एक और रोहित बेमुला: आईआईटी बॉम्बे के छात्र ने की खुदकुशी; जाति-धर्म के तानों को नहीं झेल पाया

कलेक्टिव दिल्ली ने ट्वीटर में तस्वीरें शेयर की हैं, और पोस्ट में लिखा गया है कि मृतक दर्शन सोलंकी के परिवार वाले सीधे तौर पर उसके क्लासमेट और शिक्षकों पर ज़िम्मेदार बता रहे हैं।

राजनीतिक मंचों के भाषणों में पर अक्सर पिछड़ा वर्ग को देश की रीढ़ साबित कर दिया जाता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उसी रीढ़ को तोड़ने में कसर नहीं छोड़ी जाती, इसे तोड़ने वाले वही तथाकथित ‘ऊंची जाति’ के लोग होते हैं, जो ख़ुद को देश का और धर्म का सबसे बड़ा रक्षक बताते हैं। ऐसे मामले तब और डरावने हो जाते हैं, जब किसी स्कूल, कॉलेज या कैंपस में घटित होते हैं, क्योंकि यहां तो सब एक होते हैं, विद्यार्थी होते हैं, और सिर्फ शिक्षा लेने आते हैं।

क्योंकि देश के टॉप आईआईटी कॉलेजों में एक आईआईटी बॉम्बे भी जाति-धर्म और खान-पान को लेकर विवादों में अव्वल ही बना रहता है। इन्हीं सब का दंश एक छात्र नहीं झेल पाया और उसने ख़ुद को मार देना ही बेहतर समझा।

हम बात कर रहे हैं, बीटेक फर्स्ट ईयर के एक दलित छात्र दर्शन सोलंकी की… जिसने कैंपस में बने हॉस्टल की सातवीं मंज़िल से छलांग लगाकर खुदकुशी कर ली। जानकर हैरानी होगी कि अहमदाबाद से आने वाले दर्शन का एडमिशन तीन महीने पहले ही यहां हुआ था। यानी सवाल उठता है कि दर्शन सोलंकी के साथ ऐसा क्या हुआ होगा कि उसे ऐसा कदम उठाने की ज़रूरत पड़ गई? क्या उसे भी रोहिल वेमुला की तरह ज़ातिवाद का शिकार होना पड़ा?

इस बारे में पूरी जानकारी के लिए हमने आईआईटी बॉम्बे में पढ़ने वाले पीएचडी के छात्र प्रणब से बात की… उन्होंने बताया- ऐसा पता चला है कि उसके साथ रहने वाले साथी अपर कास्ट के थे, जो उसपर पिछड़ी जाति का होने का तंज कसते थे। उसकी रैंक को लेकर सवाल करते थे। कहते थे कि तुम स्कॉलरशिप और कोटे के ज़रिए यहां पढ़ने आए हो, तुम्हारी रैंक भी हमसे कम है, तुमने हमसे कम फीस दी है। इस तरह की तमाम बातें उसके साथ होती थीं।

प्रणब ने बताया कि दर्शन सोलंकी की बहन ने एक मीडिया चैनल से बात करते हुए कुछ बातें स्पष्ट की थीं.. दर्शन की बहन ने बताया “जब दर्शन पिछले महीने घर आया, तो उसने मुझे और मम्मी-पापा को बताया कि वहां जातिगत भेदभाव हो रहा है, उसके दोस्तों को पता चला कि वह अनुसूचित जाति से है, तो उसके प्रति उनका व्यवहार बदल गया। उन्होंने उससे बात करना बंद कर दिया और उसके साथ घूमना बंद कर दिया, जिसके कारण वह तनाव में था।”

कलेक्टिव दिल्ली नाम के ट्वीटर से कुछ तस्वीरें शेयर की गईं हैं, जिसमें कैंपस के छात्र दर्शन को श्रद्धांजलि देते नज़र आ रहे हैं, साथ ही पोस्ट में ये भी लिखा गया है कि दर्शन के परिवार वाले सीधे तौर पर उसके क्लासमेट और शिक्षकों पर ज़िम्मेदार बता रहे हैं।

आईआईटी बॉम्बे में ही पढ़ने वाले पीएचडी के एक और छात्र कांथी स्वरूप ने बताया कि दर्शन का एडमिशन नवंबर 2022 में ही हुआ था, सब कुछ ठीक था, लेकिन जब उसकी ज़ाति के बारे में उसके साथ वालों (सामान्य जाति) को पता चला तो उससे बोलचाल बंद कर दी। जिसके बाद वो अकेला पड़ा गया। शायद ऐसी ही तमाम और जातिसूचक बातों को वो सहन नहीं कर पाया होगा और उसने ऐसा कदम उठा लिया।

कांथी ने उदय कुमार मीणा का भी ज़िक्र किया, जिन्हें बहुजन समाज से आने वाले नए छात्रों की मेंटरशिप प्रोग्राम के लिए सुपरविज़न में रखा गया था। कांथी ने बताया कि दर्शन नवंबर महीने में ही उदय मीणा से मिला था, और उसकी ज़ाति को लेकर पढ़ाई-लिखाई में आ रही दिक्कतों के बारे में भी बताया था।

आपको बता दें कि आईआईटी बॉम्बे जात-पात को लेकर भेदभाव के चलते पहले से बदनाम रहा है, इसे लेकर आंबेडकर-पेरियार, फुले स्टडी सर्कल ने एक ट्वीट करते हुए स्टेटमेंट जारी किया है। कहा है कि ‘ये कोई छुपी हुई बात नहीं है कि एससी-एसटी छात्रों को अन्य छात्रों, स्टाफ़ और फ़ैकल्टी बहुत परेशान करती है। ये संस्थान और जातिवाद के ये तरीक़े पीड़ित छात्रों पर मेंटल और साइकॉलोजिस्ट दबाव बढ़ाते हैं लेकिन इससे निपटने के लिए आईआईटीज़  में कोई मेकेनिज़्म नहीं है। हम लंबे समय से एससी-एसटी छात्रों के लिए मेंटल हेल्थ मेकेनिज़्म बनाने की मांग कर रहे हैं लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यहाँ तक कि स्टूडेंट वेलनेस सेंटर में भी कोई एससी-एसटी काउंसलर नहीं है।

आईआईटी बॉम्बे में ही साल 2014 का एक मामला है, जब बीटेक फोर्थ ईयर के अनिकेत अंभोरे नाम के दलित छात्र ने छठी मंज़िल से कूदकर जान दे दी थी, जिनकी उम्र महज़ 22 साल थी। अनिकेत के परिवार का कहना था कि कैंपस में उनके बेटे के साथ जातिवाद हुआ था और इसी वजह से उसने अपनी जान दे दी थी।

दर्शन की आत्महत्या से जोड़कर जब हमने पीएचडी स्टूडेंट प्रणब से ये पूछा कि आईआईटी बॉम्बे में पिछड़े-दलित समुदाय से आने वाले शिक्षकों, कर्मचारियों या विद्यार्थियों की संख्या लगभग कितनी होगी। तो उनका उत्तर बेहद हैरान निराशाजनक था, उन्होंने बताया कि ये विडंबना ही है कि इतने बड़े कैंपस में 90 से 95 प्रतिशत फैकल्टी अपर कास्ट की है। एससी 2 प्रतिशत से कम है, एसटी 10 प्रतिशत से कम है। ओबीसी 15 प्रतिशत से कम होगें। प्रणब ने बताया ये संख्या भी 2021 के बाद की है, क्योंकि तब तक कोई एससी फैकल्टी नहीं थी।

साल 2019 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें बताया गया था कि देश भर की आईआईटी में महज़ 2.81 प्रतिशत ही एससी–एसटी टीचर हैं। आईआईटी  में दलित-बहुजन छात्रों का ना होना, वहां जातिवादियों के हौसले बुलंद करता है। सवर्ण जिन शिक्षण संस्थानों को मां सरस्वती का दिव्य प्रांगण कहते हैं, वहां एससी-एसटी छात्रों की मदद करने वाला कोई नहीं होता। यहां तक कि ‘द्रोणाचार्य’ शिक्षक भी कई बार छात्रों को जाति के आधार पर परेशान करते हैं।

‘द शूद्र’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दिनों आईआईटी खड़गपुर की एक प्रोफेसर ऑनलाइन क्लास में एससी-एसटी छात्रों को खुलेआम गालियां दे रही थी।

वहीं इस मामले में कार्रवाई की बात करें तो ‘पवई पुलिस मामले की जाँच कर रही है।’ पुलिस का कहना है कि वो सभी एंगल्स से जांच कर रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वाकई जांच होगी या फिर अनिकेत अंभोरे की जांच कमेटी की तरह दर्शन सोलंकी का केस भी बस एक पुलिस की एफआईआर कॉपी तक सीमित रह जाएगा।

फिलहाल ये कहना ग़लत नहीं होगा कि शिक्षा के नाम पर स्कूलों, कॉलेजों में भी जमकर जातिवाद का ज़हर घोला जा रहा है, जो सीधे तौर समाज के लिए और आने वाली नस्लों के लिए बहुत ज़्यादा घातक होने वाला है।

न्यूज क्लिक से साभार

About Post Author

भूली-बिसरी ख़बरे