‘अमृतकाल’ का प्रथम बजट: अमृत मालिकों के लिए, और मेहनतकश-मज़दूर… ठन-ठन गोपाल

यह बजट नौकरियों के और नुकसान; श्रमिकजन के बिगड़ते काम और रहने की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा और घटाने, बेलगाम बेरोजगारी-महँगाई और मेहनतकश आम लोगों की पीड़ा और बढ़ाने वाली है।

तो मोदी सरकार ने पेश कर दिया अपना दसवां और ‘अमृतकाल’ का पहला बजट। इस बजट से देश के मेहनतकश-मज़दूर आवाम के हत्थे क्या लगा? एकबर फिर बजट में दीर्घकालिक रोज़गार और गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के सृजन को राम भरोशे कर दिया गया है। यह भूख, गरीबी, बेरोज़गारी, बढ़ती हुई महंगाई जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं को संबोधित नहीं करता है।

मोदी सरकार ने 2023-24 के आम बजट में जहाँ भयावह बेरोजगारी के दौर में नए स्थाई रोजगार का कोई प्रावधान नहीं किया है, वहीं निजीकरण के साथ नौकरियों में कटौती, कौशल विकास के नाम पर फोकट की मज़दूरी बढ़ाने पर जोर दिया है और उद्योगों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के साथ नौकरियों पर पाबंदी और बढ़ा दी है।

पुरानी पेंशन योजना, सभी को सामाजिक सुरक्षा, सभी को पेंशन, योजनाबद्ध श्रमिकों को नियमित करने, कृषि श्रमिकों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मज़दूरी आदि की मांग किनारे धकेल दी गई है। मनरेगा बजट, खाद्य सब्सिडी को घटा दिया है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2023 के प्रस्तावित बजट में केंद्रीय जीएसटी कलेक्शन सरकार द्वारा संग्रहित प्रत्यक्ष कॉरपोरेट टैक्स से ज्यादा है इसका मतलब यह होता है कि धनी और मालिक वर्ग के टैक्स में छुटकारा देकर आम जनता से अप्रत्यक्ष कर द्वारा ज्यादा पैसा वसूला जा रहा है।

भारतीय खाद्य निगम को दिए जाने वाले खाद्य सब्सिडी को 214696 करोड़ रुपए से घटाकर 137207 करोड़ किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दिए जाने वाले सब्सिडी को 72283 करोड़ से घटाकर 59973 करोड़ किया गया है। यूरिया सब्सिडी 23000 करोड़ घटाया गया है। पीएम किसान स्कीम के तहत राशि 68000 करोड़ से घटाकर 60 हजार करोड़ किया गया है।

पीएम आवास योजना के तहत राशि में काफी बढ़ोतरी करने की लोकलुभावन बात के साथ यह बोला गया कि 79 हजार करोड़ रुपए पीएम आवास योजना के लिए दिया जाएगा। मगर 2021-22 साल में पीएम आवास योजना के लिए 90000 करोड रुपए खर्चा किया गया था। उस हिसाब से यह बढ़ोतरी का कोई वास्तविक आधार नहीं है।

देश में बढ़ रहे गैर बराबरी को लगाम देने के लिए सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं है। हाल में ऑक्सफैम के एक रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सबसे धनी 5% भारतीय देश के 60% से ज्यादा संपत्ति का अधिकारी है। जबकि निचले 50% के पास संपत्ति का तीन फीसदी हिस्सा है। और इसी आबादी से जीएसटी में 64% राशि वसूला जाता है।

मेहनतकश के नजरिए से बजट की झलक

★ 2023 में 45 लाख करोड़ का कुल बजट है, जिसमें लगभग 11 लाख करोड़ पुराने उधार का ब्याज देने के लिए खर्चा होगा। मोदी सरकार के जमाने में पिछले सालों की तुलना में यह उधार काफी बढ़ चुका है।

★ पिछले वर्ष श्रम और रोज़गार मंत्रालय में केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के लिए आवंटन 16,084 करोड़ रुपये था वहीँ इस वर्ष यह केवल 1,2434 करोड़ रुपये है।
★ श्रम कल्याण योजना के लिए पिछले वर्ष बजट 120 करोड़ रुपये था जो इस वर्ष घटकर 75 करोड़ रुपये हो गया है।

★ पीएम कर्मयोगी मानधन योजना में पिछले वर्ष बजट अनुमान 50 करोड़ रुपये था जो इस वर्ष घटकर मात्र 3 करोड़ रह गया है।

★ आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना के लिए आवंटन पिछले साल के बजट अनुमान 6,400 करोड़ रुपये से घटकर इस वर्ष 2,272 करोड़ रुपये हो गया है।

★ राष्ट्रीय बालश्रम योजना का आवंटन 30 करोड़ रुपये से घटाकर 20 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

★ ईपीएस पेंशनभोगियों के लिए यह बजट निराशाजनक है क्योंकि न्यूनतम पेंशन को बढ़ाने की जगह एक हज़ार को ही जारी रखा गया है।

