दिल्ली: गैरक़ानूनी तालाबंदी के खिलाफ भारत एक्सपोर्ट के मज़दूर आंदोलन की राह पर

दूसरे राज्य ट्रांसफर के बहाने छँटनी की तैयारी। फैक्ट्री में बड़ी संख्या में महिला मज़दूर भी काम करती हैं। यूनियन बनने से मालिक की मनमानी पर रोक लगनी शुरू हुई जिससे मालिक खफा है।

उत्तरी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र में बर्तन बनाने वाली कंपनी भारत एक्सपोर्ट के सैकड़ों मज़दूर कथित गैर कानूनी तालाबंदी के खिलाफ आठ दिनों से धरने पर बैठे हैं। ये सभी मज़दूर इस कंपनी में कई दशकों से काम कर रहे थे लेकिन अचानक 15 फरवरी से तालाबंदी कर दी गई है।

धरने पर बैठे कर्मचारी और उनकी यूनियन का कहना है कि उन्हें बिना किन्हीं लिखित शर्तों के दूसरे राज्य में काम पर जाने के लिए कहा गया है। मज़दूरों ने बताया कि यहां पहले भी मालिक गैरकानूनी काम करते थे और उन्हें न्यूनतम वेतन तक नहीं देते थे।

कई मज़दूरों ने बताया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इस फैक्ट्री को आगे बढ़ाने में लगा दिया लेकिन अब तक उन्हें अपने मज़दूर होने का हक नहीं मिला है। इस फैक्ट्री में बड़ी संख्या में महिला मज़दूर भी काम करती हैं। उनके लिए ये समस्या और भी बड़ी है। कई महिलाओं ने आरोप लगाया कि फैक्ट्री  मालिक ने किराए के गुंडे बुलाकर उनके साथ मारपीट और धक्का मुक्की की।

क्या है पूरा मामला ?

उत्तर दिल्ली के जहांगीरपुरी औद्योगिक क्षेत्र में स्थित मैंसर्स भारत एक्सपोर्ट 14 फरवरी को कथित तौर पर बिना किसी सूचना के बंद कर दी गई।

वहां काम करने वाले मज़दूरों ने बताया, “14 फरवरी को हम काम करके घर लौटे। इसके बाद 15 फरवरी बुधवार को हमारा साप्ताहिक अवकाश था जिस वजह से हम लोग अपने घरों में थे। मालिक ने इसका ही फायदा उठाकर फैक्ट्री में तालाबंदी कर दी और जब हम अगले दिन फैक्ट्री पहुंचे तो वहां ताला बंद था जिसके बाद हमने मालिक से बात की लेकिन उनकी ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद से ही हम यहीं कंपनी गेट के बाहर धरने पर बैठे हैं क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।”

मज़दूरों की बातों की पुष्टि करते हुए कंपनी के 66 वर्षीय गार्ड गजराज ने कहा, “15 फरवरी दोपहर दो बजे मालिक के भेजे गुंडे आए और मेंरे से कहा कि सरकारी जांच की टीम आने वाली है, फैक्ट्री में ताला लगा दो। मैंने उनकी बात मानकर ताला लगा दिया। ऐसा पहले भी कई बार हुआ जब छापे या जांच टीम के डर से ताला बंद किया गया इसलिए मैंने अपना सामान, यहां तक की दवाई और लंच भी अंदर ही बंद कर दिया।

गजराज जो 14 वर्षों से इस फैक्ट्री के सुरक्षाकर्मी हैं, हैं, “मुझे शंका तब हुई जब उन गुंडों ने ताला लगाने के बाद मेंरे से जबरन चाबी छीनने का प्रयास किया। इसके बाद मुझे कुछ गड़बड़ लगी और मैंने अपनी पूरी ताकत से इसका विरोध किया जिसपर उन्होंने मेंरे साथ मारपीट की और चाबी लेकर चले गए। इसके बाद मेंरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और मैं वहीं बैठकर रोने लगा। कुछ देर बाद मैंने कंपनी के मज़दूरों को फोन किया जिसके बाद कुछ लोग आए। उसके अगले दिन से ही लोग धरने पर हैं और मैं भी यहीं बैठा हूं क्योंकि इस उम्र में अब मैं कहां जाऊंगा?”

