेंशन का विकल्प चुनने पर, हर साल के लिए 4 प्रतिशत बढ़कर मिलती है, जो कि अगले दो वर्षों तक के लिए ही होता है, क्योंकि 60 साल की उम्र के बाद यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।

पहले सिर्फ पीएफ खाते का पैसा रिटायरमेंट के 6 महीने बचे होने पर निकालने की छूट थी। लेकिन, 1 नवंबर 2022 को जारी अधिसूचना के तहत अब पेंशन निकालने के मामले में भी इस छूट को बढ़ा दिया गया है। इससे रिटायरमेंट बेनेफिट्स बढ़ाकर लेने की सहूलियत है।

पेंशन की गणना कैसे होती है? 

सेवा समाप्ति के बाद मिलने वाली मासिक पेंशन एक फॉर्मूले पर निर्भर करता है। पेंशन गणना के लिए सेवा को 2 भागों में लिया जाएगा। 16.11.95 से पहले सेवा और 16.11.95 से सेवा। पहली को पिछली सेवा और बाद वाली को पेंशन योग्य सेवा कहा जाता है। 

फार्मूला-1 :

16 नवंबर 1995 से बाद नौकरी पर-

16 नवंबर 1995 के बाद नौकरी शुरू करने वालों के लिए पेंशन की मात्रा= (औसत वेतन x पेंशन योग्य सेवा)/70

वेतन का मतलब मूल वेतन (बेसिक+डीए) व औसत वेतन का मतलब नौकरी समाप्ति के पिछले 5 वर्ष के दौरान का औसत वेतन है। पेंशनयोग्य सेवा का मतलब 16 नवंबर 1995 के बाद नौकरी में गुजारी गई अवधि है।

फार्मूला-2 :

16 नवंबर 1995 के पहले नौकरी शुरू करने वालों के लिए

16 नवंबर 1995 को कर्मचारी पेंशन योजना लागू होने के बाद, ईपीएस का हिस्सा बने श्रमिक के पेंशन की मात्रा तय करने के लिए नौकरी की पूरी अवधि को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटकर दोनों हिस्सों की पेंशन के लिए अलग-अलग फॉर्मूला इस्तेमाल होता है।

पहले 16 नवंबर 1995 के पहले के नौकरी कार्यकाल के लिए पेंशन गणना होगी, फिर 16 नवंबर 1995 के बाद के नौकरी कार्यकाल के लिए पेंशन गणना होगी। उसके बाद दोनों को जोड़कर अंतिम रूप से मिलने वाली पेंशन राशि बनती है।

i. 16 नवंबर 1995 से पूर्व की नौकरी के लिए पेंशन

16 नवंबर 1995 से पहले कार्यरत श्रमिकों के लिए मासिक पेंशन सेवा के वर्षों की संख्या के आधार पर तय की जाती है। पिछली सेवा को 4 स्लैब में बांटा गया है- 11 वर्ष तक, 12 से 15 वर्ष तक, 16 से 19 वर्ष तक और 20 वर्ष से अधिक की सेवा।

इसी अनुरूप पेंशन की गणना वेतन की स्थिति और सेवा अवधि के अनुसार होती है। यानी 10 साल नौकरी पर 2500 रुपए से कम वेतन वाले की पेंशन 80 रुपए और उससे अधिक वेतन वाले की पेंशन 85 रुपए होगी।

मान लिया एक श्रमिक का मूल वेतन 3000 रुपए था, और वे 30 साल नौकरी करने के बाद रिटायर हुए हैं। ऐसे में, 16 नवंबर 1995 के पहले के कार्यकाल के लिए उन्हें 170 रुपए प्रति माह पेंशन मिलेगी।

जो कर्मचारी, 16 नवंबर 1995  के बाद रिटायर हुए हैं उन्हें पिछली अवधि के लिए बढ़ी हुई पेंशन मिलेगी। पेंशन में यह बढोतरी हर बढ़े हुए वर्ष के लिए 8 प्रतिशत के हिसाब से होगी।

ii. 16 नवंबर 1995 के बाद की नौकरी के लिए पेंशन

16 नवंबर 1995 के बाद जो बचा हुआ कार्यकाल होगा, उस कार्यकाल के लिए पेंशन नये नियमों के मुताबिक तय होगी। इसकी गणना का तरीका फॉमूला 1 के तरीके से होगा।

