महँगाई की विकट मार: का खाऊँ, का पियूँ, का ले परदेश जाऊँ?

दूध, गेहूं, सब्जी, चिकन, रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल, खाद्य तेल, दवा की ऊंची कीमतों से लेकर बस-ट्रेन भाड़े में जारी बढ़ोत्तरी से खाना, इलाज, परिवहन सभी जनता की पहुँच से दूर होता जा रहा है।

“बहुत हुई महँगाई की मार, आबकी बार भाजपा सरकार” का नारा देकर सत्ता पर काबिज मोदी सरकार का बड़ा हमला आम आदमी की थाली पर पड़ा है। हिन्दू-मुस्लिम के नफ़रती माहौल और राष्ट्र, पाकिस्तान के खतरनाक खेल के बीच बीते आठ साल में महँगाई बेलगाम है।

पेट्रोल, बिजली, घूमना फिरना, बस-ट्रेन, दवा-इलाज आदि बढ़ते टैक्स और कॉरपोरेट के हित में मोदी सरकार की नीतियों से बेलगाम हुई महंगाई ने जीना हराम कर दिया है। महंगाई की सबसे ज्यादा मार रसोई घर को झुलसा रही है। शाक सब्जी, अनाज, दूध, मांस-मछली से लेकर गैस सिलेंडर तक सब कुछ महंगा हो चुका है। खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं।

क्या आपको यह भाजपा प्रचार का होर्डिंग याद है?

महँगाई की मार चौतरफा

रिपोर्ट के अनुसार भारत में अप्रैल से दिसंबर 2022 के दौरान गेहूं, चिकन, रसोई गैस और खाद्य तेल की ऊंची कीमतों के चलते थाली की औसत कीमत हर महीने बढ़ी थी।

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि आटे का भाव सालाना आधार पर लगभग 15 फीसदी बढ़ गया है। खाद्य तेलों की कीमतों में 6 फीसदी का इजाफा हुआ है। सब्जियों की कीमतें 6 फीसदी बढ़ीं हैं। मुर्गियों के चारे की कीमत काफी बढ़ी है। इससे चिकन की कीमत में 55 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हुई है।

यही नहीं, एक रिपोर्ट के अनुसार महंगाई के कारण हवन-पूजन सामग्री के दामों में भी 20 फीसदी तक का इजाफा हो चुका है। वहीं पंडितों द्वारा ली जाने वाली दक्षिणा की राशि में भी इजाफा हो गया है।

दूध लगातार महँगा

देश के अलग अलग राज्यों में दूध की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी जारी है। दिल्ली, एनसीआर में मदर डेयरी और अमूल, बिहार में कॉम्फेड सुधा दूध से लेकर गुजरात में आमूल तक दूध की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी लगातार जारी है। दूध की थोक महंगाई पिछले साल के 4.12% से बढ़कर इस साल मार्च 2023 में 8.48% रही है।

एलपीजी के दाम बेतहाशा

एलपीजी रसोई गैस की कीमत बीते साल के मुकाबले 20 फीसदी बढ़ गई है। इससे रसोई का बजट लगातार गड़बड़ा रहा है। बीते साल एलपीजी की कीमतों में इजाफे से भोजन और महँगा हुआ है। 

होटल में खान बेहद महँगा

रेस्टोरेंट-होटल में बीते एक साल में खाने का बिल काफी बढ़ा है। खाने की थानी की कीमतों में 30 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि शाकाहारी थाली की कीमत में साल-दर-साल 9 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि नॉनवेज थाली के दाम 32 फीसदी तक बढ़ गए हैं।

क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार वेज थाली सालाना आधार पर 9 फीसदी महंगी हो गई है। दूसरी ओर मांसाहारी यानि नॉनवेज थाली की कीमत में भारी भरकम 32 फीसदी से अधिक का उछाल आया है।

गौरतलब है कि थाली की औसत कीमत में बदलाव का सीधा असर आम आदमी पर होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गेहूं, चिकन, रसोई गैस और खाद्य तेल की ऊंची कीमतों के चलते बीते साल अप्रैल से दिसंबर 2022 के दौरान थाली की औसत कीमत हर महीने बढ़ी।

सोचने के लिए-

इस विकट दौर में सबसे बड़ा मसला हिन्दू-मुस्लिम, जाति-मजहब का खड़ा कर दिया गया है। सवाल यह है कि इस बेतहाशा बढ़ती और बेलगाम हो चुकी महँगाई की मार क्या केवल मुस्लिमों पर पड़ रही है? क्या आटा, दाल, चावल, दूध, सब्जी या खाने की थाली हिंदुओं के लिए सस्ती है? क्या बस-ट्रेन भाड़ा अलग-अलग धर्म के हिसाब से तय हो रहा है?

यदि नहीं तो नफरत का व्यापार किसे फायदा पहुँचा रहा है?

About Post Author

भूली-बिसरी ख़बरे