एयर इंडिया कर्मचारियों के आवास का किराया वसूल रहा टाटा; कर्मियों का सपरिवार विरोध मार्च

एयर इंडिया के नए मालिक टाटा द्वारा मकान किराये के बहाने वेतन कटौती से नाराज कर्मचारियों ने एयर इंडिया कॉलोनी बचाओ समिति बनाकर जमीनी व क़ानूनी लड़ाई शुरू कर दी है।

ये कटौती एयर इंडिया कॉलोनी में रह रहे कर्मचारियों की सैलरी से आवास के किराये के रूप में की जा रही है और इसे लेकर कर्मचारी यूनियन में भारी आक्रोश है।रविवार को मुंबई में ओल्ड एयर इंडिया कॉलोनी में रहने वाले कर्मचारियों ने मार्च निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया।

मुंबई के सन्ताक्रूज़ ईस्ट के कलीन में स्थित ओल्ड एयर इंडिया कॉलोनी के कर्मचारियों ने एयर इंडिया कॉलोनी बचाओ समिति बनाई है और इसे मुद्दे पर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने एयर इंडिया को टाटा ग्रुप को बेच दिया है। कर्मचारियों का कहना है कि रिहाईशी कॉलोनियों को अभी किसी निजी कंपनी को नहीं बेचा गया है, फिर कटौती किस बात के लिए की जा रह है।

एयर इंडिया के कर्मचारियों ने रविवार (22 जनवरी)  को कॉलोनी में अपने परिवार सहित विरोध मार्च निकाला। कर्मचारियों की मांग है कि प्रबंधन की इस मनमानी कार्यवाही को तत्काल रोका जाये।वहीं एयर इंडिया के नए मालिक टाटा ग्रुप ने कर्मचारियों की सैलरी से आवास का किराया काटना शुरू कर दिया है।

एयर कार्पोरेशन एम्प्लाईज यूनियन (ACAU) के सदस्यों का कहना है कि एयर इंडिया को टाटा ग्रुप ने हाल ही में अधिग्रहण किया है, लेकिन उसे कोई क़ानूनी अधिकार नहीं है कि एयर इंडिया कर्मचारियों के कॉलोनियों में रहने के लिए उनकी सैलरी से किराया काटे।

मुंबई के शांताक्रूज इलाके समेत जिन पांच कालोनियों पर मालिकाना हक है वो टाटा ग्रुप का नहीं है बल्कि एयर इंडिया की होल्डिंग कंपनी का है, जिसे अभी किसी प्राईवेट कंपनी को बेचा जाना है।

यूनियन सदस्यों का कहना है कि सवाल ये है कि इन घरों में रहने के लिए टाटा कैसे कर्मचारियों की सैलरी किराये के मद में काट सकता है? यहां तक इस बारे में नोटिस तक नहीं दिया गया और अक्टूबर से ही सैलरी में कटौती शुरू हो गई।मार्च में हिस्सा ले रहे लोगों ने कहा कि दिसम्बर में सैलरी कटी, नए साल पर सैलरी काटी गई जो कि पूरी तरह ग़ैरक़ानूनी है।

एक अन्य सदस्य ने कहा कि मुबंई और दिल्ली जैसे शहरों में इतनी महंगाई है कि कर्मचारी कैसे जिएंगे, जबकि उनकी सैलरी भी इतनी नहीं है। 50 हज़ार या 60 हज़ार की सैलरी मुंबई के लिहाज से कुछ नहीं है।

उनके मुताबिक, निजीकरण के लिए कर्मचारी ज़िम्मेदार नहीं है, ये तो सरकार की ग़लत और दिशाहीन नीतियों की वजह से ऐसा हुआ है लेकिन इसका दुष्परिणाम कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।एयर इंडिया की बुरी हालत को लेकर जिन अधिकारियों और मंत्रियों पर आरोप लगे उनपर कोई असर नहीं पड़ा है।

उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल पर इतनी एनक्वायरी हुई लेकिन अभी भी वो सारी सुविधाओं के मजे ले रहे हैं, जबकि कर्मचारियों का इसमें कोई दोष नहीं है लेकिन इसकी सज़ा उन्हें दी जा रही है।

यूनियन सदस्यों का कहना है कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था अगर कर्मचारियों को निकाला जाता है तो वे कहां जाएंगे, उनकी इतनी सैलरी भी नहीं है कि वो घर खरीद सकें या महंगा किराया दे सकें।

मुंबई में एयर इंडिया कर्मचारियों की पांच कॉलोनियां हैं जिसमें हज़ार के क़रीब कर्मचारियों के परिवार रहते हैं।

कर्मचारियों का कहना है कि अगर उनसे घर खाली कराया जाता है तो उन्हें वैकल्पिक रहने की सुविधा मुहैया कराई जाए क्योंकि उनकी मांग स्थाई घर की नहीं है।

वो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उत्तराखंड के जोशीमठ मामले में वैकल्पिक व्यवस्था करने के आदेश दिए। ये क़ानूनी तौर पर मान्य है और कर्मचारियों के मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए।उल्लेखनीय है कि ये कालोनियां एयर इंडिया होल्डिंग कंपनी की हैं।

यूनियन के एक नेता ने पूछा कि इतनी जल्दबाज़ी क्या है? जल्दबाज़ी ये है कि वो मुंबई के सेंटर प्लेस में मौजूद इन कालोनियों को बेचना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि अडानी मोदी सरकार के दुलारे हैं और मोदी सरकार ने मुंबई एयरपोर्ट को भी उन्हीं के हवाले कर दिया है और अडानी ग्रुप ही इसका ओवरआल इंचार्ज है, इसलिए मुंबई के सबसे पॉश इलाक़ों में स्थित इन बेशक़ीमती ज़मीन को अडानी के हवाले किया जाने की आशंका है।

अगर अडानी खरीद लेते हैं और कर्मचारी सड़क पर आ जाएंगे और इसकी ज़िम्मेदारी भी भारत सरकार नहीं लेना चाह रही है।

सरकारी कर्मचारियों के क्वार्टर पब्लिक प्रीमाइसेस एक्ट के तहत आता है। इसक के लिए एक इस्टेट मैनजर होता है। अगर कोई कार्रवाई करनी होगी, खाली करने या किराया देने का कोई भी फैसला होता है तो इसके लिए एक क़ानूनी प्रक्रिया है, चार्जशीट भेजना चाहिए, नोटिस भेजना होता है, इसके बाद ही कोई कार्रवाई की जाती सकती है।

लेकिन वे चार्जशीट या नोटिस में भी क्या कहते, कि आप ग़ैरक़ानूनी तौर पर रह रहे हैं, लेकिन कर्मचरी तो क़ानूनी तौर पर रह रहे हैं। रहने की शर्तों का कोई उल्लंघन नहीं किया है।अब ये कर्मचारी टाटा ग्रुप के हो गए हैं तो टाटा को इन फ्लैटों के किराए सैलरी से काटने का कोई अधिकार नहीं है।

कर्मचारियों का कहना है कि यह कोर्ट द्वारा जारी विचाराधीन मामले का उल्लंघन है। कर्मचारियों ने मुंबई हाई कोर्ट में एक याचिका भी दायर की है। फ़िलहाल मुंबई हाई कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई आगामी 25 जनवरी को है।

वर्कर्स यूनिटी से साभार

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