पुराने कार्यकाल के लिए पुराने नियम से और नए कार्यकाल के लिए नए नियम से पेंशन की गणना करने के बाद दोनों को जोड़ दीजिए। यही योग अंतिम रूप से हर महीने की पेंशन होगी।

पीएफ व पेंशन के लिए आवेदन फॉर्म:

पीएफ की रकम और पेंशन का पैसा लेने के लिए कर्मचारी को जरूरत के हिसाब से अलग-अलग फॉर्म भरना पड़ता है। ईपीएफ पेंशन निकासी के लिए फॉर्म और ईपीएफ फंड निकासी के लिए भरे जाने वाले फॉर्म-

फॉर्म 10D 

ईपीएफओ के नियम के हिसाब से अगर किसी कर्मचारी ने 10 वर्षों तक लगातार नौकरी करके ईपीएफ पेंशन अकाउंट यानी (ईपीएस) में अपना योगदान किया है, तो रिटायरमेंट के बाद पेंशन लाभ लेने के लिए उसे फॉर्म 10D भरना पड़ता है। इसके अलावा किसी अन्‍य स्थिति में भी अगर व्‍यक्ति ईपीएफओ से पेंशन पाने का हकदार है तो उसे फॉर्म 10D भरना पड़ेगा।

फॉर्म 10C 

अगर कर्मचारी की नौकरी की अवधि 10 साल की नहीं है और वो अपने ईपीएफ का फुल एंड फाइनल सेटलमेंट करते समय ईपीएस में जमा पैसे को भी एक साथ निकाल सकता है। ऐसे में उसे फॉर्म 10C को भरना होता है। इसके अलावा इस फॉर्म का इस्‍तेमाल पेंशन स्‍कीम सर्टिफिकेट लेने के लिए भी किया जा सकता है। इस सर्टिफिकेट के जरिए श्रमिक अपने पीएफ बैलेंस को एक कंपनी से दूसरी कंपनी स्थानांतरित करवा सकते हैं।

फॉर्म 19 

फॉर्म 19 को पीएफ क्‍लेम फॉर्म कहा जाता है। जब श्रमिक को ईपीएफ के पूरे फंड की निकासी करनी होती है तो उसे पीएफ निकासी फॉर्म 19 का इस्‍तेमाल करना होता है। ईपीएफओ के नियम के अनुसार कोई भी श्रमिक लगातार दो महीने तक बेरोजगार रहने या सेवा समाप्ति के बाद अपने ईपीएफ फंड का पूरा पैसा निकाल सकता है।

फॉर्म 31

पीएफ फंड में जमा पैसों को नौकरी के दौरान भी आंशिक रूप से निकाला जा सकता है। पीएफ बैलेंस का कुछ हिस्सा या अग्रिम पीएफ निकासी के लिए फॉर्म 31 की जरूरत पड़ती है। इसे ईपीएफ क्‍लेम फॉर्म 31 कहा जाता है। जरूरत के हिसाब से आंशिक निकासी के नियम अलग-अलग होते हैं।

ईपीएस की कुछ मुख्य बातें-

  • ईपीएस की सुविधा लंबे संघर्षों से हासिल हुई है और संघर्षों से ही समय-समय पर संशोधित होती रही है। हालांकि इस दौर में उसे भी कमजोर बनाया जा रहा है।
  • भारत सरकार की योजना का हिस्सा है। इसमें रिटर्न की गारंटी होती है।
  • कर्मचारी जिनका मूल वेतन (बेसिक+डीए) 15000 रुपये या उससे कम है, उन्हें इसमें पंजीकरण कराना होता है।
  • 50 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद आप ईपीएस से पैसा निकाल सकते हैं।
  • लाभार्थी की मृत्यु होने के बाद ईपीएफ में पेंशन पत्नी और फिर बच्चों को मिलती है।
  • इसमें किसी भी व्यक्ति को न्यूनतम 1000 रुपये की मासिक पेंशन मिलती है।
  • पीएफ व पेंशन की सुविधा स्थाई-अस्थाई समस्त श्रमिकों के लिए है।