हालांकि कंपनी की तरफ से कई मज़दूरों को सामूहिक ट्रांसफर ऑर्डर स्पीड पोस्ट से भेजा गया है जिसमें कंपनी ने कहा है कि उन्होंने बिल्डिंग की गुणवत्ता जांचने के लिए सिविल इंजीनियर एवं आर्किटेक्ट को बुलाया और उन्होंने बिल्डिंग को सुरक्षा की दृष्टि से अंसतोषजनक पाया। कंपनी की तरफ से यह भी कहा गया कि वे काम की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पुरानी मशीन हटाकर नई मशीन लगाना चाहते हैं।

उन्होंने कुंडली, हरियाणा के एक प्लांट के बारे में जानकारी दी जिसे 10 साल पहले खोला गया था। कहा गया कि वहां आधुनिक तकनीक पर आधारित मशीने लगाई गईं हैं और इस कदम को व्यापारिक प्रतिस्पर्धा और वर्तमान में रोज़गार की संख्या बनाए रखने के लिए ज़रूरी भी बताया। इसलिए कंपनी ने सभी कर्मचारियों को 6 मार्च से वहां (हरियाणा) नौकरी ज्वाइन करने को कहा है।

इसपर मज़दूरों ने कहा कि उन्हें वहां भी जाने में कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मालिक को लिखित में सभी को व्यक्तिगत तौर पर ट्रांसफर ऑर्डर देना चाहिए जिसे मालिक देने को तैयार नहीं है इसी वजह से मज़दूरों के मन में शंका पैदा हो रही है।

“फैक्ट्री के लिए खून-पसीना दिया”

इस कंपनी की शुरुआत से ही यहां काम करने वाले हरिहर ने कहा, “मैं उस समय से काम कर रहा हूं जब यहां एक ही मशीन थी, उसी पर हम और मालिक काम करते थे। लेकिन अगर आप रिकार्ड में देखेंगे तो मुझे अभी दस साल भी नहीं हुए क्योंकि मालिक हर पांच साल पर हमें निकालकर फिर नए सिरे से भर्ती करता था।”

वो कहते हैं, “हमने इस फैक्ट्री को बनते हुए देखा है और इसे अपने खून-पसीने से बनाया है। दिन-रात काम करके हमने इस कंपनी को इतना बड़ा किया। जो कभी छोटी जगह के लिए भी मोहताज थे आज इनकी कई फैक्ट्रियां हैं।”

बता दें हरिहर को काम करते आज चार दशक से ज़्यादा का समय हो गया है तब जाकर उन्हें आज 24,700 रूपये सैलरी मिलती है।

65 वर्षीय विधवा श्योनो जो इस फैक्ट्री में डेढ़ दशक से काम करती हैं, वो कहती हैं, “हमने इस फैक्ट्री के लिए खून-पसीना सब दिया है। मालिक ने कहा तो सफाई वाले के न आने पर झाड़ू भी लगाया है। इसके अलावा खराब फटे बोरों की सिलाई करके उनमें माल रखे जिससे मालिक के पैसे बचें लेकिन आज इन सबका बदला उसने इस तरह दिया-हमें सड़क पर बैठा दिया है।”

वो बताती हैं कि उन्हें 11 हज़ार रूपये सैलरी मिलती है। इन सभी बातों का ज़िक्र करते हुए वो भावुक हो गईं और कहा-मालिक ये सबकुछ हम सबको भगाने के लिए कर रहा है।

उनके (श्योनो) दो लड़के हैं लेकिन वो एक के साथ रहती हैं जिसके पास अभी नौकरी नहीं है इसलिए उनकी कमाई से ही घर चलता है लेकिन उन्हें अब डर है कि आगे काम मिलेगा या नहीं!

70 वर्षीय भूपेंद्र भी धरना स्थल पर बैठे थे। वो बताते हैं, “काम के दौरान उनके साथ दो बार हादसा हुआ जिसमें उनकी हाथ की उंगलियां कट गईं हैं- सबसे पहले 1990 में और फिर 2010 में उनका हाथ पावर प्रेस में आ गया था लेकिन उन्हें कोई आर्थिक मुआवज़ा नहीं मिला। उन्हें केवल पेंशन मिलती है।

भूपेंद्र आज भी काम कर रहे हैं। उन्हें आज कंपनी द्वारा 1500 रूपये सैलरी मिलती है। वो बताते हैं कि उन्होंने 300 रूपये के साथ नौकरी शुरू की थी।

इसी तरह कई मज़दूर थे जिनके साथ फैक्ट्री में काम करने के दौरान हादसा हुआ है जिसमें उनकी उंगलियां कट गईं।