एक तरफ चुनावी समर में नि:शुल्क अनाज का प्रचार-प्रसार किया जाता है तो वहीं दूसरी तरफ भोजन और पोषण के आवंटन को घटा दिया गया है।

★ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम के लिए खाद्य सब्सिडी पिछले वर्ष संशोधित अनुमान में 2,14,696 करोड़ रुपये थी। अब इस वर्ष यह बजट अनुमान में 1,37,207 करोड़ रुपये है।

★ गाँव के ग़रीब मज़दूरों को अस्थायी व अल्पावधि रोज़गार उपलब्ध कर थोड़ा बहुत राहत देने वाली योजना मनरेगा के बजट में क़रीब 33% की भारी कटौती की गयी है, मनरेगा का बजट घटाकर ₹60,000 करोड़ हो गया है जो पिछले साल 89,400 करोड़ था।

★ पीएम किसान सम्मान निधि के लिए पिछले साल रिवाइज्ड बजट जितना ₹60,000 करोड़ बजट ही तय किया गया है। जबकि न केवल किसानों को मिलने वाली राहत को बढ़ाने के साथ खेत मज़दूरों को भी इसके दायरे में लाने की ज़रूरत थी।

★ पीएम किसान आवंटन में 11.76% की कटौती की गई है; राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए 31%, कृषि सिंचाई योजना के लिए 17% और कृषिनीति योजना के लिए पिछले वर्षों के बजट अनुमानों से 2% कम है। पिछले साल के संशोधित अनुमानों से उर्वरक सब्सिडी में 22% की कटौती की गई है; फसल बीमा योजना के लिए आवंटन पिछले वर्ष के अनुमान से 12% अधिक है।

★ सरकार ने यूरिया सब्सिडी पर बजट कम करके ₹131100 करोड़ कर दिया है जो पिछले साल ₹154098 करोड़ का था।

★ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के बजट में 36% की कटौती की गयी, इसे कम करके ₹1,37,207 करोड़ कर दिया है जो पिछले साल 2,14,696 करोड़ का था।

मोदी सरकार ने 2023-24 के आम बजट में नई टैक्स रिजीम का ऐलान किया है। सबसे ज्यादा शोर इसी का मचा है। नए टैक्स स्लैब के ऐलान के बाद लोगों के बीच कंफ्यूजन की स्थिति बन गई है कि पुराने और नए टैक्स रिजीम में क्या अंतर है और टैक्सपेयर्स को फायदा किसमें मिलेगा?

गड़बड़झाला यह है कि इस बजट में पुराने रिजीम वाले टैक्सपेयर्स के लिए किसी भी तरह का कोई ऐलान नहीं हुआ है। अगर वो आगे भी इसी रिजीम में बने रहते हैं, तो नए रिजीम के मुकाबले उन्हें अधिक टैक्स चुकाना पड़ेगा।

★ बजट ने सुपर अमीरों पर कर की दर को और कम कर दिया है। दूसरी ओर, खाद्य सब्सिडी में 29%, NFSA के तहत विकेंद्रीकृत खरीद के लिए सब्सिडी में 17%, मध्याह्न भोजन के लिए आवंटन में 9.4% और पोषक तत्वों पर आधारित सब्सिडी में 38% की कटौती की है।

★  भोजन पर सकल सब्सिडी में 31% की कमी की गई है। यह तब किया गया है जब भारत दुनिया में सबसे अधिक भूखे और कुपोषित लोगों का देश है।

★ पेट्रोलियम के लिए सब्सिडी में पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान से 75% की भारी कटौती से कीमतों में गंभीर वृद्धि होगी।

★ सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे की दयनीय स्थिति के बीच बजटीय आवंटन बढ़ाने के बजाय, बजट ने आयुष्मान भारत के लिए आवंटन में 34% की भारी कमी की; एनएचएम के लिए आवंटन पिछले साल के अनुमान से 1% कम कर दिया गया है।

केंद्रीय बजट के आंकडें बताते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से, केंद्र सरकार का शिक्षा पर ख़र्च जो पहले से ही कम था वो और तेज़ी से घटा है।

★ शिक्षा सशक्तिकरण योजना के आवंटन में पिछले साल के अनुमान से 33% की कटौती की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के लिए धन में 2% की कमी की गई है।

★ वित्त वर्ष में आवास के लिए आवंटन में 90020 करोड़ रुपये की भारी कटौती की गई; यह बजट पहले के स्तर पर आवंटन को बहाल भी नहीं करता है।

★ अल्पसंख्यकों के विकास के लिए अम्ब्रेला प्रोग्राम में 66% की कटौती करके 1810 करोड़ से राशि 610 करोड़ किया गया है।

★ दलितों और आदिवासियों के लिए बनी योजनाओं में या तो बजट प्रावधान कम कर दिया है या फिर उन्हें समाप्त ही कर दिया है। बजट में एससी के लिए मात्र 3.5% और एसटी के लिए 2.7%।

★ सीतारमण का दावा ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ शब्दों की कलाबाजी भर है। इस दावे के जरिये मैला ढोने की प्रथा के खात्मे और सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई को मशीनों से करने का जो ढिंढोरा पीटा गया है, उसमें न तो कोई जवाबदेही है और न ही कोई पारदर्शिता। इसमें सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण नदारत है।

