बीते 30 सालों में सीवर सफाई के दौरान देश में 1,035 सफाई कर्मियों की मौत हुई: सरकार

Ghaziabad: Phoolu (45), a full-time worker shows his hands after cleaning a manhole, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Ghaziabad, Friday, May 01, 2020. Phoolu has a daughter and has been working since he was 10 years of age. He continues choicelessly to work inside sewer lines to earn a living amid this pandemic, exposing his body to added risk. (PTI Photo/Ravi Choudhary)(PTI01-05-2020_000090B)

बीते फरवरी माह में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया था कि 2018 से 2022 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक में 308 लोगों की मौत हुई थी।

नई दिल्ली: साल 1993 के बाद से पूरे भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कुल 1,035 लोगों की मौत हुई है, इनमें से 948 परिवारों को मुआवजा दिया गया है. बीते 14 मार्च को लोकसभा में सामाजिक न्याय मंत्रालय ने यह जानकारी साझा की है.

सरकार हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना (एसआरएमएस) पर पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस सांसद मिमी चक्रवर्ती के एक सवाल का जवाब दे रही थी.

बीते फरवरी माह में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया था कि 2018 से 2022 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक में 308 लोगों की मौत हुई थी. तमिलनाडु में सबसे अधिक 52, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत के मामले सामने आए थे.

सरकार के अनुसार, महाराष्ट्र में 38, दिल्ली में 33, गुजरात में 23 और कर्नाटक में 23 लोगों की मौत सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, स्वरोजगार की कल्पना सभी मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान करने के तरीके के रूप में की गई है. इसके तहत नकद भुगतान, पूंजीगत सब्सिडी आदि के साथ उन्हें सुरक्षित कामों या वैकल्पिक आजीविका की ओर ले जाने में मदद करना है.

रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना के लिए बजटीय आवंटन पिछले तीन वित्त वर्षों से घट रहा है. 2023-24 के केंद्रीय बजट में सरकार ने इस योजना के तहत कोई धनराशि आवंटित नहीं की है.

गौरतलब है कि मंत्रालय ने 2022 में स्वरोजगार योजना को नेशनल एक्शन प्लान फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम (NAMASTE/नमस्ते) के साथ विलय करने का फैसला किया था. उसने यह कहकर इस कदम को सही ठहराया था कि देश में अब मैला ढोने की प्रथा नहीं है और लक्ष्य अब सीवरों की खतरनाक सफाई को कम करना है. सरकार ने 2023-24 के बजट में ‘नमस्ते’ के लिए लगभग 97 करोड़ रुपये आवंटित किए है.

स्वरोजगार योजना के तहत सरकार ने 58,098 मैला ढोने वालों की पहचान की थी, जिनमें से सभी को 2020 तक एकमुश्त नकद भुगतान किया गया था. हालांकि, योजना के अन्य घटकों जैसे कौशल प्रशिक्षण और वैकल्पिक आजीविका के लिए ऋण लेने वालों की संख्या कम थी.

सरकार ने मिमी चक्रवर्ती के जवाब में कहा कि 2022-23 तक कुल 605 लाभार्थियों को सीवर सिस्टम की यांत्रिक सफाई के लिए पूंजीगत सब्सिडी प्रदान की गई थी. सरकार ने कहा कि उसने 2020-21 से 2022-23 तक इसके लिए पूंजीगत सब्सिडी पर कुल 2,165.72 लाख रुपये खर्च किए हैं.

मालूम हो कि बीते एक फरवरी को इस वर्ष के केंद्रीय बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की खतरनाक प्रथाओं से बचने के लिए सरकार के 100 प्रतिशत मशीनीकृत सीवर सफाई पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया था.

उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा. साथ ही कहा था कि सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा.

देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है और आए दिन सीवर सफाई के दौरान लोगों की मौत की खबरें आती रहती हैं.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.

27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए.

द वायर से साभार

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