55 वर्षीय राकेश जो लगभग 25 सालों से इस कंपनी में काम कर रहे हैं, एक हादसे में उनकी भी उंगलियां कट गईं हैं। कंपनी उन्हें केवल 18,000 रूपये वेतन के रूप में देती है। राकेश एक कुशल कारीगर हैं इसलिए उनका न्यूनतम वेतन इससे काफी अधिक है।

वो कहते हैं कि इस घटना के बाद से उनका जीवन बदल गया है और आज समाज में वो एक ‘दिव्यांग’ के रूप में जी रहें हैं। उन्हें भारी सामान उठाने में भी दिक्कत होती है।

ऐसे ही एक अन्य मज़दूर-43 वर्षीय सूरज धरने में शामिल थे। वो भी एक हादसे का शिकार हैं। वो कहते है कि हादसे से पहले उनका ईएसआई कार्ड भी नहीं था।

इस फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूरों ने बताया कि यहां कोई कानून लागू नहीं था। यहां तक की यहां काम करने वाले अधिकांश मज़दूरों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता जबकि दिल्ली में हैल्पर के लिए भी 16 हज़ार न्यूनतम वेतन है।

रेखा शर्मा जो लगभग 45 वर्ष की हैं वो कहती हैं कि वो यहां दस साल से ज़्यादा से काम कर रही हैं। वो यहां पैकिंग का काम करती हैं। उनके पास परिवार चलाने का यही एक साधन है क्योंकि 2014 में उनके पति की मौत हो गई थी, वो भी यहीं मज़दूर थे। उनके दो बच्चे हैं और दोनों अभी स्कूल में पढ़ रहे हैं। उन्हें भी केवल 10 हज़ार रूपये महीने वेतन मिलता है।

यहां काम करने वाले अधिकांश मज़दूरों ने बताया कि फैक्ट्री मालिक किसी नियम-कानून को नहीं मानता था। मज़दूरों ने आरोप लगाया कि यहां काम करने वाले ज़्यादातर मज़दूर दस सालों से अधिक समय से काम कर रहे हैं लेकिन पिछले महीने ही कुछ लोगों को ईएसआई कार्ड और पीएफ दिया गया है।

यही नहीं आरोप है कि फैक्ट्री मालिक कथित तौर पर मज़दूरों से ‘न्यूनतम वेतन’ के स्लिप पर साइन लेता था लेकिन देता कम ही था इसके अलावा अभी कुछ समय से पैसे बैंक खाते में आने लगे थे लेकिन मालिक की बेईमानी जारी रही। मज़दूरों ने आरोप लगाया कि उसे पूरा पैसा न देना पड़े इसलिए वो काम पर आने के बाद भी मज़दूरों की छुट्टी दिखा देता था जिससे उसे बैंक खाते में कम पैसे देने पड़े।

दिवाली में मज़दूरों को मिलने वाले बोनस की बात करें तो आरोप है कि मालिक ने पहले तो खाते में पूरा बोनस दिया और फिर आधा पैसा बाहर निकाल कर ले लिया। ये बात लगभग हर महिला व पुरुष ने कही।

मज़दूरों ने ये भी आरोप लगाया कि उन्हें वर्दी, जूता या सुरक्षा उपकरण कुछ नहीं मिलता था लेकिन जब जांच टीम आने वाली होती थी तो सब दे दिया जाता था और जांच के बाद सब वापस ले लिया जाता था।

“यूनियन तोड़ने की साज़िश”

धरने पर बैठे मज़दूरों और यूनियन नेताओं ने बताया कि ये सब फैक्ट्री-यूनियन को खत्म करने की साज़िश है क्योंकि जब पांच साल पहले फैक्ट्री में यूनियन बनी तब से ही मालिक की मनमानी पर रोक लगनी शुरू हुई और मज़दूरों ने शोषण के खिलाफ बोलना शुरू किया।

फैक्ट्री में कार्यरत, ‘इंजीनियरिंग वर्कर्स लाल झंडा यूनियन’ और ‘सीटू’ जिला के प्रधान संतोष ने बताया कि यूनियन बनने से पहले मालिक हर कुछ सालों पर मज़दूरों से इस्तीफा लेकर उन्हें निकाल देता था और उनसे कहता था कि अपना पीएफ का पैसा निकाल लो नहीं तो पैसा डूब जाएगा। मज़दूर इतना समझ नहीं पाते थे और वो इसे मान लेते थे। इसी वजह से कोई भी मज़दूर पांच साल से अधिक समय की नौकरी नहीं कर सका है। हालांकि निकालने जाने के तुरंत बाद मालिक उन्ही मज़दूरों को नए सिरे से भर्ती कर लेता था।”