मोदी सरकार का आखिरी पूर्णकालिक बजट था, जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘अमृतकाल’ का पहला बजट भी कहा, में उन्होंने महिला सशक्तिकरण और अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें तो कीं मगर बजट में सरकार की वो प्रतिबद्धता नज़र नहीं आई। महिला सशक्तिकरण के लाख वादों और दावों के बीच ‘जेंडर बजट’ अभी भी कुल GDP का एक प्रतिशत से भी कम ही है।

★ महिलाओं को इस बजट में सिर्फ ‘महिला सम्‍मान बचत पत्र’ की ही खुशी मिली। इसके अलावा महिलाओं के लिए कोई नई स्कीम या किसी खास रियायत की घोषणा सुनने को नहीं मिली।

★ 18 साल पहले बजट में ‘जेंडर बजट’ का प्रावधान हुआ था। इस साल केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के आवंटन में भी करीब 1 प्रतिशत की मामूली वृद्धी दिखाई देती है। वित्त वर्ष 2022-2023 में इस मंत्रालय को 25,172.28 करोड़ रुपये मिले थे, जिसे बढ़कर चालू वित्त वर्ष में 25,448.75 करोड़ रुपये कर दिया गया।

★ जेंडर बजट के तहत आवंटित पिछले वित्त वर्ष के 1,71,006.47 करोड़ रुपये के मुकाबले इस वर्ष 2023-24 के लिए 2,23,219.75 करोड़ रुपये जरूर कर दिया गया लेकिन इस बजट की इस पूरी बढ़ोत्तरी को पीएम आवास योजना से भी जोड़ दिया गया है, जो लैंगिक असमानता को वास्तविक तौर से कम करने में कोई खास भूमिका निभाती नज़र नहीं आती।

★ महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और बाल देखभाल सेवाएं प्रदान करने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं, आशा, मध्याह्न भोजन कार्यकर्ता, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यकर्ता आदि को उनके पारिश्रमिक और लाभों में कोई सुधार नहीं किया गया है।

★ मातृत्व लाभ योजना – मातृ वंदना योजना के लिए आवंटन में 40.15 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। लैंगिक बजट कुल व्यय का केवल 9% है।

★ आयुष्मान भारत में बजट का आवंटन बढ़ा है, लेकिन बीमा आधारित इस राशि का लाभ बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों को ही मिलेगा।

राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के माध्यम से अत्यधिक राजस्व पैदा करने वाली सार्वजनिक संपत्तियों को उपहार में देकर एकत्र किए गए अग्रिम धन द्वारा वित्त पोषित है, जिसमें 9 लाख करोड़ रुपये एकत्र करने की परिकल्पना की गई है।

निजीकरण का यह नया संस्करण और कुछ नहीं बल्कि अगले 30-35 वर्षों के लिए सरकार की राजस्व वसूली की क्षमता को खत्म करना और इसे निजी कंपनियों, खासकर सरकार के करीबियों की झोली में देना है। बजट में सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश में 11 फीसदी की कमी की गई है।

★ आर्थिक सर्वेक्षण ने ही 2022-23 में जीडीपी में 6.5% की गिरावट की भविष्यवाणी की थी। लगातार चार वर्षों तक विकास का ऐसा नीचे का चक्र अभूतपूर्व है।

★ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट है, जो पिछले वित्त वर्ष के 9.9% के मुकाबले घटकर 1.6% रह गई।

तो किसका हित साधेगा ‘अमृतकाल’ यह बजट?

वास्तव में मोदी राज का यह बजट, जिसे मोहतरमा वित्तमंत्री ने ‘अमृतकाल’ के पहले बजट के रूप में प्रस्तुत किया है, यानी अगले 25 साल में जनाब मोदी और उनकी जमात देश की आम जनता को देशी-बहुराष्ट्रीय मुनाफे की जिस बलिवेदी पर चढ़ना चाहती है, उसकी स्पष्ट तस्वीर पेश करती है।

दरहक़ीक़त पहले से ही जारी कॉर्पोरेट हितों को और मजबूत करने, मुनाफे को और बेलगाम बनाने और मेहनतकश-मज़दूर आबादी ही नहीं माध्यम तबके के लिए भी घातक है।

यह बजट आर्थिक सर्वेक्षण में उल्लिखित जोखिमों को भी संबोधित करने में विफल रहता है जैसे कि वैश्विक मंदी के कारण निर्यात वृद्धि में ठहराव, चालू खाता घाटा का बढ़ना, रुपये का निरंतर मूल्यह्रास, उच्च ऋण जीडीपी अनुपात आदि।

यह बजट न केवल नौकरियों के नुकसान, श्रमिकों और आम लोगों के बिगड़ते काम और रहने की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा से बेखबर है, बल्कि खतरनाक बेरोजगारी और बढ़ती मुद्रास्फीति से भी आँखें मूँदे हुए है, जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों और आम लोगों पीड़ा और बढ़ाने वाली है।

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