प्रदेशव्यापी विरोध: भीड़ हिंसा, नफरत फैलाने पर रोक लगे; निर्दोष अल्पसंख्यकों की रक्षा हो!

माँग: निर्दोष अल्पसंखयकों की रक्षा के लिए तत्काल ठोस उपाय हो, भीड़ हिंसा, नफरत की राजनीति बंद हो, उच्चतम न्यायालय द्वारा भीड़ हिंसा रोकने संबंधी निर्देश का पालन हो आदि!

उत्तराखंड में दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाने वालों के खिलाफ और नफरत की राजनीति पर रोक लगाने की मांग को लेकर आज शुक्रवार को विभिन्न जन संगठनों ने राज्य के विभिन्न शहरों में प्रदर्शन किया

इस दौरान उत्तरकाशी के पुरोला में निर्दोष अल्पसंखयकों की रक्षा के लिए तत्काल ठोस उपाय किए जाने, किसी को भी भीड़ हिंसा और नफरत फैलाने की अनुमति न दिये जाने व उच्चतम न्यायालय द्वारा भीड़ हिंसा रोकने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर नोडल अफसर नियुक्त करने आदि मांगों को लेकर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को प्रशासन के माध्यम से ज्ञापन भेजे गए।

यह प्रदर्शन राजधानी देहरादून सहित बागेश्वर, नैनीताल, ऋषिकेश, रामनगर, कोटद्वार, अल्मोड़ा, चंपावत, साल्ट, गोपेश्वर, गैरसैंण, जोशीमठ, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, लाल कुआं, हल्द्वानी, रुद्रपुर आदि शहरों में हुए।

प्रदर्शन की कुछ झलक

रामनगर में विभिन्न संगठनों द्वारा एसडीएम के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन प्रेषित किया गया।

ज्ञापन देने वालों में समाजवादी लोकमंच के मुनीष कुमार, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी, मनमोहन अग्रवाल, किसान संघर्ष समिति के ललित उपरेती, सोवन सिंह तड़ियाल, महिला एकता मंच की कौशल्या चुनियाल व खुर्शीद आलम आदि मुख्य रुप से शामिल रहे।

देहरादून में सिटी मजिस्ट्रेट एवं एडीशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस लाइन ऑर्डर को प्रतिनिधि मंडल की ओर से ज्ञापन सौंपा गया। जिसमें उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पन्त, जनवादी महिला समिति के इंदु नौटियाल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर भंडारी आदि लोग मौजूद थे।

नैनीताल में विभिन्न संगठनों ने कुमाऊं आयुक्त के माध्यम से ज्ञापन भेजा। इस मौके पर उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष राजीव लोचन साह, उत्तराखंड महिला मंच की प्रोफ़ेसर उमा भट्ट, माया चीलवाल, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महामंत्री दिनेश उपाध्याय, विद्यापीठ प्रयागराज के स्वप्निल, आजादी बचाओ आंदोलन की बसंत भट्ट, महिला संगठन की प्रोफेसर शीला रजवार आदि शामिल थे।

सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ ज्ञापन

उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों से राज्यपाल, मुख्यमंत्री व पुलिस महानिदेशक को प्रेषित ज्ञापन में लिखा है कि उत्तराखंड में जिस तरह से भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं सिलसिलेवार तरीके से हो रही हैं, वह बेहद अफसोसजनक है। इससे अधिक निंदनीय, उनमें शासन और प्रशासनिक मशीनरी की भूमिका है, जो किसी भी तरह इस तरह के उत्पात और उन्माद को रोकने की कोशिश नहीं करती, जिनके निशाने पर राज्य में रहने वाले अल्पसंख्यक हैं।

इस संदर्भ में पुरोला का घटनाक्रम चिंताजनक और हैरत में डालने वाला है। पुरोला में दो व्यक्ति, एक नाबालिग बच्ची के साथ थे। आरोप है कि ये दोनों लोग नाबालिग को भगा कर ले जा रहे थे। आरोपियों में एक मुस्लिम और एक हिंदू हैं। दोनों की गिरफ्तारी हो गयी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों को मौका मिल गया कि वे खुल कर उन्माद फैलाने की राजनीति कर सकें। घटना और उसमें कार्यवाही हुए आधा महीना हो चुका है। लेकिन उसके बावजूद पुरोला और पूरी यमुना घाटी में तनाव का माहौल बनाए रखने के प्रयास निरंतर जारी हैं। आरोपियों का किसी तरह का बचाव न किए जाने के बावजूद, निरंतर उग्र माहौल बनाए रखना और इसके लिए विभिन्न बाज़ारों को बंद रखना, एक सुनियोजित कार्यवाही प्रतीत होती है, जिसके निशाने पर अलसंख्यक समाज के वे लोग भी हैं, जिनका कोई अपराध नहीं है। सभी अल्पसंख्यकों की दुकानों पर दुकान खाली करने का पोस्टर चस्पा करना, असंवैधानिक, गैरकानूनी और आपराधिक कृत्य है। इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए।

इससे पहले भी भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से निपटने में उत्तराखंड सरकार, प्रशासन और पुलिस का रवैया बेहद लचर रहा है। माननीय उच्चतम न्यायालय का आदेश है कि नफरत भरे भाषण के मामले में पुलिस स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही करे। उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक को उच्चतम न्यायालय का आदेश याद दिलाये जाने के बावजूद 20 अप्रैल को हनोल में हुई धर्म सभा में दिये गए नफरत भरे भाषणों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।

पुरोला की घटना की बाद भी अल्पसंख्यकों की संपत्ति को क्षति पहुंचाने की कार्यवाही एवं आह्वान हुए, अखबारों में इस आशय के बयान भी नाम सहित प्रकाशित हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों को मकान न देने और उन्हें भगाने के आह्वान भी सार्वजनिक तौर पर हो रहे हैं। लेकिन पुलिस का कार्यवाही न करने वाला रुख कायम है। यह खुले तौर पर उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवमानना है।

भीड़ हिंसा, नफरत भरे भाषण और सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं प्रदेश में निरंतर फैलती जा रही हैं। उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना करके भी शासन, प्रशासन और पुलिस इन्हें रोकने के प्रभावी उपाय नहीं करना चाहती। यह कानून और संविधान के शासन के लिए बड़ा खतरा है।

ज्ञापन द्वारा माँग-

  • महामहिम, कोई भी अपराध करे, उसके विरुद्ध कानून सम्मत कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन अपराध का फैसला, किसी भी सूरत में धार्मिक आधार पर नहीं किया जाना चाहिए और ना ही धर्म के आधार पर बने, धार्मिक घृणा के प्रसारक संगठनों को यह फैसला करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
  • सत्यापन या कोई भी अन्य प्रशासनिक कार्य भी धार्मिक आधार पर न किया जाए।
  • पुरोला में सामान्य स्थिति बहाल करने और निर्दोष अल्पसंखयकों की रक्षा के लिए तत्काल ठोस उपाय किए जाएँ।
  • किसी को भी भीड़ हिंसा और नफरत फैलाने की अनुमति न दी जाये।
  • साथ ही राज्य सरकार द्वारा अतिक्रमण हटाने के अभियान को भी, जिस तरह से सांप्रदायिक विभाजन के औज़ार की तरह प्रयोग किया, उस पर भी तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा भीड़ हिंसा रोकने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर नोडल अफसर नियुक्त करने के निर्देशों का तत्काल प्रभावी तौर पर अनुपालन सुनिश्चित करवाया जाये।
%d bloggers like this: