कोलकाता में संपन्न हुआ श्रमजीवी नारीमंच का पहला सम्मलेन

कोलकाता: विगत 7 व 8 जनवरी 2023 को कोलकाता, बंगाल में श्रमजीवी नारी मंच का दो दिवसीय प्रथम राज्य सम्मेलन आयोजित किया गया। संगठन में विभिन्न शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत महिलाएं जैसे घरेलू कामगार, असंगठित क्षेत्र की महिला श्रमिकों, टीचर, नर्स, अन्य संस्थाओं में कार्यरत महिला करमचारियों व छात्राओं ने भाग लिया। वास्तविक सामाजिक विकास और महिलाओं की मुक्ति के संघर्ष को आगे बढ़ाने और कामकाजी महिलाओं का अपना स्वतंत्र संगठन बनाने के लिए लगभग 100 महिला सदस्यों ने इस दो दिवसीय राज्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए अपने पारिवारिक बंधनों और काम से छुट्टी ली।

सम्मानजनक रोज़गार, काम के क्षेत्र में समान अधिकार, हिंसा से मुक्ति, राजनैतिक-पारिवारिक और कार्य क्षेत्रों में अभिव्यक्ति की आज़ादी, समाज की वास्तविक व जनतांत्रिक प्रगति, सामजिक सुरक्षा के नारे हुए बुलंद

कोलकाता: विगत 7 व 8 जनवरी 2023 को कोलकाता, बंगाल में श्रमजीवी नारी मंच का दो दिवसीय प्रथम राज्य सम्मेलन आयोजित किया गया। संगठन में विभिन्न शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत महिलाएं जैसे घरेलू कामगार, असंगठित क्षेत्र की महिला श्रमिकों, टीचर, नर्स, अन्य संस्थाओं में कार्यरत महिला करमचारियों व छात्राओं ने भाग लिया। वास्तविक सामाजिक विकास और महिलाओं की मुक्ति के संघर्ष को आगे बढ़ाने और कामकाजी महिलाओं का अपना स्वतंत्र संगठन बनाने के लिए लगभग 100 महिला सदस्यों ने इस दो दिवसीय राज्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए अपने पारिवारिक बंधनों और काम से छुट्टी ली।

राज्य सम्मलेन के पहले जिला स्तरीय सम्मेलनों का आयोजन कर के महिला सदस्यों की आखरी पंक्ति तक को संगठन के विचार विमर्श में शामिल करने की प्रक्रिया चलाई गयी। 17 दिसम्बर को आयोजित कोलकाता जिला सम्मेलन में पूर्वी कोलकाता, दक्षिण कोलकाता, बेहाला, गार्डन रीच शाखाओं से 80 महिलाओं ने भाग लिया। 22 दिसंबर को हावड़ा जिला सम्मेलन मौरीग्राम में आयोजित किया गया था। इससे पहले हावड़ा में तीन जगहों पर ब्रांच कांफ्रेंसें की गयीं। 29 दिसंबर को कल्याणी में नदिया जिला सम्मेलन और 1 जनवरी को कांदी में मुर्शिदाबाद जिला सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मलेन के माध्यम से श्रमजीवी नारिमंच की सदस्याओं ने यह शपथ ली कि जब तक कार्यस्थल पर समान वेतन, श्रम बाजार में समान अधिकार, परिवार, समाज व राजनीतिक क्षेत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आर्थिक आत्मनिर्भरता व स्वास्थ्य-शिक्षा-रोज़गार-आवास जैसे सामजिक अधिकार महिलाओं की व्यापक आबादी तक नहीं पहुँचते, तब तक श्रमजीवी महिलाएं सभी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में संघर्ष करती रहेंगी।

महिलाओं की प्रगति के संघर्ष का इतिहास बहुत लंबा और अनेकों देशों को छूता है। इसी परंपरा के तहत वर्ष 2011 में अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस के शताब्दी वर्ष में बंगाल में श्रमजीवी नारी मंच की नींव रही गयी थी। पिछले 10 वर्षों में, श्रमजीवी नारी मंच ने विभिन्न कारखाना-आधारित श्रमिक आंदोलनों, महिला-उत्पीड़न विरोधी आंदोलनों और महिलाओं के समान अधिकार आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका कार्यक्षेत्र कोलकाता, हावड़ा, हुगली, मुर्शिदाबाद, नदिया, झारग्राम जिलों में फैला हुआ है। सम्मलेन में उपरोक्त जिला से लगभग 300 महिला सदस्यों ने भाग लिया। जिला स्तरीय सम्मलेन की श्रृंखला के बाद राज्य स्तर पर हुए सम्मलेन के माध्यम से मंच को एक सुसंगठित बल का रूप दिया गया।

समाज में महिलाओं की क्या समस्याएं हैं, उनके कार्यक्षेत्र में क्या समस्याएं आती हैं, पितृसत्ता-लिंगवाद ने लड़कियों को कैसे घर के अंदर रखा है, लड़कियों को कैसे आगे बढ़ना है इत्यादि विभिन्न विषयों पर अलग-अलग स्तरों पर चर्चा विचार व सामाजिक प्रचार किया गया। कार्यक्षेत्रों में प्रचार व समाज के बाकी हिस्सों तक पहुंचने के लिए परचा वितरण व पोस्टर अभियान भी चलाए गए। बढ़ती महंगाई, काम की कमी, खराब शिक्षा, घरेलू हिंसा, शराब की बिक्री में वृद्धि के कारण विभिन्न वर्गों में लड़कियों की वर्तमान स्थिति पर कार्टून पोस्टरों का एक सेट भी व्यापक प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया। राज्य सम्मेलन के लिए उत्तर, दक्षिण कोलकाता, बेहाला, गार्डनरिच में एक दिवसीय मेटाडोर अभियान चलाया गया।

आज जब सरकार, एनजीओ व विभिन्न कोर्पोरेट जगत की संस्थाएं और मीडिया व फिल्म इंडस्ट्री महिअलों की एक प्रकार की आज़ादी का ढोल बजा रही है वहीँ देश की महिला आबादी का बाद हिस्सा, बेरोज़गारी, गरीबी, भुखमरी और स्वास्थ्य-शिक्षा-खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है। स्वतंत्रता, सम्मान और समानता के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए महिलाओं और युवतियों का संघर्ष हर जगह जारी है। लेकिन इन संघर्षों के ऐतिहासिक अनुभव ने यह भी साबित कर दिया है कि जब तक पितृसत्ता और पूंजीवाद को उखाड़ फेंका नहीं जाएगा, तब तक लड़कियों को उनके अधिकार कभी नहीं मिलेंगे। महिला मुक्ति के लिए मात्र कुछ उच्च या मध्यम वर्गीय महिलाओं का सशक्तिकरण काफ़ी नहीं है। बल्कि इसके लिए ऐसे संघर्ष की ज़रुरत है जो समाज में अधिकांश महिलाओं के अधिकारों और प्रगति के उद्देश्य को सर्वोपरि रखे। श्रमजीवी महिलाएं ही ऐसे संघर्ष की चालाक शक्ति हो सकती हैं। श्रमजीवी नारीमंच का पहला सम्मलेन महिलाओं के इस महत्वपूर्ण हिस्से को संगठित करने के प्रयास में एक अग्रगामी कदम है।

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