अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: भारत में दलित महिलाओं पर क्रूर टैक्स और इसके खिलाफ विद्रोह

19वीं सदी में केरल में दलित महिलाओं को अपना स्तन खुला ही रखना होता था। यदि अपना स्तन ढकती थीं तो उन्हें ब्रेस्ट टैक्स देना होता था। इसके खिलाफ विद्रोह की नायिका थी नंगेली…
कोई बहुत ज्यादा समय नहीं गुजरा, 200 वर्ष पहले की, 19वीं सदी की बात है जब मौजूदा जाति व्यवस्था महिलाओं के प्रति बेहद दमनकारी थी। एक ऐसी अमानवीय व्यवस्था थी जहाँ दलित महिलाओं की छाती पर कपड़ा या ब्लाउज दिखते ही चाकू से खींचकर फाड़ दिया जाता था।
यूँ तो भारतीय समाज में जातिवाद और अमीरी-गरीबी का विभाजन बड़ा क्रूर और वीभत्स रहा है, जो आज भी विविध रूपों में मौजूद है। इसी क्रम में 19वीं सादी में केरल में त्रावणकोर का राजा निचली जातियों के लोगों पर बड़ी सख्ती और क्रूरता से टैक्स पर टैक्स लादे जा रहा था।
मूंछ रखने पर टैक्स, मछली का जाल रखने पर टैक्स, आभूषण पहनने पर टैक्स, नौकर या दास रखने पर टैक्स और तो और स्तन ढंकने पर भी टैक्स। निचली जाति की महिलाओं द्वारा चुकाये जाने वाले इस कर का नाम था ब्रेस्ट टैक्स यानी की स्तन कर।
अंतर्राष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस (8 मार्च) पर मेहनतकश साथियों के लिए ब्रेस्ट टैक्स (स्तन कर) की भयावह परंपरा तथा इसके खिलाफ विद्रोह और फैली क्रांति के बारे में…
शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़े पहनने का अधिकार
18वीं 19वीं सदी में केरल में नम्बूदरी, नायर और वेल्लार जातियां श्रेष्ठ और उच्च जातियों में गिनी जाती थीं। जबकि शानार जिसे बाद में नाडार कहा जाने लगा, एडवा, पुलस्य जैसी जातियों की गिनती निचले क्रम में होती थी। उस समय केरल में महिला हो या पुरुष, उच्च वर्ण हो या निम्न, सभी मुंडू (धोती) पहनते थे। इस वस्त्र से कमर से नीचे का हिस्सा ढंका जाता था।

स्तन ढकने पर दलित महिलाओं पर टैक्स
1729, मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना हुई। राजा था मार्थंड वर्मा। उसने आम जनता, विशेष रूप से दलित जनता पर कई तरह के अमानवीय टैक्स थोपे, जिनमें मूंछ रखने पर टैक्स, मछली का जाल रखने पर टैक्स, आभूषण पहनने पर टैक्स, नौकर या दास रखने पर टैक्स। लेकिन एक टैक्स और बनाया गया…ब्रेस्ट टैक्स मतलब स्तन कर। ये कर दलित और ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया।
केरल के त्रावणकोर शासनकाल में निम्न जाति नायर की महिलाओं को कमर से ऊपर बदन को कपड़े से ढकने का अधिकार नहीं था। यानी उन्हें अपना स्तन खुला ही रखना होता था। ये महिलाएं यदि कपड़े से अपना स्तन ढकती थीं तो उन्हें ब्रेस्ट टैक्स देना होता था जिसे मलयालम में था मुलक्करम कहा जाता था।
यह बात और ज्यादा शर्मिंदा करने वाली है कि यह ब्रेस्ट टैक्स महिलाओं के स्तन के आकार के आधार पर लिया जाता था। स्तन का आकार जितना बड़ा, टैक्स उतना ही अधिक होता था। राजा की ओर से नियुक्त टैक्स कलेक्टर बाकायदा दलितों के घर आकर इस कर की वसूली करता था।
वास्तव में, ब्रेस्ट टैक्स निचली जाति की महिलाओं के लिए अपमानजनक था क्योंकि इस कारण दूसरों के बीच सम्मानपूर्वक जीने के अधिकार से वंचित थीं। ब्रेस्ट टैक्सउनकी गरिमा और गोपनीयता पर हमला था।

ब्रेस्ट साइज के हिसाब से टैक्स
त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाएं जब अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने से गुजरती उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती थी। अगर महिलाएं छाती ढकना चाहें तो उन्हें इसके बदले ब्रेस्ट टैक्स देना होगा। इसमें भी दो नियम थे। जिसका ब्रेस्ट छोटा उसे कम टैक्स और जिसका बड़ा उसे ज्यादा टैक्स। टैक्स का नाम रखा था मूलाक्रम।
लोककथाओं के अनुसार स्तन के आकार, उसमें आकर्षकता का पुट के आधार पर टैक्स की रकम तय की जाती थी। हालांकि औपचारिक इतिहास में इसे लेकर परस्पर विरोधी विचार मिलते हैं।

चाकू से फाड़ देते थे महिलाओं के कपड़े
नादर वर्ग की महिलाओं ने कपड़े से सीना ढका तो सूचना राजपुरोहित तक पहुंच जाती थी। पुरोहित एक लंबी लाठी लेकर चलता था जिसके सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी। वह उसी से ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था। उस कपड़े को वह पेड़ों पर टांग देता था। यह संदेश देने का एक तरीका था कि आगे कोई ऐसी हिम्मत न कर सके।

पुरुषों को भी नहीं थी सिर ढकने की अनुमति
यह अमानवीय रिवाज सिर्फ महिलाओं पर नहीं, बल्कि पुरुषों पर भी लागू था। उन्हें सिर ढकने की अनुमति नहीं थी। अगर वे कमर के ऊपर कपड़ा पहनना चाहें और सिर उठाकर चलना चाहें तो इसके लिए उसे अलग से टैक्स देना पड़ता था। यह व्यवस्था ऊंची जाति को छोड़कर सभी पर लागू थी, लेकिन वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे होने के कारण निचली जाति की दलित महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ी।

दलित महिला नंगेली ने किया विद्रोह
स्तन ढंकने के लिए लगाए इसी टैक्स के खिलाफ भारत में 1822 में एक क्रांति हुई जब गरीब दलित महिलाओं ने इस शासनादेश के खिलाफ बगावत कर दिया। इसके बाद एक के बाद एक कुल तीन विद्रोह हुए। पहला 1822 से 1823 दूसरा 1827 से 1829 और तीसरा 1858 से 1859।
इस क्रांति की नायिका थी नांगेली नाम की एक मज़दूर महिला। जिसने उस क्षेत्र में विद्रोह की चिंगारी जलाने में मदद की। स्वाभिमानी और क्रांतिकारी नांगेली ने तय किया कि ब्रेस्ट भी ढकूंगी और टैक्स भी नहीं दूंगी।
नंगेली और उसका पति चिरकंडुन एक छोटे से तटीय गांव चेरथला में रहते थे। वे खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे और नारियल के पेड़ों से रस एकत्र करते थे। नंगेली दलित थी, एझावा समुदाय से थी। उसने न केवल अपने लिए बल्कि सभी श्रमिक दलित महिलाओं के लिए आवाज उठाई।
नांगेली ने महसूस किया कि उनके समुदाय के साथ अन्याय हो रहा है। टैक्स के बोझ के कारण उनके पास दिन के अंत में खाने के लिए मुश्किल से मुट्ठी भर चावल का इंतज़ाम हो पाता था। महिलाओं की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही थी।
नंगेली का अन्यायपूर्ण और अपमानजनक टैक्स के ख़िलाफ़ गुस्सा फूट पड़ा। पति से बात की और निर्णय लिया कि किसी न किसी को तो आवाज उठानी ही होगी। पति ने नांगेली के विरोध में साथ देने का फैसला लिया और अगले ही दिन से नांगेली अपना स्तन ढकने लगी।
माँगा टैक्स तो अपने दोनों स्तन काट केले के पत्ते पर रख दिया
नंगेली का यह कदम सामंतवादी समाज के पुरुषों को उनके मुंह पर करारे तमाचे जैसा था। बात आगे पहुंची और फिर नांगेली और उसके पति से ब्रेस्ट टैक्स की मांग की जाने लगी। एक महीने बाद राजा के आदेश पर टैक्स लेने अफसर नांगेली के घर पहुंच गए। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। अफसर बोले, “ब्रेस्ट टैक्स दो, किसी तरह की माफी नहीं मिलेगी।” लेकिन नांगेली के पति ने टैक्स देने से मना कर दिया।

नांगेली का स्तन मापा गया। नांगेली बोली, ‘रुकिए मैं लाती हूं टैक्स।’
नांगेली घर के भीतर गई और चाकू से अपने दोनों स्तन काट केले के पत्ते पर लेकर बाहर आईं। टैक्स अधिकारी के होश उड़ गए और वे डरकर भाग गए। लगातार ब्लीडिंग से नांगेली जमीन पर गिर पड़ी और फिर कभी न उठ सकी। लेकिन उनके इस साहसिक कदम ने समाज की अन्य महिलाओं को हिम्मत दी।
नांगेली की चिता में कूदकर पति ने दी जान, विद्रोह फैल गया
नांगेली की मौत के बाद उसके पति चिरकंडुन ने भी चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के ‘सती’ होने की यह एकमात्र घटना है। इस घटना के बाद विद्रोह हो गया। हिंसा शुरू हो गई। महिलाओं ने पूरे कपड़े पहनना शुरू कर दिए।
मद्रास के कमिश्नर त्रावणकोर राजा के महल में पहुंच गए। कहा, “हम हिंसा रोकने में असफल साबित हो रहे हैं कुछ करिए।” राजा बैकफुट पर चले गए। उन्हें घोषणा करनी पड़ी कि अब नादर जाति की महिलाएं बिना टैक्स के ऊपर कपड़े पहन सकती हैं।
सवर्ण स्त्रियाँ उतरी विरोध में
नादर जाति कि महिलाओं को स्तन ढकने की इजाजत मिली तो एजवा, शेनार या शनारस और नादर वर्ग की महिलाओं ने भी विद्रोह किया। इसको दबाने के लिए उच्च परिवार की स्त्रियां भी आगे आ गई। ऐसे ही एक कहानी सामने आती है जिसमें रानी ‘अन्तिंगल’ ने एक दलित महिला का स्तन कटवा दिया था।

महिलाओं को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया गया
इस कुप्रथा के खिलाफ विद्रोह करने वाले लोग पकड़े जाने के डर से श्रीलंका चले गए। वहां की चाय बगानों में काम करने लगे। इसी दौरान त्रावणकोर में अंग्रेजों का दखल बढ़ा। 1829 में त्रावणकोर के दीवान मुनरो ने महिलाओं के ईसाई बनने पर स्तन ढकने से मुक्ति दिलाने की बात की।
मुनरो के इस आदेश से सवर्णों में गुस्सा भर गया, लेकिन अंग्रेज फैसले पर टिके रहे। 1859 में अंग्रेजी गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने त्रावणकोर में इस नियम को रद्द कर दिया। इसके खिलाफ ऊंची जाति के लोगों ने हिंसा और लूटपाट शुरू कर दी। नादर महिलाओं को निशाना बनाया और उनके अनाज जला दिए। इस दौरान नादर जाति कि दो महिलाओं को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया गया।

महिलाओं को मिली जीत
26 जुलाई 1859 को राजा के एक आदेश के जरिए महिलाओं के ऊपरी वस्त्र न पहनने के कानून को बदल दिया गया। और इस तरह नांगेली के बलिदान से महिलाओं ने अपना हक छीन कर हासिल किया।
अंग्रेजी दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब ‘महारानी’ में इस कुप्रथा का जिक्र करते हुए लिखा, “संघर्ष लंबा चला। प्रजा जीत गई और सभी को पूरे कपड़े पहनने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार के बावजूद कई हिस्सों में दलितों को कपड़े न पहनने देने की कुप्रथा चलती रही। यह कलंक पूरी तरफ से खत्म हो गया, क्योंकि उस वक्त पूरा देश आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा था।”

अपमानजनक इतिहास को मिटाने की कोशिश
NCRT ने 2019 में क्लास 9 के इतिहास की बुक से तीन अध्याय हटा दिए। इसमें एक अध्याय त्रावणकोर में निचली जातियों के संघर्ष से जुड़ा था। हंगामा हुआ। केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने कहा, “यह विषय हटाना संघ परिवार के एजेंडे को दिखाता है।” इसके पहले CBSE ने भी 2017 में 9वीं के सोशल साइंस से ये वाला अध्याय हटा दिया था। मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने कहा, “2017 की परीक्षाओं में चैप्टर, कास्ट, कन्फ्लिक्ट एंड ड्रेस चेंज से कुछ भी नहीं पूछा जाएगा।”

नांगेली को बहादुरी की मूर्ति मानता है इतिहास
नांगेली ने अपने त्याग से क्रांति रची। उन्होंने एक शर्मनाक टैक्स को खत्म करने के लिए अपनी जान दे दी। केरल के मुलच्छीपुरम में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है। जहां लोग जाते हैं सिर झुकाते हैं। लोग लाख भूलने या भुलवाने की कोशिश करेंगे, लेकिन नांगेली को भुलाया नहीं जा सकेगा।
नांगेली ने शोषित थी, जिसने पारंपरिक यौन और सामाजिक मानकों को तोड़ दिया। उसने अपने शरीर के प्रति समाज की शक्तिहीन सोच को शक्तिशाली प्रतिरोध में बदल दिया। भले ही नांगेली के शरीर को शोषित किया गया हो, लेकिन उसने भावनात्मक रूप से घायल होने को मंज़ूर नहीं किया।

आंदोलन की 200वीं वर्षगांठ
इतिहासकारों ने इस आंदोलन को नाम दिया Thol Seelai Porattam यानि की अपर क्लोथ रिवोल्ट। इसे चन्नार लहाला अथवा चन्नार क्रांति भी कहा जाता है। जिसका अर्थ था शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़े पहनने का अधिकार। साल 2022 में इसी क्रांति की 200वीं वर्षगांठ मनाया गया।
सभी चित्र विभिन्न क्षरोटों से साभार