संतोष ने आगे जो कहा वो और भी चौंकाने वाला था। वो कहते हैं कि मालिक निकाले गए पीएफ में से भी आधा वापस ले लेता था- ये कहकर की तुमने आधा ही जमा किया है बाकी मैंने डाले थे इसलिए वो मेरे हैं।

यूनियन नेता ने कहा, “लेकिन जब से यूनियन बनी तब से हमने मज़दूरों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जिसके बाद से मज़दूरों ने अपना पीएफ निकालना बंद कर दिया और मालिक की मनमर्ज़ी पर रोक लगी। इसी बात से मालिक के पेट में दर्द शुरू हो गया और उसने कई बार बोला कि वो इस सब कचरे को साफ कर देगा जिससे उसका मतलब था कि वो यूनियन और उसका साथ देने वालों को निकालकर नए लोग लाएगा। इसलिए अब मालिक बहाने बनाकर इसे बंद कर पुराने लोगों को निकाल रहा है।”

सीटू जिला महासचिव अनिल ने कहा, “ये बिल्डिंग असुरक्षित है, इसकी जानकारी हमें पहली बार मिली है। ये बिल्डिंग अभी नई बनी है। इसका निर्माण ही 2005 में हुआ है तो ये असुरक्षित कैसे हो गई?”

मज़दूरों की माँगें-

यूनियन से जुड़े मज़दूरों ने अपने हस्ताक्षर के साथ फैक्ट्री-मालिक और श्रम विभाग को एक मांग पत्र सौंपा है जिसमें उन्होंने मांग की है :

प्रत्येक कर्मचारी को ट्रांसफर लेटर उसकी भर्ती की तारीख, वेतन मान व पद दिखाते हुए दिया जाए और साथ ही हमेशा की तरह 10 प्रतिशत सालाना वेतन बढ़ोतरी की जाए।
     
हमारी भर्ती दिल्ली में की गई थी इसलिए दिल्ली के वेतन मान, समय-समय पर घोषित होने वाला मंहगाई भत्ता व अन्य हितकारी लाभ यहां भी लागू रहे, यह पत्र में लिखकर दिया जाए इसके अलावा किसी भी औद्योगिक विवाद का अधिकार दिल्ली में ही रहे।
     
* दिल्ली प्लांट से बस सेवा दी जाए।
     
कर्मचारियों को दिनांक 14.02.2023 से दिनांक 05.03.2023 यानी 20 दिनों के वेतन का भुगतान किया जाए।
     
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 अगर भविष्य में डी-14, एसएमए को-ओपरेटिव इंडस्ट्रियल इस्टेट, दिल्ली-33 का प्लांट चालू होता है तो हम कर्मचारियों को वहां काम पर रखने में प्राथमिकता दी जाए।

जनवरी 2023 से वेतन बढ़ोत्तरी ऐरियर सहित 10 प्रतिशत दी जाए।

“हौसले बुलंद हैं, आखिरी दम तक लड़ेंगे”

मज़दूर (महिला व पुरुष दोनों) अपनी ड्यूटी के समय साढ़े आठ बजे सुबह फैक्ट्री गेट पर पहुंच जाते हैं। वे अपने साथ लंच लेकर आते हैं और दिनभर फैक्ट्री गेट पर डटे रहते हैं। इस बीच कई यूनियन नेता उन्हें संबोधित करते हैं और मामले में जो भी विकास हो रहा है उसकी जानकारी देते हैं। इसके अलावा उनमे संघर्ष को लेकर जोश भरते हैं।

धरने में शामिल यासमीन जो 16 सालों से यहां काम करती हैं और अभी पावर प्रेस चलाती हैं वो कहती हैं, “हमारे हौसले बुलंद हैं। जबतक हमारी मांग नहीं मानी जाएगी तब तक हम संघर्ष जारी रखेंगे। ये हमारे आखिरी दम तक जारी रहेगा क्योंकि दूसरा कोई और रास्ता नहीं है।”

इस पूरे मसले को समझने के लिए हमने फैक्ट्री मालिक से बात करने की कोशिश की। उन्होंने फोन उठाया लेकिन इस मसले पर कोई बात नहीं की और बाद में बात करने का आश्वासन दिया।

मुकुंद झा कि रिपोर्ट; साभार: न्यूजक्लिक

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