कैसे निकालें पेंशन-

ऑनलाइन पीएफ पेंशन निकालने का तरीका-

  • सबसे पहले ईपीएफओ की आधिकारिक वेबसाइट http://www.epfindia.gov.in पर जाएं,
  • होम पेज में दायीं ओर दिए गए “online claims member account transfer” विकल्प चुने,
  • फिर स्क्रीन पर UAN Portal खुलेगा। दायीं ओर UAN मेंबर ई-सेवा के नीचे लॉगिन बॉक्स में अपने यूजरनेम (UAN नंबर) और पासवर्ड डाले।
  • नए पेज में ऊपर की ओर हरी पट्टी में “Online Services” विकल्प को चुने।
  • सामने मौजूद सेवाओं की लिस्ट में CLAIM (FORM 31, 19, 10C & 10D) का लिंक चुने।
  • नए पेज में अपने व्यक्तिगत पहचान के डिटेल्स जैसे कि नाम, जन्मतिथि, आधार नंबर आदि दर्ज करें।
  • बैंक अकाउंट नंबर के सामने खाली बॉक्स में अपने बैंक अकाउंट का नंबर दर्ज करें।
  • फिर दी गयी जानकारी की पुष्टि करनी होती है। दर्ज किये बैंक अकाउंट में ही पीएफ का पैसा जाएगा, इसलिए इसको सावधानी से भरकर इसकी पुष्टि करें।
  • इसके बाद नीचे “Proceed for Online Claim” विकल्प पर क्लिक करें।
  • यदि प्रोविडेंट फंड में जमा हुयी सम्पूर्ण धनराशि की निकासी करना है तो “ONLY PENSION WITHDRAWAL” विकल्प चुने।
  • अगर अपने पेंशन अकाउंट में जमा पैसों को अगली नौकरी के साथ जुड़वाना है तो “SCHEME CERTIFICATE (FORM-10 C)” विकल्प पर क्लिक करें।
  • इसके बाद अपना पूरा पता बॉक्स में दर्ज करें।
  • फिर बैंक से सम्बन्धित दस्तावेज अपलोड करें, जैसे पीएफ से लिंक बैंक अकाउंट की पास बुक का पहला पेज या फिर चेक बुक।
  • पेज में सबसे नीचे मौजूद “Get Aadhaar OTP” विकल्प पर क्लिक करें।
  • फिर आधार कार्ड से लिंक मोबाइल नंबर पर मिले ओटीपी का वेरिफिकेशन करें।
  • इस तरह पेंशन निकालने के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी होगी।

ऑफलाइन पीएफ पेंशन निकालने का तरीका

पीएफ पेंशन निकालने के लिये आप ऑफलाइन तथा ऑनलाइन दोनों तरीकों से आवेदन कर सकते हैं। यदि आप ऑफलाइन तरीके से पेंशन निकालने के लिये नजदीकी पीएफ कार्यालय से सम्पर्क कर संबंधित फॉर्म भरना होगा और उचित प्रक्रिया पूरी कर उसे ईपीएफ कार्यालय में जमा करना होता है।

ईपीएफ में अंशदान के लिए वेतन की अधिकतम सीमा

ईपीएफ में अंशदान के लिए वेतन की अधिकतम सीमा 15,000 रुपये तक ही निर्धारित थी। यानी कि नियोक्ता की ओर से ईपीएफ पेंशन में, ज्यादा से ज्यादा 1250 रुपये प्रतिमाह ही जमा होता रहा है। बाकी हिस्सा पीएफ वाले हिस्से में जमा होता है।

लेकिन, अप्रैल 2019 में, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद, पेंशन के लिए 15,000 रुपए तक वेतन की सीमा को खत्म कर दिया गया। अब कर्मचारी का चाहे जितना वेतन हो, उसके 8.33 प्रतिशत के बराबर पैसा ईपीएफ पेंशन में जमा किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए विकल्प चुनना पड़ता है।

उदाहरण के लिए, किसी कर्मचारी का मूल वेतन 30 हजार रुपए प्रतिमाह है तो उसके पेंशन खाते में नए विकल्प से 30,000 का 8.33 प्रतिशत (2499 रुपए) तक हर महीने जमा किया जा सकता है। जबकि पुराने विकल्प में अधिकतम 1250 रुपए तक ही जमा हो सकता है।

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