पीएम मोदी थे ऑस्ट्रेलिया, तब वहाँ के विश्वविद्यालयों ने भारतीय छात्रों के दाख़िले पर लगाई रोक

पांच विश्वविद्यालय पहले रोक लगा चुके हैं। अब फेडरेशन यूनिवर्सिटी और सिडनी यूनिवर्सिटी पंजाब, हरियाणा, गुजरात, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और यूपी के छात्रों को प्रवेश नहीं देंगे।

नई दिल्ली: वीजा धोखाधड़ी के बारे में सरकार की चिंताओं के बाद दो और ऑस्ट्रेलियाई संस्थानों ने भारत के कुछ राज्यों के छात्रों के दाखिले के लिए होने वाले नामांकन पर प्रतिबंध लगा दिया है.

यह कदम बीते अप्रैल महीने में पांच विश्वविद्यालयों द्वारा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात सहित भारत के कुछ राज्यों के छात्रों के आवेदन स्वीकार करना बंद करने के बाद आया है. दो अन्य विश्वविद्यालयों ने भारत से आवेदकों के लिए प्रवेश प्रक्रिया को सख्त बना दिया था, लेकिन किसी विशेष राज्य से पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया था.

ऑस्ट्रलिया के जिन विश्वविद्यालयों ने भारतीय छात्रों पर प्रतिबंध लगाया था, उनमें विक्टोरिया यूनिवर्सिटी, एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी, वोलोंगोंग यूनिवर्सिटी, टोरेंस यूनिवर्सिटी और साउदर्न क्रॉस यूनिवर्सिटी शामिल हैं.

भारत के कुछ राज्यों के छात्रों पर नवीनतम प्रतिबंध बीते सोमवार (22 मई) को द सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड समाचार-पत्र द्वारा रिपोर्ट किया गया था, उसी दिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय बैठक के लिए ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे.

मोदी और उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष एंथोनी अल्बानीस ने बुधवार (24 मई) को ‘छात्रों, स्नातकों, शोधकर्ताओं और व्यवसायिक लोगों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने’ के लिए एक नए प्रवास समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के छात्रों को अब विक्टोरिया में फेडरेशन यूनिवर्सिटी और न्यू साउथ वेल्स में वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी द्वारा प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

यह निर्णय इसलिए लिया गया, क्योंकि सभी ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में भारतीय उम्मीदवारों के लिए अस्वीकृति दर 10 वर्षों में अपने उच्चतम स्तर तक बढ़ गई. इसके अलावा चार आवेदनों में से एक को वर्तमान में गृह मामलों के विभाग के अनुसार ‘धोखाधड़ी’ या ‘गैर-वास्तविक’ की श्रेणी में रखा गया था.

ऑस्ट्रेलियाई शिक्षा विभाग ने कहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय शिक्षा उद्योग में ‘बेईमान व्यवहार’ से अवगत है, जैसे शिक्षा एजेंट कथित तौर पर महंगे उच्च शिक्षा संस्थानों से कम खर्चीले व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में स्थानांतरित करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहन राशि की पेशकश करते हैं.

सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड के अनुसार, शिक्षा एजेंट मुख्य स्रोत हैं, जिनके माध्यम से विदेशी छात्र देश के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं. दाखिला लेने वाले प्रत्येक छात्र के लिए विश्वविद्यालय और स्कूल इन एजेंटों को हजारों डॉलर का कमीशन देते हैं.

पिछले सप्ताह एक संघीय संसदीय सुनवाई में गृह मामलों के विभाग ने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय अब 20.1 प्रतिशत आवेदनों को अस्वीकार कर रहे हैं, जो 2019 में 12.5 प्रतिशत था. भारत से 24.3 फीसदी आवेदनों को खारिज कर दिया गया, जो कि साल 2012 के बाद से उच्चतम अस्वीकृति प्रतिशत है.

इंटरनेशनल स्कूल एसोसिएशन ऑफ ऑस्ट्रेलिया के मुख्य कार्यकारी फिल हनीवुड ने सुनवाई के दौरान कहा कि दूसरे देशों के कई माता-पिता अपने बच्चों को गंभीर रूप से विदेश भेजना चाहते हैं, लेकिन अक्सर उनकी यह इच्छा शिक्षा एजेंटों की सहायता से ही पूरी हो पाती है.

सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड के अनुसार, पिछली स्कॉट मॉरिसन सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों द्वारा किए जा सकने वाले काम की समयसीमा पर 20 घंटे की साप्ताहिक सीमा को हटाने के बाद दक्षिण एशिया से आवेदनों में वृद्धि देखी गई है.

परिणामस्वरूप, कम कौशल वाले ऑस्ट्रेलियाई वर्क वीजा वाले छात्रों को कथित तौर पर कम खर्चीले शैक्षिक स्कूलों में आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, लेकिन उनका असली इरादा काम का तलाश का है. वर्तमान अल्बानीज सरकार ने 1 जुलाई को एक नई कार्य सीमा स्थापित करने का इरादा किया है, जो काम की समयसीमा को प्रति सप्ताह 24 घंटे तक सीमित कर देगी.

वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी ने एजेंटों को बताया कि बड़ी संख्या में भारतीय छात्र ‘जिन्होंने 2022 में अध्ययन शुरू किया था, वे अब यहां नामांकित नहीं हैं और ये दर काफी उच्च है’. यूनिवर्सिटी की ओर से यह भी कहा गया कि सबसे अधिक जोखिम पंजाब, हरियाणा और गुजरात से मिले आवेदनों से संबंधित है.

यूनिवर्सिटी ने कहा कि प्रतिबंध कम से कम दो महीने के लिए लागू रहेगा. यह भी कहा गया कि वह ‘यूनिवर्सिटी के साथ गैर-वास्तविक छात्रों के नामांकन के मुद्दे को हल करने के लिए’ अतिरिक्त उपाय करेगा.

द वायर से साभार

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