ब्रिटेन में डेढ़ महीने से जारी है सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारियों की हड़ताल, स्वास्थ्य सेवा चरमराई

बेहतर वेतन व सुविधाओं के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के अलावा अन्य विभागों में भी आंदोलन जारी है। लेकिन ऋषि सुनक के नेतृत्व वाली कंजरवेटिव सरकार की हठधर्मिता कायम है।

ब्रिटेन में सरकारी स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) में वेतन बढ़ाने के लिए डेढ़ महीने से कर्मचारी हड़ताल पर हैं। ब्रिटेन के सबसे बड़े नर्सिंग यूनियन रॉयल कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग (आरसीएन) के 106 साल के इतिहास में व एनएचएस के 74 साल के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी हड़ताल हुई है।

देश में 10 लाख स्वास्थ्यकर्मी और एंबुलेंस स्टाफ 14 यूनियनों से जुड़े हुए हैं।

ब्रिटेन का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह से ठप पड़ गया है। स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल और सेवाएं ठप पड़ने से मरीज अस्पतालों के फर्श, गलियारों, फंसी हुई एंबुलेंस और अन्य जगहों पर मर रहे हैं। ब्रिटेन के डॉक्टर अस्पतालों की हालत युद्धग्रस्त यूक्रेन से भी बदतर बता रहे हैं।

मेडिकल व्यवस्थाओं के चरमराने का अंदाजा इसी से लगता है कि किसी सामान्य मरीज को फिजीशियन को दिखने के लिए 6 से 9 महीने बाद की तारीख मिल रही है। बड़े ऑपरेशन के लिए 18 महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है।

ये स्थिति बीते महीने तब और विकराल हो गई, जब वेतन बढ़ाने और कामकाजी स्थिति सुधारने की मांग को लेकर एनएचएस नर्सें, कर्मचारी और एंबुलेंस स्टाफ हड़ताल पर चल गया।

स्वास्थ्यकर्मी क्यों हैं हड़ताल पर?

ब्रिटेन जितनी बदतर स्वास्थ्य सेवाएं और किसी यूरोपीय देश में नहीं हैं। दरअसल, ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवा, अस्पताल का संचालन और फंड राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं (एनएचएस) के तहत सरकार द्वारा किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में कंजरवेटिव सरकारों ने अस्पतालों का फंड घटाकर, कर्मचारी कम कर दिए हैं। कर्मचारियों का वेतन भी कम है।

यूके में राज्य द्वारा संचालित स्वास्थ्य सेवा वर्षों के सापेक्ष कम निवेश, कोविड-19 महामारी से होने वाली गिरावट और कम वेतन से अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों की स्थिति खराब है।

रिसर्च कोआर्डिनेशन नेटवर्क (RCN), जिसमें 300,000 से अधिक सदस्य हैं, ने बताया की एनएचएस नर्सों ने पिछले 10 वर्षों में वास्तविक रूप से अपने वेतन में 20% तक की गिरावट देखी है जिस वजह से उन्हें अपने परिवार का पेट भरने और बिलों का भुगतान करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

ऋषि सुनक ने वादा पूरा नहीं किया

जब ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभाला था, तो उन्होंने वादा किया था कि एनएचएस के लिए अधिक नर्सों और डॉक्टरों की भर्ती की जाएगी, ताकि मरीजों को डॉक्टर से परामर्श लेने में लंबे समय तक इंतजार न करना पड़े। साथ ही 7000 बेड बढ़ाए जाएंगे। लेकिन उनके वादे के आगे अब तक कुछ नहीं हुआ।

इस दौरान परेशानी तब और बढ़ गई, जब नर्सों और एंबुलेंस स्टाफ ने सरकार के वेतन वृद्धि के प्रस्ताव को बेहद कम होने के कारण खारिज कर दिया था।

क्रिसमस छुट्टियों से पहले शुरू हुआ हड़तालों का सिलसिला

ब्रिटेन में क्रिसमस की छुट्टियों से ठीक पहले हड़तालों का सिलसिला शुरू हुआ। रेल कर्मचारियों के साथ-साथ स्वास्थ्य कर्मियों की हड़ताल पर गए, तो बॉर्डर फोर्स कर्मी, डाक कर्मचारी, बस ड्राइवर और प्रशासनिक अधिकारी भी या तो हड़ताल पर हैं, या हड़ताल पर जाने की तैयारी में जुट गए थे।

देश में दशकों बाद नर्सें हड़ताल पर गई। फिर इंग्लैंड के कई हिस्सों में अर्ध-स्वास्थ्य कर्मी (पैरामेडिक्स) भी हड़ताल पर चले गए। एंबुलेंस कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से स्वास्थ्य अधिकारियों को यह आम अपील जारी करनी पड़ी कि लोग सावधानी बरतें, ताकि उन्हें एंबुलेंस बुलाने की जरूरत ना पड़े।

क्रिसमस की छुट्टियों के समय जिन क्षेत्रों के कर्मचारी अपनी माँगों को लेकर आंदोलन पर उतरे हैं, उनमें रेलवे, डाक, बॉर्डर फोर्स, हवाई अड्डों पर बैगेज प्रबंधन की सेवा देने वाले कर्मी, लंदन के बस ड्राइवर, कई शिक्षक यूनियनें, और सरकारी वकील शामिल हैं।

इन हड़तालों से ऋषि सुनक के नेतृत्व वाली कंजरवेटिव सरकार पर दबाव और बढ़ गया है। लेकिन सरकार की हठधर्मिता कायम है।

वेतन व सुविधाएं बढ़ाने की माँग

विश्लेषकों के मुताबिक अलग-अलग क्षेत्र के कर्मचारी अपनी खास मांगों को लेकर हाल में हड़ताल पर गए हैं। ज्यादातर क्षेत्रों के कर्मचारियों की शिकायतों में एक सामान्य पहलू है। कर्मचारी यूनियनों के मुताबिक वर्षों से सामाजिक क्षेत्र के बजट में कटौती और कम निवेश के कारण उनके लिए अपनी सेवाएं देना मुश्किल होता चला गया है।

एंबुलेंस कर्मियों और नर्सों ने मुद्रास्फीति दर के अनुपात में वेतन बढ़ाने की मांग की है। इसके पहले अलग-अलग क्षेत्रों के कर्मचारी भी यह मांग उठा चुके हैं।

दरअसल, गुजरे महीनों में ब्रिटेन में बढ़ी महंगाई ने सभी वर्गों पर असर डाला है। महंगाई के कारण लोगों की वास्तविक आमदनी घट गई है। इस कारण तनख्वाह पर आश्रित तबकों के लिए वेतन वृद्धि की मांग करने के अलावा कोई और चारा नहीं रह गया है।

भारतीय डाक्टरों पर बढ़ा दबाव

एनएचएस में 1.15 लाख भारतीय डॉक्टर हैं, जिनमें से ज्यादातर हड़ताल में शामिल नहीं हैं। इससे काम का बोझ इन्हीं डॉक्टरों और नर्सों पर पड़ रहा है। करार में औसतन हफ्ते में 40 घंटे की शिफ्ट है। यानी 8 घंटे रोजाना, लेकिन उन्हें रोज 12 घंटे या ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ रही है।

कई भारतीय डॉक्टरों का कहना है कि काम के दबाव से उनकी मानसिक और भावनात्मक सेहत पर बुरा असर पड़ा है। इसके अलावा डॉक्टर भेदभाव का भी शिकार हैं।

About Post Author